आत्मनिर्भर बनने के लिए पत्नी को भरण-पोषण का 10% कौशल विकास पर खर्च करना होगा: पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट

Update: 2025-12-17 13:50 GMT

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने पत्नी को दिए गए भरण-पोषण की राशि बढ़ाने से इनकार करते हुए निर्देश दिया है कि वह प्राप्त हो रही भरण-पोषण राशि का कम से कम 10 प्रतिशत अपने कौशल विकास (स्किल डेवलपमेंट) के लिए उपयोग करे। अदालत ने कहा कि भरण-पोषण का उद्देश्य केवल जीवन-यापन तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका मकसद दीर्घकालिक गरिमा और आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करना भी है।

जस्टिस आलोक जैन ने कहा,

“याचिकाकर्ता को अपनी क्षमताओं और जीवन स्तर को बेहतर बनाने की आवश्यकता है ताकि वह आत्मनिर्भर बन सके। तभी यह कहा जा सकेगा कि भरण-पोषण कानून का वास्तविक उद्देश्य पूरा हुआ है और दी गई राशि का सही परिप्रेक्ष्य में उपयोग हो रहा है। इसलिए यह निर्देश दिया जाता है कि ₹15,000 प्रतिमाह की भरण-पोषण राशि में से कम से कम 10 प्रतिशत राशि व्यावसायिक कौशल में सुधार के लिए खर्च की जाए।”

यह पुनरीक्षण याचिका फैमिली कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश के उस आदेश के खिलाफ दायर की गई थी, जिसमें पत्नी को पति के शुद्ध (नेट) वेतन का एक-तिहाई, यानी ₹15,000 प्रतिमाह भरण-पोषण देने का आदेश दिया गया था। इस बढ़ोतरी से असंतुष्ट होकर पत्नी ने हाईकोर्ट का रुख किया और मांग की कि भरण-पोषण पति के सकल (ग्रॉस) वेतन का एक-तिहाई तय किया जाना चाहिए था, न कि शुद्ध वेतन का।

याचिकाकर्ता की ओर से दलील दी गई कि फैमिली कोर्ट ने पति की आय का गलत आकलन किया। यह कहा गया कि पति का वेतन ₹58,016 प्रतिमाह है, जैसा कि वेतन पर्ची में दर्शाया गया है, लेकिन ट्रायल कोर्ट ने स्वैच्छिक कटौतियों को ध्यान में रखते हुए टेक-होम सैलरी ₹45,000 मानी और उसी के आधार पर भरण-पोषण तय किया। यह भी तर्क दिया गया कि भरण-पोषण कानून एक सामाजिक कल्याणकारी कानून है और इसका उदारतापूर्वक अनुप्रयोग होना चाहिए, ताकि पत्नी को पति के समान जीवन स्तर, सुविधा और आराम मिल सके।

दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद हाईकोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता यह दिखाने में असफल रही कि उसकी आवश्यकताओं या खर्चों में ऐसा कोई वास्तविक इजाफा हुआ है, जो पहले से दी जा रही भरण-पोषण राशि से पूरा नहीं हो पा रहा हो। अदालत ने कहा कि महंगाई में सामान्य वृद्धि को अलग-थलग करके नहीं देखा जा सकता, क्योंकि आमतौर पर इसके साथ वेतन में भी संशोधन होता है।

अदालत ने यह भी कहा कि रिकॉर्ड पर ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है जिससे यह साबित हो कि दी गई भरण-पोषण राशि महंगाई के अनुरूप नहीं है या याचिकाकर्ता को किसी प्रकार की आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है। भले ही वेतन पर्ची में दर्शाई गई कुछ कटौतियां स्वैच्छिक हों, इससे भरण-पोषण के समग्र आकलन पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता।

पति भी एक इंसान है

कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा,

“वर्तमान याचिका ऐसा प्रतीत होती है कि याचिकाकर्ता युक्तिसंगत सीमा से अधिक वृद्धि चाहती है, जो भरण-पोषण कानून का उद्देश्य नहीं है। पति भी एक इंसान और इस देश का नागरिक है तथा उसे भी गरिमापूर्ण जीवन जीने का समान अधिकार है।”

अदालत ने यह भी पाया कि फैमिली कोर्ट ने भरण-पोषण बढ़ाते समय पत्नी द्वारा खर्चों में बदलाव से संबंधित किसी साक्ष्य पर चर्चा नहीं की थी और केवल यह सामान्य टिप्पणी की थी कि महंगाई बढ़ गई है तथा ₹7,500 प्रतिमाह अपर्याप्त है। हाईकोर्ट ने कहा कि ठोस साक्ष्य के बिना इस तरह की सामान्य टिप्पणियां भरण-पोषण बढ़ाने का आधार नहीं बन सकतीं।

बिना ठोस कारण अलग रहने की प्रवृत्ति पर टिप्पणी

कोर्ट ने उस प्रवृत्ति पर भी ध्यान दिया, जिसमें बिना किसी ठोस कारण या वास्तविक दयनीय स्थिति को दर्शाए भरण-पोषण की मांग की जाती है। अदालत ने दोहराया कि भरण-पोषण का उद्देश्य गरिमापूर्ण जीवन सुनिश्चित करना है, न कि केवल निर्वाह, और साथ ही आत्मनिर्भरता तथा वित्तीय स्वतंत्रता को बढ़ावा देना भी उतना ही आवश्यक है।

अंततः, याचिका खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को दी जा रही ₹15,000 प्रतिमाह की भरण-पोषण राशि में से कम से कम 10 प्रतिशत राशि व्यावसायिक कौशल विकास और आत्मनिर्भरता के लिए खर्च करनी होगी।

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