परिवारिक संपत्ति विवादों का निपटारा वरिष्ठ नागरिक अधिनियम के तहत नहीं किया जा सकता: पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट

Update: 2025-11-04 09:28 GMT

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण एवं कल्याण अधिनियम, 2007 (Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007) का उपयोग पारिवारिक संपत्ति विवादों को निपटाने के लिए नहीं किया जा सकता — जैसे कि भरण-पोषण की मांग कर या संपत्ति हस्तांतरण को रद्द करने की कोशिश करके।

जस्टिस कुलदीप तिवारी ने अधिनियम की धारा 23 के तहत दायर एक याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें एक वरिष्ठ नागरिक ने अपने पोते-पोतियों के पक्ष में किए गए संपत्ति हस्तांतरण को रद्द करने की मांग की थी।

अधिनियम की धारा 23 के अनुसार, यदि संपत्ति का प्राप्तकर्ता वरिष्ठ नागरिक की देखभाल और भरण-पोषण की शर्तों को पूरा करने में विफल रहता है, तो वरिष्ठ नागरिक उस संपत्ति हस्तांतरण को निरस्त करवा सकता है।

कोर्ट ने कहा, “यह स्पष्ट मामला है जहां परिवारिक संपत्ति विवाद को 2007 के अधिनियम के प्रावधानों के माध्यम से निपटाने की कोशिश की जा रही है, जो कि इस अधिनियम का उद्देश्य नहीं है। इस प्रकार की प्रथा की निंदा की जानी चाहिए।”

मामले में याचिकाकर्ता (वरिष्ठ नागरिक) ने अपनी भूमि अपने पोते-पोतियों के नाम पर हस्तांतरित की थी। बाद में उन्होंने मेंटेनेंस ट्रिब्यूनल में आवेदन देकर हस्तांतरण रद्द करने और संपत्ति वापस दिलाने की मांग की, यह आरोप लगाते हुए कि पोते-पोतियों ने संपत्ति की शर्तों के अनुसार उनकी देखभाल नहीं की।

मेंटेनेंस ट्रिब्यूनल ने शुरू में उनकी याचिका स्वीकार कर ली थी, लेकिन अपील में आदेश रद्द कर दिया गया और मामला दोबारा सुनवाई के लिए भेजा गया। पुनर्विचार के बाद ट्रिब्यूनल ने हस्तांतरण रद्द करने की मांग को खारिज कर दिया, लेकिन पोते-पोतियों को संयुक्त रूप से ₹24,000 प्रतिमाह भरण-पोषण देने का निर्देश दिया। अपीलीय प्राधिकरण ने इस आदेश को बरकरार रखा।

इससे असंतुष्ट होकर याचिकाकर्ता ने संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, यह कहते हुए कि ट्रिब्यूनल ने गलती से भरण-पोषण का आदेश पारित किया जबकि उनकी मुख्य मांग संपत्ति हस्तांतरण को रद्द करने की थी।

याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि संपत्ति हस्तांतरण इस शर्त पर किया गया था कि पोते-पोती उनका भरण-पोषण करेंगे, इसलिए इस शर्त के उल्लंघन पर धारा 23 के तहत हस्तांतरण रद्द किया जाना चाहिए।

प्रतिवादी संख्या 3 और 4 (दो पोते-पोती) ने याचिकाकर्ता की मांग का समर्थन किया, यह कहते हुए कि वे उस संपत्ति के मालिक नहीं हैं और न ही उससे कोई आय प्राप्त करते हैं, इसलिए वे भरण-पोषण देने में सक्षम नहीं हैं।

वहीं, प्रतिवादी संख्या 5 (एक अन्य पोते) ने याचिका का विरोध किया। उन्होंने आरोप लगाया कि यह आवेदन अन्य दो पोते-पोतियों के कहने पर दायर किया गया है ताकि संपत्ति वापस हासिल की जा सके। उन्होंने कहा कि वे अपने दादा-दादी की देखभाल कर रहे हैं, उनके चिकित्सा खर्च वहन करते हैं और इसका प्रमाण मोतियाबिंद के ऑपरेशन से जुड़े रिकॉर्ड में मौजूद है।

कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता यह साबित करने में विफल रहे कि प्रतिवादी संख्या 5 पहले उनका भरण-पोषण कर रहा था और बाद में उसने ऐसा करना बंद कर दिया। याचिका में लगाए गए आरोप अस्पष्ट और अप्रमाणित पाए गए।

महत्वपूर्ण रूप से, कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि प्रतिवादी संख्या 3 और 4 ने ट्रिब्यूनल और हाईकोर्ट दोनों के समक्ष स्वीकार किया था कि वे अपने दादा का भरण-पोषण नहीं करना चाहते, लेकिन हस्तांतरण रद्द करवाना चाहते हैं।

अंततः, कोर्ट ने प्रतिवादी संख्या 5 (पोते) के पक्ष में किए गए संपत्ति हस्तांतरण को रद्द करने से इनकार कर दिया।

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