NDPS Act | अदालत में उन याचिकाओं की बाढ़ आ गई है, जिनमें अभियुक्तों को दूसरों से बरामदगी के मामले में FIR में शामिल किया गया, हाईकोर्ट ने कानून के दुरुपयोग के संदेह में पंजाब से जवाब मांगा
ऐसे मामलों की बढ़ती संख्या को देखते हुए जिनमें अभियुक्तों से व्यक्तिगत रूप से कोई प्रतिबंधित पदार्थ बरामद नहीं होने के बावजूद FIR में शामिल किया गया, पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंसेज एक्ट (NDPS Act) के संदिग्ध दुरुपयोग पर पंजाब सरकार से जवाब मांगा।
अदालत ने व्यावसायिक मात्रा से संबंधित एक मादक पदार्थ मामले में अंतरिम-अग्रिम जमानत प्रदान की।
जस्टिस संदीप मौदगिल ने कहा,
"यह न्यायालय भी मानता है कि पिछले लगभग एक महीने से इसी तरह के कई मामले सामने आ रहे हैं, जिसके लिए याचिकाकर्ताओं के दावों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता, जिनमें या तो गैर-व्यावसायिक मात्रा में हेरोइन या एटिज़ोलम अल्प्राज़ोलम आदि जैसे किसी अन्य नशीले पदार्थ के मामले में लोगों को इस तरह से अभियुक्त बनाया जा रहा है कि एक व्यक्ति से बरामदगी नहीं हुई है बल्कि प्रकटीकरण विवरण प्राप्त करने के बाद राज्य में गिरफ्तार व्यक्तियों की संख्या बढ़ाने के लिए कई अन्य व्यक्तियों को अभियुक्त बनाया जा रहा है।"
न्यायालय NDPS Act की धारा 22, 29 के तहत गिरफ्तारी-पूर्व ज़मानत पर सुनवाई कर रहा था।
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता को राज्य सरकार द्वारा इस मामले में झूठा फंसाया गया।
उन्होंने बताया कि 01.03.2025 को पुलिस दल ने कुलदीप सिंह उर्फ कीपा और बलिबीर सिंह उर्फ बीरा को गिरफ्तार किया और उनके पास से 8.280 ग्राम एटिज़ोलम नामक नशीली गोलियाँ बरामद कीं, जो व्यावसायिक मात्रा के दायरे में आती हैं। सह-अभियुक्त के खुलासे के आधार पर वर्तमान याचिकाकर्ता का नाम FIR में दर्ज किया गया।
यह तर्क दिया गया कि प्रत्येक पट्टी की कीमत 30 रुपये थी, जिसमें एटिज़ोलम की 15 गोलियाँ थीं और इस मामले में बरामद 8.280 ग्राम वजन वाली 90 गोलियों की कुल कीमत 100 रुपये से अधिक नहीं थी।
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि अब राज्य सरकार की कार्यप्रणाली बन गई कि आगामी विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए राज्य के मुख्यमंत्री द्वारा दिए गए नारे - युद्ध नशे विरुद्ध की आड़ में मतदाताओं को लुभाने के लिए अपने स्वयं के आँकड़े गढ़े जाएँ।
प्रस्तुतियाँ सुनने के बाद न्यायालय ने कहा कि प्रतिबंधित वस्तु की मात्रा व्यावसायिक प्रकृति की है लेकिन कथित प्रतिबंधित वस्तु के मूल्य भाग और याचिकाकर्ता की ओर से दिए गए दावों पर विचार किया जाना आवश्यक है, जिसके विरुद्ध यह न्यायालय संविधान और मामले का संरक्षक होने के नाते मूकदर्शक बनकर नहीं बैठ सकता।"
राज्य के वकील प्रतिबंधित वस्तु की लागत और याचिकाकर्ता के पूर्ववृत्त के संबंध में इस तथ्य से इनकार नहीं कर सके कि जाँच अधिकारी द्वारा प्रस्तुत रिकॉर्ड और जानकारी के अनुसार वह किसी अन्य मामले में शामिल नहीं है।
जस्टिस मौदगिल ने कहा कि पंजाब राज्य प्रशासन अपने नागरिकों को सुरक्षित वातावरण प्रदान करने में विफल रहा है। अदालत स्वतः संज्ञान लेकर हस्तक्षेप कर सकती है और राज्य को अनुकूल वातावरण बनाने के लिए प्रभावी उपाय करने का निर्देश दे सकती है।
न्यायालय ने यह भी कहा कि निचली अदालत ने अपने पिछले आदेश में बरामद मात्रा को गलती से 8.20 ग्राम दर्ज कर दिया, जबकि FSL रिपोर्ट में यह 7.20 ग्राम बताई गई थी।
न्यायालय ने राज्य सरकार से इस संबंध में निर्देश प्राप्त करने को कहा।
याचिकाकर्ता को अंतरिम अग्रिम ज़मानत देते हुए न्यायालय ने उसे जाँच में शामिल होने और BNSS की धारा 482(2) के तहत शर्तों का पालन करने का निर्देश दिया।
मामले की सुनवाई आगे के विचार के लिए 8 अगस्त तक के लिए स्थगित की जाती है।
टाइटल: मनजीत सिंह @ रोडू बनाम पंजाब राज्य