NDPS Act | जब्त ड्रग के रंग और FSL रिपोर्ट में मामूली अंतर के आधार पर जमानत देना अन्यायपूर्ण: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

Update: 2025-05-03 06:27 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने एक NDPS मामले में, जिसमें हेरोइन की कमर्शियल मात्रा शामिल है, कहा कि केवल इस आधार पर जमानत नहीं दी जा सकती कि जब्त किए गए मादक पदार्थ के रंग और फॉरेंसिक साइंस लैबोरेटरी (FSL) रिपोर्ट में मामूली अंतर है।

याचिकाकर्ता के वकील ने मुख्य रूप से इस आधार पर जमानत मांगी थी कि जब्ती मेमो में ड्रग का रंग भूरा बताया गया, जो उनके अनुसार ब्राउन होता है, जबकि FSL रिपोर्ट में उसे ऑफ-व्हाइट रंग का बताया गया।

कोर्ट ने इसपर कहा,

"थोड़ी बहुत कल्पना रंग को बदल सकती है और किसी सामान्य व्यक्ति के लिए यह बताना बहुत कठिन है कि रंग ऑफ-व्हाइट है या भूरा। इसके अलावा, भूरा' का मतलब ब्राउन नहीं होता। यह सफेद और ब्राउन के बीच का एक शेड होता है। सिर्फ इसलिए कि लैब में ऑफ-व्हाइट शब्द का प्रयोग हुआ है। इसका यह मतलब नहीं कि सैंपल शुरू में ब्राउन था। लैब के वैज्ञानिकों की वैज्ञानिक दृष्टिकोण अधिक सटीक होती है, जबकि आम आदमी या पुलिस अधिकारी रंग विशेषज्ञ नहीं होते।"

कोर्ट ने आगे कहा कि बिना जांच अधिकारी को रंग के इस अंतर को स्पष्ट करने का मौका दिए, केवल इस मामूली अंतर के आधार पर जमानत देना अत्यंत अन्यायपूर्ण होगा।

यह मामला NDPS Act की धारा 21-सी और 29 के तहत दर्ज है। अभियोजन पक्ष के अनुसार संयोगवश की गई जांच में पुलिस ने याचिकाकर्ता सोनू और सह-आरोपी से 305 ग्राम हेरोइन बरामद की थी।

राज्य के वकील ने दलील दी कि भूरा और ऑफ-व्हाइट के बीच कोई ठोस अंतर नहीं है। पंजाबी भाषा में ऑफ-व्हाइट को भी भूरा कहा जा सकता है। यह व्यक्ति की धारणा और दृष्टि पर निर्भर करता है। कुछ लोग रंगों के प्रति अंधे भी हो सकते हैं।

कोर्ट ने यह भी नोट किया कि इस केस में व्यावसायिक मात्रा शामिल है, इसलिए एक्ट की धारा 37 की कठोर शर्तें लागू होती हैं।

कोर्ट ने टिप्पणी की,

"NDPS Act की धारा 37 की बाधाओं को पार करना जैसे बाँझ अंडों से चूजा निकालने जैसा है।"

इसका उद्देश्य यह है कि व्यावसायिक मात्रा के मामलों में आरोपी को जमानत तभी मिल सकती है, जब दोनों शर्तें पूरी की जाएं:

1. कोर्ट को विश्वास हो कि आरोपी फिर से अपराध नहीं करेगा।

2. आरोपी का मामला प्रथम दृष्टया निर्दोष प्रतीत हो।

कोर्ट ने यह भी कहा कि आरोपी सोनू की अब तक की हिरासत 1 साल 8 महीने रही है, जो 10 साल की न्यूनतम सजा की तुलना में लंबी नहीं मानी जा सकती। इसलिए जमानत का आधार नहीं बनता।

टाइटल: सोनू @ रिंका बनाम पंजाब राज्य

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