पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने क्रूरता की FIR रद्द करने से इनकार किया, कहा- 23 साल पहले मरी सास पर आरोप टाइपिंग की गलती लगते हैं

Update: 2025-12-14 16:26 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने क्रूरता की FIR रद्द करने की याचिका खारिज की। कोर्ट ने कहा कि शिकायत में मरी हुई सास का ज़िक्र टाइपिंग की गलती लगता है। सिर्फ़ इसी आधार पर आपराधिक कार्यवाही रद्द नहीं किया जा सकता।

FIR में आरोप लगाया गया कि शिकायतकर्ता की सास, जिनकी 23 साल पहले ही मौत हो चुकी थी, उसे दहेज के लिए परेशान करती थी।

जस्टिस आलोक जैन ने कहा,

"पूरी FIR में 'सास' शब्द सिर्फ़ एक जगह इस्तेमाल किया गया। शिकायतकर्ता ने शिकायत की शुरुआत में सास का नाम कहीं भी शामिल नहीं किया। इसके अलावा, सास के खिलाफ़ एक भी आरोप नहीं लगाया गया, क्योंकि साफ़ तौर पर यह टाइपिंग की गलती या नज़रअंदाज़ी लगती है।"

कोर्ट ने आगे कहा कि FIR को पूरी तरह से पढ़ा जाना चाहिए और तथ्यों के विवादित सवाल हैं, जिन्हें सबूतों को देखने के बाद सुलझाने की ज़रूरत है।

FIR IPC की धारा 323, 498-A, 506, 509 और 34 के तहत दर्ज की गई।

याचिकाकर्ताओं के वकील मोहम्मद उज़ैर ने तर्क दिया कि FIR झूठी और मनगढ़ंत है, क्योंकि इसमें आरोप लगाया गया कि शिकायतकर्ता को उसकी सास दहेज की मांग पूरी न करने के लिए ताने मारती थी, जबकि शिकायतकर्ता की सास की 23 साल पहले ही मौत हो चुकी थी।

यह भी तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता नंबर 3 और 4, जो दिल्ली के रहने वाले थे, साझा घर में नहीं रहते थे और उन्हें झूठा फंसाया गया। याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा कि हालांकि चालान पेश किया जा चुका है, लेकिन इसे रिकॉर्ड पर नहीं रखा गया।

यह मानते हुए कि FIR रद्द करने के लिए अपने अंतर्निहित अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल करने का कोई आधार नहीं बनता है, हाईकोर्ट ने याचिका खारिज की और पक्षकारों को ट्रायल के दौरान अपने दावे पेश करने की अनुमति दी।

Title: Mohd. Arif and others v. State of Haryana and another

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