सार्वजनिक पुस्तकालय का निर्माण धर्मार्थ कार्य का हिस्सा, IT Act की धारा 80जी छूट के पात्र: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

Update: 2024-08-06 07:23 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने माना कि सार्वजनिक पुस्तकालयों का निर्माण धर्मार्थ कार्य का हिस्सा है और आयकर अधिनियम की धारा 80जी के तहत छूट के पात्र हैं।

जस्टिस संजीव प्रकाश शर्मा र जस्टिस संजय वशिष्ठ की खंडपीठ ने कहा कि शिक्षा को बढ़ाने के उद्देश्य से समाज द्वारा किए जाने वाले सहायक कार्य को भी धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए किया गया कार्य माना जाएगा। सार्वजनिक पुस्तकालय के निर्माण के लिए 30,00,000/- रुपये की राशि का उपयोग किया गया और इसे धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए किया गया कार्य माना जाना चाहिए।

याचिकाकर्ता/करदाता सोसायटी है, जो सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट 1860 के तहत विधिवत रजिस्टर्ड है तथा सामाजिक/धर्मार्थ गतिविधियों में संलग्न है, विशेष रूप से समाज के दलित, गरीब और निराश्रित वर्गों के कल्याण के लिए।

याचिकाकर्ता सोसायटी ने दावा किया कि उसे 1961 अधिनियम की धारा 80जी के तहत कटौती के लिए पात्रता के संबंध में आयकर विभाग द्वारा 1974 से प्रमाण पत्र भी प्रदान किया गया, जिसे समय-समय पर नवीनीकृत किया गया।

याचिकाकर्ता सोसायटी को धारा 12एए के तहत रजिस्ट्रेशन भी दिया गया, क्योंकि अपनी स्थापना के बाद से ही याचिकाकर्ता सोसायटी धारा 11 के साथ धारा 2(15) के तहत धर्मार्थ गतिविधियों को अंजाम दे रही है। तदनुसार, शुरू से ही याचिकाकर्ता सोसायटी की आय को कर से छूट दी गई।

सीआईटी इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि याचिकाकर्ता सोसायटी ने 31.03.2005 तक 1,14,89,798/- रुपये का अधिशेष उत्पन्न किया। 2,08,01,259/- एकत्रित या प्राप्त किए गए। याचिकाकर्ता सोसायटी अपने उद्देश्यों और लक्ष्यों में परिकल्पित धर्मार्थ गतिविधियों के लिए प्राप्तियों का उपयोग करने में विफल रही है।

सीआईटी ने याचिकाकर्ता सोसायटी द्वारा किए गए अनुरोध को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि वह कोई धर्मार्थ गतिविधि नहीं कर रही है, क्योंकि दान की वास्तविकता और उनके उपयोग को याचिकाकर्ता सोसायटी द्वारा साबित नहीं किया जा सका। इसलिए धारा 80 जी (5) के तहत छूट के नवीनीकरण के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया गया।

करदाता ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता सोसायटी के धर्मार्थ कामकाज पर संदेह करने की कोई बात नहीं, यह निष्कर्ष निकालते हुए कि प्राप्तियां सोसायटी के उद्देश्यों और लक्ष्यों को पूरा करने के लिए राशि का उपयोग करने के उद्देश्य से नहीं हैं।

न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता सोसायटी ने 1961 अधिनियम की धारा 12एए के तहत लगातार रजिस्ट्रेशन का लाभ उठाया और आयकर अधिनियम, 1961 में परिभाषित धर्मार्थ सोसायटी/ट्रस्ट/संस्था की परिभाषा के अंतर्गत आती है। केवल इसलिए कि आयकर रिटर्न जमा करने में कोई त्रुटि है और फॉर्म-10बी जमा नहीं किया गया, इसका परिणाम यह नहीं होगा कि याचिकाकर्ता-सोसायटी धर्मार्थ कार्य नहीं कर रही है।

न्यायालय ने याचिका स्वीकार करते हुए कहा कि रिट याचिका वर्ष 2006 में दायर की गई और यह न्याय का उपहास होगा यदि याचिकाकर्ता-सोसायटी को लगभग 18 वर्षों के बाद ITAT के समक्ष अपील दायर करके वैकल्पिक उपाय का लाभ उठाने के लिए भेजा जाता है।

केस टाइटल- मुमुक्षु मंडल (पंजीकृत) श्री गीता मंदिर, पानीपत बनाम आयकर आयुक्त, करनाल और अन्य

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