पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने SC/ST Act के गलत प्रावधान के तहत गिरफ्तार किशोर को दी गई अग्रिम जमानत रद्द करने से इनकार किया
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) 1989 अधिनियम (SC/ST Act) के गलत प्रावधान के तहत सेशन कोर्ट द्वारा अनुसूचित जाति समुदाय के सदस्य के साथ दुर्व्यवहार करने और उस पर हमला करने के आरोपी किशोर को दी गई जमानत रद्द करने से इनकार किया।
सेशन कोर्ट ने पुलिस द्वारा लागू किए गए SC/ST Act की धारा 3 (1) (आर) के प्रावधान पर विचार करते हुए आरोपी को कथित तौर पर जमानत दी थी, जो किसी भी स्थान पर सार्वजनिक दृश्य में अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को अपमानित करने पर दंडनीय है। हालांकि न्यायालय ने कहा कि प्रथम दृष्टया अपमानजनक शब्द सार्वजनिक दृश्य में नहीं बोले गए।
जस्टिस अनूप चितकारा ने कहा,
"कथित अपमानजनक शब्द सार्वजनिक दृश्य में नहीं बोले गए थे; इस प्रकार, धारा 3 (1) (आर) के तहत अपराध प्रथम दृष्टया लागू नहीं होगा, लेकिन धारा 3 (2) (वीए) के तहत अपराध आकर्षित करेगा। इस प्रकार, न्यायालय ने दंडात्मक प्रावधान को सही तरीके से लागू नहीं किया। जैसा भी हो, अब यह न्यायालय SCSTPOA की धारा 3 (2) (VA) के तहत किए गए अपराध पर विचार करेगा लेकिन फिर भी यह आरोपी को प्री-ट्रायल हिरासत में भेजने का मामला नहीं है।"
न्यायालय ने कहा कि सख्त शर्त लगाने से यह सुनिश्चित होगा कि आरोपी कथित अपराध को दोबारा नहीं दोहराएगा।
ये टिप्पणियां कथित पीड़ित द्वारा धारा 439(2) CrPc के तहत दी गई गिरफ्तारी से पहले जमानत रद्द करने की याचिका पर सुनवाई करते हुए की गईं।
एफआईआर के अनुसार वर्तमान याचिका में आरोपी सह-आरोपी के साथ कथित पीड़ित के घर पहुंचे उसे रॉड से पीटना शुरू कर दिया और जातिवादी टिप्पणी की।
पीड़ित के वकील ने कहा कि जांचकर्ता द्वारा गलत दंडात्मक प्रावधान जोड़ा गया। यहां तक कि अदालत ने भी गलत प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए जमानत दी ऐसे में केवल इस आधार पर जमानत रद्द की जानी चाहिए और मामले को वापस भेजा जाना चाहिए।
जवाब में राज्य के वकील ने कहा कि MLR के अनुसार शिकायतकर्ता के शरीर पर कुल 5 चोटें थीं। मामले की जांच के दौरान अपीलकर्ता की एक्स-रे रिपोर्ट देखने के बाद सभी चोटों को साधारण प्रकृति का बताया गया।
राज्य के वकील ने यह भी कहा कि अपराध के समय आरोपी किशोर था।
प्रस्तुतिया सुनने के बाद न्यायालय ने SC/ST Act की धारा 3 (2) (वीए) का उल्लेख किया, जिसके अनुसार अधिनियम की अनुसूची में निर्दिष्ट किसी व्यक्ति या संपत्ति के विरुद्ध कोई अपराध करना, यह जानते हुए कि वह व्यक्ति अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य है या ऐसी संपत्ति ऐसे सदस्य की है, भारतीय दंड संहिता और धारा 3[(1)(आर) के तहत निर्दिष्ट दंड के साथ दंडनीय होगा।
न्यायाधीश ने कहा कि भले ही वह SCSTPOA की धारा 3(2)(VA) के तहत किए गए अपराध पर विचार करता है लेकिन फिर भी यह अभियुक्त को प्री-ट्रायल हिरासत में भेजने का मामला नहीं है।
उसने यह भी कहा,
"अभियोजन शुरू करने या आरोप तय करने के लिए साक्ष्य प्रथम दृष्टया पर्याप्त हो सकते हैं, लेकिन न्यायालय उस स्तर पर साक्ष्य पर विचार नहीं कर रहा है, बल्कि जमानत रद्द करने के उद्देश्य से उसका विश्लेषण कर रहा है।"
पृथ्वी राज बनाम भारत संघ [एआईआर 2020 एससी 1036] पर भरोसा किया गया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा,
"धारा 438 CrPc के प्रावधानों की प्रयोज्यता के संबंध में यह 1989 के अधिनियम के तहत मामलों पर लागू नहीं होगा। हालांकि यदि शिकायत 1989 के अधिनियम के प्रावधानों की प्रयोज्यता के लिए प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनाती है तो धारा 18 और 18ए (i) द्वारा बनाई गई बाधा लागू नहीं होगी।"
प्रस्तुत किए गए सबमिशन का विश्लेषण करते हुए कोर्ट ने कहा,
यह प्रतिवादी नंबर 2 को दी गई जमानत रद्द करने का मामला नहीं है। हालांकि कोर्ट ने आरोपी पर कुछ शर्तें लगाईं।
उपरोक्त के आलोक में याचिका का निपटारा किया गया।
केस टाइटल: जज्बात नागर बनाम हरियाणा राज्य और अन्य