पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने 1999 में बलात्कार के दोषी व्यक्ति की उम्र निर्धारित करने के लिए किशोर परीक्षण कराने का निर्देश दिया
पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने 1999 में बलात्कार के दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति की उम्र निर्धारित करने के लिए किशोर परीक्षण कराने का निर्देश दिया। यह निर्देश तब आया, जब दोषी ने दावा किया कि अपराध के समय वह नाबालिग था, जिससे उसके मामले में किशोर न्याय प्रावधानों की प्रयोज्यता पर सवाल उठे।
स्कूल छोड़ने के प्रमाण पत्र के आधार पर अपीलकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि कथित अपराध की तारीख को उसकी उम्र 16 वर्ष 06 महीने और 17 दिन थी और यद्यपि ट्रायल कोर्ट के समक्ष किशोर होने का तर्क नहीं दिया गया। फिर भी विभिन्न निर्णयों के अनुसार इसे कभी भी उठाया जा सकता है।
जस्टिस शालिनी सिंह नागपाल ने कहा,
"यह न्यायालय प्रथम दृष्टया इस बात से संतुष्ट है कि किशोर होने के दावे की जांच आवश्यक है। अतः, धारा 391 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत अधिकारिता का प्रयोग करते हुए सेशन जज, यमुनानगर, जगाधरी, किशोर न्याय (बालकों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 और उसके अंतर्गत बनाए गए नियमों के अंतर्गत निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार, अबुज़र हुसैन मामले (पूर्वोक्त) और राहुल कुमार यादव मामले (पूर्वोक्त) में प्रतिपादित सिद्धांतों के आलोक में कथित अपराध की तिथि 19.06.1999 को आवेदक की आयु निर्धारित करें। जांच आज से 03 महीने के भीतर पूरी की जाएगी।"
अपीलकर्ता को "विधि से संघर्षरत किशोर" घोषित करने के लिए किशोर न्याय (बालकों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2000 (2000 का अधिनियम) की धारा 20 के अंतर्गत आवेदन दायर किया गया।
दोषी पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 363, 366-ए, 376 के तहत दर्ज FIR से उत्पन्न मामले में मुकदमा चलाया गया। आरोपी को IPC की धारा 363, 366 और 376 के तहत दोषी ठहराया गया।
दोषसिद्धि और सजा की अवधि पर पारित आदेश से व्यथित होकर दोषी ने अपील दायर की, जो अब हाईकोर्ट में लंबित है।
2015 में अपीलकर्ता की ओर से 2000 के अधिनियम की धारा 20 के तहत उसे किशोर घोषित करने के लिए आवेदन दायर किया गया, क्योंकि कथित अपराध के दिन उसकी आयु 18 वर्ष से कम थी। आवेदक ने एस.डी. मॉडर्न स्कूल, मिल व्यू कॉलोनी, सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) द्वारा जारी स्कूल परित्याग प्रमाण पत्र के आधार पर किशोर होने का दावा किया, जिसमें उसकी जन्मतिथि 02.01.1983 दर्ज है।
राज्य के वकील ने तर्क दिया कि स्कूल परित्याग प्रमाण पत्र का पुलिस द्वारा सत्यापन कर लिया गया और उचित आदेश पारित किए जाने चाहिए।
राज्य के अनुसार, आवेदक की जन्मतिथि की प्रविष्टि ग्राम रामपुर मनिहारन, जिला सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में कहीं भी नहीं पाई जा सकी।
यह बताया गया कि ग्राम रामपुर मनिहारन के प्रधान ने लिखित में दिया कि आवेदक के पिता 25 वर्ष पूर्व गांव छोड़कर चले गए और अपीलकर्ता के जन्म का कोई अभिलेख उपलब्ध नहीं है। यहाँ तक कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ता अंजुला (आशा) ने भी कहा कि उनके पास 2006 से बच्चों के जन्म का कोई अभिलेख उपलब्ध नहीं है।
इसके बाद राज्य द्वारा 2024 में एक और उत्तर प्रस्तुत किया गया, जिसके अनुसार विद्यालय के प्रधानाचार्य ने विद्यालय परित्याग प्रमाण-पत्र का सत्यापन किया, जिसमें आवेदक की जन्मतिथि 02.01.1983 दर्ज थी।
जज ने उल्लेख किया कि विनोद कटारा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य 2022 के मामले में तत्कालीन सुप्रीम कोर्ट ने सेशन कोर्ट को निर्देश दिया कि वह अभियुक्त की आयु के संबंध में कानून के अनुसार पूछताछ करे, जबकि उसकी आयु 50 वर्ष से अधिक हो चुकी थी और दोषसिद्धि के विरुद्ध उसकी अपील सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज कर दी गई।
परिणामस्वरूप, अदालत ने निर्देश दिया कि आदेश की प्रति स्कूल छोड़ने के प्रमाण पत्र की प्रति तथा किशोर न्याय (बालकों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2000 की धारा 20 के तहत आवेदन की प्रति, सूचना एवं अनुपालन के लिए जगाधरी स्थित यमुनानगर के सत्र न्यायाधीश को प्रेषित की जाए।
Title: SXXXX. V/S XXXX