तेज़ और लापरवाही से ड्राइविंग: लंबा ट्रायल, आरोपी का सुधारात्मक रवैया सज़ा कम करने के लिए काफ़ी: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने ट्रक ड्राइवर के खिलाफ़ तेज़ और लापरवाही से ड्राइविंग के लिए ट्रायल कोर्ट और अपीलेट कोर्ट द्वारा दर्ज किए गए दोषी पाए जाने के फ़ैसले को सही ठहराते हुए सज़ा के आदेश में बदलाव किया। साथ ही लंबे समय बीत जाने और कम करने वाली परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, मुख्य सज़ा को पहले ही जेल में बिताई गई अवधि तक कम कर दिया।
जस्टिस विनोद एस. भारद्वाज ने कहा,
"मुझे लगता है कि लंबा आपराधिक ट्रायल और याचिकाकर्ता को होने वाली परेशानी, कुल सज़ा में से याचिकाकर्ता द्वारा पहले ही जेल में बिताई गई वास्तविक सज़ा, याचिकाकर्ता द्वारा कोई अन्य अपराध न करके दिखाया गया सुधारात्मक रवैया और ऊपर बताए गए कानूनी सिद्धांत याचिकाकर्ता को दी गई सज़ा की मात्रा को कम करने के लिए काफ़ी कम करने वाली परिस्थितियां हैं।"
यह मामला IPC की धारा 279, 304-A के तहत दर्ज FIR से जुड़ा है। अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता TATA-1109 ट्रक को तेज़ और लापरवाही से चला रहा था और उसने ट्रांसपोर्ट एरिया, चंडीगढ़ के पास दूसरे ट्रक के मालिक-कम-ड्राइवर मोती लाल को पीछे से टक्कर मार दी।
मृतक को टक्कर मारने के बाद दोषी वाहन उसके सिर के ऊपर से गुज़र गया, जिससे मौके पर ही उसकी मौत हो गई। याचिकाकर्ता की पहचान शिकायतकर्ता रिखी राम ने की, जो मृतक के ट्रक पर क्लीनर के तौर पर काम करता था।
ट्रायल कोर्ट ने 06.05.2010 के फ़ैसले से याचिकाकर्ता को IPC की धारा 279 और 304-A के तहत दोषी ठहराया और उसे सज़ा सुनाई:
1. धारा 279 IPC के तहत ₹1,000 के जुर्माने के साथ छह महीने की कठोर कारावास।
2. धारा 304-A IPC के तहत ₹1,000 के जुर्माने के साथ एक साल और छह महीने की कठोर कारावास।
दोनों सज़ाएं एक साथ चलने का निर्देश दिया गया।
दोषी ठहराए जाने और सज़ा को एडिशनल सेशन जज, चंडीगढ़ ने 21.08.2012 के फ़ैसले से सही ठहराया, जिसके बाद हाई कोर्ट में यह मौजूदा रिवीजन याचिका दायर की गई।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए कानूनी सहायता वकील ने तर्क दिया कि दुर्घटना पार्किंग एरिया में हुई, जिससे तेज़ और लापरवाही से ड्राइविंग की संभावना कम हो जाती है और मृतक कथित तौर पर शराब के नशे में था और शायद खुद ही गिर गया हो। हाईकोर्ट ने रिकॉर्ड की जांच करने के बाद माना कि चश्मदीद गवाह की गवाही भरोसेमंद थी और उस पर विश्वास किया जा सकता है।
मेडिकल सबूतों से यह पक्का हो गया कि मौत एक भारी गाड़ी से लगी चोटों के कारण हुई, जिससे आकस्मिक गिरने की संभावना खत्म हो गई। बचाव पक्ष ने यह साबित करने के लिए कोई सबूत पेश नहीं किया कि मृतक शराब के नशे में था। बेंच ने पाया कि याचिकाकर्ता की पहचान दोषी वाहन के ड्राइवर के रूप में बिना किसी संदेह के साबित हो गई।
कोर्ट ने दोहराया कि रिवीजनल क्षेत्राधिकार सबूतों का दोबारा मूल्यांकन करने की अनुमति नहीं देता है, जब तक कि निष्कर्ष गलत या अवैध न हों, जो कि इस मामले में नहीं था।
इसलिए IPC की धारा 279 और 304-A के तहत दोषसिद्धि बरकरार रखी गई।
सजा के सवाल पर कोर्ट ने निम्नलिखित कम करने वाले कारकों पर ध्यान दिया:
1. यह घटना 2006 में हुई थी, और याचिकाकर्ता को लगभग 19 सालों तक आपराधिक कार्यवाही का सामना करना पड़ा था।
2. याचिकाकर्ता पहले ही पांच महीने से ज़्यादा जेल में रह चुका था।
3. उसका पहले या बाद में कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था।
4. यह अपराध जानबूझकर नहीं किया गया था।
5. याचिकाकर्ता पर परिवार की ज़िम्मेदारियाँ थीं और उसके बच्चे उस पर निर्भर थे।
प्रमोद कुमार मिश्रा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2023) मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए कोर्ट ने प्रतिशोधात्मक न्याय के बजाय सज़ा के सुधारात्मक उद्देश्य पर ज़ोर दिया।
हाईकोर्ट ने IPC की धारा 279 और 304-A के तहत दोषसिद्धि की पुष्टि की और सज़ा में बदलाव करते हुए मुख्य कारावास की अवधि को पहले ही बिताई गई अवधि तक कम कर दिया।
Title: Pawan Kumar v. State of U.T. Chandigarh