PMLA Act| मनी लॉन्ड्रिंग राष्ट्र की प्रगति में बाधा डालती है, धारा 45 के तहत जमानत की कठोरता को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए: पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट

Update: 2024-04-13 07:10 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने 1626.7 करोड़ रुपये की वित्तीय धोखाधड़ी से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपी व्यक्ति को जमानत देने से इनकार कर दिया।

न्यायालय ने कहा कि धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA Act) की धारा 45 के तहत जमानत देने के लिए बहुत ही उच्च मानदंड निर्धारित किए गए। धारा 45 के अनुसार, धन शोधन मामले में आरोपी को जमानत तभी दी जा सकती है, जब दो शर्तें पूरी हों - पहली नजर में यह संतुष्टि होनी चाहिए कि आरोपी ने कोई अपराध नहीं किया है और जमानत पर रहते हुए उसके कोई अपराध करने की संभावना नहीं है।

जस्टिस मंजरी नेहरू कौल ने कहा,

"इस बात पर जोर दिया जाना चाहिए कि PMLA Act के तहत अपराध अपनी एक अलग श्रेणी बनाते हैं और इन्हें अत्यंत गंभीरता से लिया जाना चाहिए, क्योंकि ऐसे अपराध न केवल राष्ट्र के आर्थिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं, बल्कि देश की प्रगति में भी बाधा डालते हैं।"

न्यायालय ने कहा कि इस तरह के अपराध गहन योजना और गणना के साथ किए जाते हैं तथा उन्हें गुप्त रूप से छिपाया जाता है। इसके कारण जांच एजेंसी को एकत्रित सामग्री की बारीकी से जांच करनी पड़ती है, जिससे ऐसे घोटालों को उजागर किया जा सके, जिन्हें यदि अनदेखा किया गया तो निस्संदेह देश की आर्थिक सेहत के लिए घातक होगा।

इस प्रकार न्यायालय ने कहा,

"PMLA Act की धारा 45 की कठोरता, जो PMLA Act के तहत जमानत देने के लिए असाधारण रूप से उच्च मानदंड निर्धारित करती है, उसको नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।"

PMLA Act की धारा 3 और 4 के तहत आरोपित 74 वर्षीय व्यक्ति सुरजीत कुमार बंसल द्वारा सीआरपीसी की धारा 439 के तहत जमानत याचिका दायर की गई।

यह आरोप लगाया गया कि बंसल और उनकी फर्म जो आरोपी कंपनी के वैधानिक लेखा परीक्षक के रूप में काम कर रहे थे। उन्होंने विभिन्न प्रमाणपत्र जारी किए, जिससे बैंकों के एक संघ द्वारा आरोपी कंपनी को लोन देने में सुविधा हुई।

याचिकाकर्ता ने ऑडिट रिपोर्ट में जानबूझकर यह खुलासा नहीं किया कि शेल कंपनियों के इस्तेमाल के जरिए बैंक फंड को अवैध तरीके से ट्रांसफर और डायवर्ट किया जा रहा है।

यह भी कहा गया कि बंसल ने आरोपी कंपनी को फर्जी चार्टर्ड अकाउंटेंट सर्टिफिकेट जारी करके सहायता प्रदान की, जिसका इस्तेमाल बैंकों के कंसोर्टियम से लोन लेने के लिए किया गया।

बयानों को सुनने के बाद कोर्ट ने याचिकाकर्ता की इस दलील को खारिज कर दिया कि उसकी गिरफ्तारी PMLA Act की धारा 19 का उल्लंघन करती है।

इसमें कहा गया कि गिरफ्तारी के आधारों के विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि गिरफ्तारी अधिकारी ने जांच के आधार पर स्पष्ट रूप से बताया कि आरोपी कंपनी के निदेशकों और प्रमोटरों ने याचिकाकर्ता की सक्रिय सहायता और मदद से जाली दस्तावेजों के जरिए बैंक धोखाधड़ी की।

यह स्पष्ट है कि गिरफ्तारी अधिकारी ने याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोपों से अवगत कराने के लिए विचाराधीन अपराध में उसकी संलिप्तता को व्यापक रूप से रेखांकित किया कार्यप्रणाली को स्पष्ट किया।

जस्टिस कौल ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी की आवश्यकता गिरफ्तारी के आधार से और भी स्पष्ट होती है। इसमें यह स्पष्ट रूप से कहा गया कि धन के स्रोत का पता लगाने और याचिकाकर्ता के विशेष ज्ञान के भीतर विभिन्न चैनलों के माध्यम से छिपाए गए अपराध की पूरी आय का पता लगाने के लिए उसकी हिरासत की आवश्यकता है।

न्यायाधीश ने यह भी नोट किया कि याचिकाकर्ता 20 जुलाई, 2022 को समन जारी होने के बावजूद न तो पेश हुआ और न ही जांच में भाग लिया, जिससे जांच को प्रभावी ढंग से समाप्त करने के लिए उसकी गिरफ्तारी को उचित ठहराया जा सकता है।

न्यायालय ने कहा,

“इसके अलावा याचिकाकर्ता का मामला यह भी नहीं है कि उसे उचित समय के भीतर गिरफ्तारी के आधार नहीं बताए गए। इसलिए इन परिस्थितियों में न तो याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी को PMLA की धारा 19 का उल्लंघन माना जा सकता है और न ही रिमांड आदेश को अवैध या यांत्रिक प्रकृति का माना जा सकता है।”

जस्टिस कौल ने यह भी स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता अनुसूचित अपराध से संबंधित एफआईआर में शामिल नहीं है। हालांकि, यह ED को PMLA Act के तहत कार्यवाही शुरू करने से नहीं रोकेगा।

कोर्ट ने कहा,

"यह सुस्थापित कानून है कि PMLA Act की धारा 3 के तहत अपराध के आरोपी व्यक्ति को अनुसूचित अपराध का आरोपी होना आवश्यक नहीं है।"

न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि PMLA Act के तहत अपराध गहन योजना और गणना के साथ किए जाते हैं तथा उन्हें गुप्त रूप से छिपाया जाता है। इससे जांच एजेंसी को एकत्रित सामग्री की बारीकी से जांच करने की आवश्यकता होती है, जिससे ऐसे घोटालों को उजागर किया जा सके, जिन्हें यदि अनदेखा किया गया तो निस्संदेह देश की आर्थिक सेहत के लिए घातक होगा।

उपरोक्त के आलोक में न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ 1626.7 करोड़ रुपये की बड़ी वित्तीय धोखाधड़ी से जुड़े आरोपों के कारण इस स्तर पर उसे जमानत पर रिहा करने का कोई आधार नहीं बनता।

परिणामस्वरूप याचिका खारिज कर दी गई।

केस टाइटल- सुरजीत कुमार बंसल बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो और अन्य

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