Income Tax Act| धारा 143(3) के तहत मूल निर्धारण पूर्ण होने के बाद चार वर्ष से अधिक समय बाद पुनर्मूल्यांकन अमान्य: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने यह माना है कि यदि आयकर अधिनियम की धारा 143(3) के तहत मूल निर्धारण (Original Assessment) किया जा चुका है, तो उसके चार वर्ष बीत जाने के बाद पुनर्मूल्यांकन (Re-assessment) की कार्यवाही अवैध है।
जस्टिस लिसा गिल और जस्टिस मीनाक्षी आई. मेहता की खंडपीठ ने कहा कि आकलन अधिकारी (Assessing Officer) को पुनः मूल्यांकन करने का अधिकार तभी है जब उसके पास कोई ठोस और वास्तविक सामग्री हो जिससे यह साबित हो सके कि कर योग्य आय का आकलन अधूरा या गलत हुआ है।
धारा 143(3) के तहत किया गया मूल्यांकन एक विस्तृत जांच प्रक्रिया के बाद होता है, जिसमें करदाता द्वारा दायर किए गए आयकर विवरण (Return of Income) में किए गए विभिन्न दावों, कटौतियों आदि की सत्यता की जांच की जाती है। इस प्रक्रिया में धारा 142(1), (2), (3) और धारा 143(2) के तहत नोटिस, जांच और सुनवाई शामिल होती है।
मामले में यह सवाल था कि जब करदाता (Assessee) की ओर से कोई छिपाव या गलत जानकारी नहीं दी गई हो, तो क्या चार वर्ष की अवधि बीत जाने के बाद पुनर्मूल्यांकन की कार्यवाही शुरू की जा सकती है, जबकि मूल निर्धारण पहले ही धारा 143(3) के तहत किया जा चुका था।
खंडपीठ ने कहा कि जब करदाता ने कोई गलत या झूठा खुलासा नहीं किया है, तो मूल्यांकन अधिकारी द्वारा बाद में अपने मत में परिवर्तन (Change of Opinion) के आधार पर पुनर्मूल्यांकन करना कानूनन उचित नहीं है।
इस मामले में अपीलकर्ता एक इंजीनियरिंग उत्पादों के निर्माण और निर्यात से जुड़ा हुआ था, जिसने 30.11.2003 को ₹2,96,59,322/- की कुल आय घोषित करते हुए रिटर्न दाखिल किया था। उसने आयकर अधिनियम की धारा 80-IB और 80HHC के तहत कटौती का दावा किया था।
16.03.2004 को यह रिटर्न धारा 143(1) के तहत प्रोसेस किया गया और जांच के लिए चयनित होने के बाद, धारा 143(3) के तहत मूल्यांकन अधिकारी ने ₹4,35,32,840/- की आय निर्धारित की।
बाद में 18.03.2010 को धारा 148 के तहत नोटिस जारी किया गया, जिसे 19.03.2010 को करदाता को सौंपा गया। करदाता ने आपत्ति उठाई कि जब कोई छिपाव या गलत जानकारी नहीं दी गई और मूल निर्धारण धारा 143(3) के तहत किया जा चुका था, तो चार वर्ष के बाद पुनर्मूल्यांकन की कार्यवाही नहीं की जा सकती।
सीआईटी (आयकर आयुक्त अपील) और आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण (ITAT) दोनों ने करदाता की अपील खारिज कर दी।
हालांकि, हाईकोर्ट ने पाया कि विभाग करदाता की ओर से किसी प्रकार के छिपाव या गलत विवरण का कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर सका। अतः अदालत ने यह माना कि चार वर्ष की अवधि बीतने के बाद पुनर्मूल्यांकन की कार्यवाही अवैध है, क्योंकि यह केवल “मत परिवर्तन” (Change of Opinion) पर आधारित थी।
इस प्रकार, अदालत ने अपीलकर्ता के पक्ष में निर्णय देते हुए पुनर्मूल्यांकन की कार्यवाही को निरस्त कर दिया।