वॉलंटियर के नाम पर नागरिकों का शोषण कर रहे अधिकारी': पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने तीन दशकों से सेवारत होमगार्ड को नियमित करने का निर्देश दिया
लंबे समय से सेवारत कर्मियों के शोषण के विरुद्ध कड़ी टिप्पणी करते हुए पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने लगभग तीन दशकों से सेवारत एक होमगार्ड को नियमित करने का निर्देश दिया।
जस्टिस जगमोहन बंसल ने कहा,
"जो सदस्य दिन के कुछ भाग, महीने के कुछ भाग या वर्ष के कुछ भाग में काम करता है और अपनी आजीविका के लिए कोई अन्य कार्य करता है, उसे वॉलंटियर कहा जा सकता है। हालांकि, जो व्यक्ति तीन दशकों से बिना किसी रुकावट के पूरे दिन काम कर रहा है, उसे स्वयंसेवक नहीं कहा जा सकता।"
अदालत ने इस बात पर ज़ोर दिया कि यह अनुचित और अन्यायपूर्ण होगा यदि अन्य सभी विभागों के चतुर्थ या तृतीय श्रेणी के कर्मचारियों को दस वर्ष से अधिक की सेवा के आधार पर नियमित किया जाता है। हालांकि, होमगार्ड के सदस्यों को इस आधार पर लाभ से वंचित किया जाता है कि वे वॉलंटियर हैं।
पीठ ने आगे कहा,
"यहां किसी भी नौकरी/कार्य की स्वैच्छिक प्रकृति को समझना उचित है। यदि कोई व्यक्ति बिना किसी प्रतिफल के अपनी सेवा देने के लिए आगे आता है तो उसे स्वैच्छिक सेवा कहा जाता है। सेवा प्रदाता का उद्देश्य बिना किसी प्रतिफल के प्राप्तकर्ता की सेवा करना होता है। इसमें कोई प्रतिदान नहीं है। ऐसे देश में जहां नौकरियों की कमी है और गरीबी व्याप्त है, यह नहीं माना जा सकता कि कोई व्यक्ति दशकों तक वॉलंटियर के रूप में पूरे दिन काम करेगा। याचिकाकर्ता को कांस्टेबल के न्यूनतम वेतनमान के बराबर वेतन मिल रहा था। साथ ही धुलाई भत्ते जैसे अन्य भत्ते भी मिल रहे थे। याचिकाकर्ता की नियुक्ति पिछले दरवाजे से नहीं हुई थी।"
जज ने निष्कर्ष निकाला कि ये सभी तथ्य सामूहिक रूप से साबित करते हैं कि याचिकाकर्ता ने पारिश्रमिक के लिए काम किया, जिसे मानदेय कहा जाता है।
अदालत दो याचिकाकर्ताओं की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्हें 1992 में पंजाब सरकार द्वारा होमगार्ड/वॉलंटियर के रूप में भर्ती किया गया। उन्होंने 1992 से 2025 तक ड्राइवर के रूप में काम किया और उन्होंने बिना किसी रुकावट के काम किया। सेवा को नियमित करने की मांग करते हुए यह याचिका दायर की गई।
जस्टिस बंसल ने इस बात पर ज़ोर दिया,
"उनकी सेवा में कोई रुकावट नहीं थी। उनके पक्ष में किसी भी अदालत का कोई अंतरिम आदेश नहीं था। इसका मतलब है कि याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी के साथ तीन दशकों से ज़्यादा समय तक बिना किसी रुकावट के काम किया। प्रतिवादी उनकी सेवाओं से संतुष्ट था। वह ड्राइवर/गनमैन के पद पर कार्यरत है, इसलिए व्यावहारिक रूप से कोई और काम करना संभव नहीं। वह पूर्णकालिक कर्मचारी के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे हैं।"
अदालत ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि याचिकाकर्ताओं को नियमितीकरण का लाभ नहीं दिया जा सकता, क्योंकि उनकी नौकरी स्वैच्छिक है।
पीठ ने आगे कहा,
"गृह विभाग के निर्देशों और प्रतिवादी के तर्कों के अनुसार, एक स्टूडेंट/व्यापारी और यहां तक कि एक सरकारी कर्मचारी भी होमगार्ड का सदस्य हो सकता है, क्योंकि यह देश के नागरिकों का स्वैच्छिक योगदान है। यह सेवा के रूप में है। यह पारिश्रमिक वाली नौकरी नहीं है।"
पीठ ने कहा कि यह मानदेय वाली सेवा है और प्रतिवादी गृह विभाग द्वारा जारी निर्देशों के संग्रह और 1947 के अधिनियम तथा उसके तहत बनाए गए नियमों द्वारा परिकल्पित अवधारणा की गलत व्याख्या और दुरुपयोग करने की कोशिश कर रहा है।
उपरोक्त के आलोक में न्यायालय ने निर्णय दिया कि याचिकाकर्ता गुरपाल सिंह नियमितीकरण का हकदार है। तदनुसार, प्रतिवादी को उसे नियमित करने का निर्देश दिया जाता है।
नियमितीकरण का उचित आदेश छह माह के भीतर पारित किया जाएगा और यदि प्रतिवादी उक्त आदेश पारित करने में विफल रहता है तो उक्त अवधि की समाप्ति पर गुरपाल सिंह को नियमित माना जाएगा।
Title: HARDEV SINGH v. STATE OF PUNJAB AND OTHERS