कोर्ट समन में जालसाज़ी न्यायपालिका में जनता के विश्वास को कम करती है: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने समझौते के बावजूद अग्रिम ज़मानत देने से किया इनकार
न्यायिक दस्तावेज़ों में जालसाज़ी की गंभीरता पर ज़ोर देते हुए पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कोर्ट समन में जालसाज़ी करने की आरोपी महिला को अग्रिम ज़मानत देने से इनकार किया। कोर्ट ने कहा कि इस तरह के कृत्यों से "न्यायपालिका में जनता के विश्वास पर गंभीर प्रभाव पड़ता है और जनता के विश्वास को कमज़ोर करता है।"
याचिकाकर्ता पर एक सह-अभियुक्त के प्रकटीकरण बयान के आधार पर मामला दर्ज किया गया, जिसने कथित तौर पर हिसार के एडिशनल सेशन जज की कोर्ट द्वारा जारी किए गए न्यायिक समन में जालसाज़ी की, जिसमें फर्जी UID नंबर है और एक मामले में एक व्यक्ति को 12.06.2025 को, जो गर्मी की छुट्टियों के दौरान पड़ने वाली तारीख थी, पेश होने का निर्देश दिया। जाली समन में मिशी शर्मा नामक एक व्यक्ति को कथित तौर पर भरण-पोषण के रूप में 10 लाख रुपये के भुगतान का भी उल्लेख है।
जस्टिस सुमीत गोयल ने इस आधार पर राहत देने से इनकार किया कि दोनों पक्षों के बीच सौहार्दपूर्ण समझौता हो गया।
कोर्ट ने कहा,
"इस मामले में इस तरह की दलील बेकार है। आरोप जाली न्यायिक समन तैयार करने और प्रसारित करने से संबंधित हैं, जो न्याय प्रणाली की पवित्रता पर आघात करने वाला एक गंभीर अपराध है।"
कोर्ट इस तथ्य से अनभिज्ञ नहीं हो सकता कि इस प्रकार का अपराध न केवल व्यक्ति को प्रभावित करता है, बल्कि समग्र समुदाय में असुरक्षा की भावना भी पैदा करता है। जज ने आगे कहा कि जांच के चरण में ऐसे अपराधियों को संरक्षण देने से समाज में गलत संकेत जाएगा और अन्य लोगों को भी इसी तरह की गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल होने का प्रोत्साहन मिलेगा।
कोर्ट ने कहा कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की धारा 482 के तहत शक्ति निर्दोष व्यक्तियों को अनावश्यक उत्पीड़न और झूठे आरोपों से बचाने के लिए है। हालांकि, यह उन लोगों पर लागू नहीं की जा सकती, जिनके खिलाफ जांच के दौरान एकत्रित सामग्री द्वारा समर्थित प्रथम दृष्टया गंभीर आरोप हैं।
कोर्ट ने कहा कि यदि आरोप सत्य पाए जाते हैं तो ये न्यायिक समन में जालसाजी, कोर्ट का प्रतिरूपण और धन की मांग करने के जानबूझकर किए गए प्रयास को दर्शाते हैं, जो न्याय प्रणाली की पवित्रता पर आघात करता है। ऐसे अपराधों की पुनरावृत्ति रोकने के लिए एक सशक्त और सैद्धांतिक न्यायिक प्रतिक्रिया आवश्यक है।
यह याचिका रिंकू शर्मा नामक व्यक्ति ने दायर की, जिसमें साइबर अपराध पुलिस स्टेशन में भारतीय दंड संहिता, 2023 (BNS) की धारा 318(4), 319, 336(3), 337, 340 और आयकर अधिनियम, 2023 की धारा 66-डी के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दर्ज FIR में BNS, 2023 की धारा 482 के तहत अग्रिम जमानत दिए जाने की मांग की गई।
प्रतिवेदनों को सुनने के बाद कोर्ट ने कहा,
"इस प्रकार का अपराध गंभीर है और जाली दस्तावेजों के स्रोत का पता लगाने, इसके लिए इस्तेमाल किए गए उपकरणों की जांच करने, यदि कोई बड़ी साजिश है तो उसका पता लगाने और प्रत्येक आरोपी की भूमिका का पता लगाने के लिए याचिकाकर्ता से हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता है।"
इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी कहा कि इस स्तर पर कोई भी ऐसा कारण यहां तक कि कोई भी उचित कारण भी नहीं दिखाया गया, जिससे यह पता चल सके कि याचिकाकर्ता को वर्तमान प्राथमिकी में झूठा फंसाया गया।
जस्टिस गोयल ने इस बात पर प्रकाश डाला कि सह-अभियुक्त के प्रकटीकरण कथन में याचिकाकर्ता को जाली समन के स्रोत के रूप में स्पष्ट रूप से दर्शाया गया। सह-अभियुक्त के डिवाइस से प्राप्त स्क्रीनशॉट इस कथन की पुष्टि करते हैं।
जांच अभी प्रारंभिक चरण में है। न्यायालय ने आगे कहा कि यहां यह उल्लेख करना उचित होगा कि अग्रिम ज़मानत देने की याचिका पर विचार करते समय कोर्ट को व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा और सामाजिक हितों की रक्षा के बीच संतुलन बनाना होता है।
आरोप की गंभीरता को देखते हुए कोर्ट ने राहत देने से इनकार किया।
Title: Rinku Sharma v. State of Haryana