पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने अनिवार्य हाईकोर्ट नियमों की अवहेलना करने पर पुलिसकर्मी के खिलाफ चालान दाखिल करने का आदेश रद्द किया

Update: 2025-10-07 04:26 GMT

प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों की अनिवार्य प्रकृति को दोहराते हुए पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया, जिसमें हाईकोर्ट नियमों में निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बिना एक पुलिस अधिकारी के खिलाफ चालान दाखिल करने का निर्देश दिया गया।

अदालत ने कहा कि किसी पुलिस अधिकारी के खिलाफ कोई भी कार्रवाई या आलोचना हाईकोर्ट नियमों के अध्याय 1, भाग H, नियम 6 का कड़ाई से पालन करना चाहिए, जिसके अनुसार निर्णय की कॉपी जिला मजिस्ट्रेट को भेजनी होती है, जिन्हें इसे हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार को गृह सचिव के दिनांक 15.04.1936 के परिपत्र का संदर्भ देते हुए कवरिंग लेटर के साथ भेजना होता है। वर्तमान मामले में निर्धारित प्रक्रिया को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया गया, जिससे ट्रायल कोर्ट का निर्देश कानूनी रूप से अस्थिर हो गया।

जस्टिस जसजीत सिंह बेदी ने कहा,

"हाईकोर्ट के नियम (अध्याय 1 भाग एच नियम 6) (उपरोक्त) के अवलोकन से पता चलता है कि यदि पुलिस अधिकारियों और अन्य अधिकारियों के आचरण की आलोचना की जानी है या किसी अधिकारी के विरुद्ध कोई कार्रवाई की जानी है तो नियम 6 में उल्लिखित प्रक्रिया का पालन किया जाना आवश्यक है, अर्थात निर्णय की कॉपी जिला मजिस्ट्रेट को भेजी जानी चाहिए, जो इसे हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार को भेजेंगे। साथ ही गृह सचिव के दिनांक 15.04.1936 के परिपत्र के संदर्भ में दिया गया एक कवरिंग पत्र भी संलग्न करेंगे।"

यह याचिका डीएसपी वीर सिंह द्वारा ट्रायल कोर्ट के उस निर्देश को चुनौती देते हुए दायर की गई, जिसके तहत धोखाधड़ी के मामले में आरोपियों को दोषी ठहराते हुए ट्रायल कोर्ट ने गृह सचिव हरियाणा और महानिदेशक, CID ​​विजिलेंस को याचिकाकर्ता के विरुद्ध चालान दाखिल करने और दो महीने के भीतर कार्यवाही पूरी करने का निर्देश दिया था।

ट्रायल कोर्ट ने दोषसिद्धि आदेश में दर्ज किया कि पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध आरोप हैं, जिनमें याचिकाकर्ता द्वारा शिकायतकर्ता की बेरहमी से पिटाई और 50 लाख रुपये की मांग करना भी शामिल है। 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया और पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध होने के बावजूद, पुलिस अधिकारी चालान दाखिल करने में विफल रहा।

याचिकाकर्ता की ओर से उपस्थित सीनियर एडवोकेट ने तर्क दिया कि आक्षेपित निर्णय में चालान प्रस्तुत करने के निर्देश हाईकोर्ट के नियमों (अध्याय I भाग H नियम 6) का उल्लंघन हैं। यह प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ता और अन्य अधिकारियों के विरुद्ध टिप्पणियां ऑडी अल्टरम पार्टम के सिद्धांत का पालन किए बिना की गईं, क्योंकि उक्त निर्देश जारी करने से पहले याचिकाकर्ता और अन्य अधिकारियों का पक्ष सुनना आवश्यक है।

आस्था मोदी बनाम हरियाणा राज्य व अन्य (सीआरएम-एम-38422-2019) का हवाला दिया गया, जिसमें हाईकोर्ट ने एक पुलिस अधीक्षक के खिलाफ की गई टिप्पणियों को यह कहते हुए हटा दिया,

"वह कार्यवाही में पक्षकार नहीं हैं, उन्हें स्पष्टीकरण देने के लिए कोई नोटिस जारी नहीं किया गया और न ही उन्हें दोषी ठहराने से पहले सुनवाई का कोई अवसर दिया गया। सेशन कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित मानदंडों का पालन नहीं किया और याचिकाकर्ता के आचरण के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणियां कीं, जो अनुचित और अनावश्यक हैं।"

पंजाब राज्य एवं अन्य बनाम मेसर्स शिखा ट्रेडिंग कंपनी, 2023 (136) कटएलटी 739, राज्य (दिल्ली सरकार) बनाम पंकज चौधरी एवं अन्य, 2019(5) आरसीआर (आपराधिक), आस्था मोदी बनाम हरियाणा राज्य एवं अन्य, (सीआरएम-एम-38422-2019, 08.11.2023 को निर्णीत) और डॉ. श्रीमती नरेश सैनी बनाम हरियाणा राज्य एवं अन्य, (सीआरएम-एम-22310-2014) में दिए गए निर्णय का हवाला देते हुए कहा गया कि इससे "यह स्पष्ट होता है कि किसी भी अधिकारी के विरुद्ध कोई भी कार्रवाई करने से पहले उसे अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए सुनवाई का अवसर अवश्य दिया जाना चाहिए।"

अदालत ने टिप्पणी की कि वर्तमान मामले में ऐसा न किए जाने से याचिकाकर्ता एवं अन्य के विरुद्ध शुरू की गई कार्यवाही निरर्थक हो जाएगी।

जस्टिस बेदी ने कहा कि अन्यथा भी यदि सह-अभियुक्तों के मुकदमे के दौरान ट्रायल कोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचती कि याचिकाकर्ता और अन्य को भी मुकदमे का सामना करना चाहिए तो सह-अभियुक्तों के विरुद्ध संज्ञान लेते समय CrPC की धारा 193 का सहारा लिया जा सकता था और अभियोजन पक्ष के साक्ष्य दर्ज करते समय CrPC की धारा 319 का सहारा लिया जा सकता था।

हाईकोर्ट ने कहा,

"ट्रायल कोर्ट ने इनमें से कोई भी प्रक्रिया नहीं अपनाई।"

उपरोक्त के आलोक में याचिका स्वीकार की गई।

Title: Veer Singh DSP v. State of Haryana and anr.

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