असफल सगाई 'सहमति से संबंध' नहीं बनाती, शादी के झूठे वादे पर बलात्कार: पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट

Update: 2025-09-20 04:29 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि वयस्कों के बीच सहमति से बनाए गए शारीरिक संबंध को केवल इसलिए बलात्कार नहीं माना जा सकता, क्योंकि वह विवाह में परिणत नहीं हुआ।

अदालत ने कथित बलात्कार के आरोप में एक व्यक्ति के खिलाफ दर्ज FIR यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उसने अपनी मंगेतर के साथ सहमति से संबंध बनाए, जिसमें रोका समारोह के बाद दोनों पक्षों के बीच मतभेदों के कारण विवाह नहीं हो सका।

जस्टिस कीर्ति सिंह ने स्पष्ट किया,

"इस आधार पर बलात्कार का अपराध दर्ज करने के लिए कि शादी के झूठे बहाने पर सहमति प्राप्त की गई। यह स्थापित किया जाना चाहिए कि दोनों पक्षकारों के बीच यौन संबंध शुरू से ही शादी के झूठे वादे के तहत बनाए गए। आरोपी का शिकायतकर्ता से शादी करने का कभी कोई इरादा नहीं था।"

अदालत ने आगे कहा कि इसी तरह केवल इस आधार पर कि सहमति से बने जोड़े के बीच संबंध विवाह में परिणत नहीं हो सका, किसी व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू करने का आधार नहीं बनाया जा सकता।

इसने स्पष्ट किया कि अदालतों को ऐसे प्रत्येक मामले में सावधानीपूर्वक जांच करनी चाहिए कि क्या आरोपी का वास्तव में पीड़िता से शादी करने का इरादा था, या उसने अपनी इच्छा पूरी करने के लिए केवल दुर्भावना से झूठा वादा किया था।

अदालत भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376(2)(एन) के तहत दर्ज FIR रद्द करने की याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

शिकायत के अनुसार, महिला और पुरुष दोस्त बन गए और बाद में उनकी सगाई हो गई। प्रेम प्रसंग के दौरान, वे सहमति से संबंध बनाने लगे। पुरुष और उसके परिवार ने कथित तौर पर एक महंगी शादी और एक एसयूवी की मांग की। बाद में याचिकाकर्ता ने उसे बताया कि उसका परिवार उनके इस रिश्ते के खिलाफ है और उसने शादी रद्द कर दी।

बयानों पर सुनवाई के बाद अदालत ने अमोल भगवाल नेहुल बनाम महाराष्ट्र राज्य और एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जिसमें उसने एक 25 वर्षीय स्टूडेंट के खिलाफ यह कहते हुए बलात्कार का मामले खारिज कर दिया था कि रिश्ता पूरी तरह से सहमति से था। उक्त स्टूडेंट पर शादी का झूठा वादा करके महिला के साथ यौन संबंध बनाने का आरोप था।

जोथिरागवन बनाम राज्य प्रतिनिधि मामले का भी हवाला दिया गया। पुलिस निरीक्षक द्वारा दायर अन्य मामले में, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि विवाह के वादे का उल्लंघन स्वतः ही बलात्कार नहीं माना जाता, जब तक कि सहमति के समय धोखाधड़ी का इरादा न हो।

वर्तमान मामले में अदालत ने कहा कि स्वीकार्य स्थिति यह है कि दोनों पक्ष लंबे समय से सहमति से संबंध में थे। उनके परिवारों के बीच विवाह की बातचीत भी हुई थी, जिसके बाद रोका समारोह भी हुआ था।

पक्षकारों के बीच विवाह की तिथि भी नवंबर 2024 तय की गई। हालांकि, दोनों पक्षों के बीच उत्पन्न हुए अपूरणीय मतभेदों के कारण यह संभव नहीं हो सका।

जस्टिस सिंह ने इस बात पर प्रकाश डाला कि शिकायतकर्ता महिला यह साबित करने के लिए कोई सबूत पेश करने में विफल रही कि दोनों के बीच संबंध सहमति से नहीं थे या याचिकाकर्ता का विवाह के झूठे बहाने से उसे शारीरिक संबंध बनाने के लिए धोखा देने का कोई इरादा था।

अदालत ने आगे कहा,

"न्यायिक रिकॉर्ड से यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता और (शिकायतकर्ता), दोनों सुशिक्षित और परिपक्व वयस्क के बीच संबंध शुरू से ही सहमति से थे।"

अदालत ने कहा कि यदि प्रतिवादी का मामला स्वीकार भी कर लिया जाए तो भी ऐसा नहीं लगता कि याचिकाकर्ता द्वारा किया गया विवाह का वादा दुर्भावना से किया गया था।

अदालत ने आगे कहा,

"वास्तव में दोनों पक्ष विवाह करने के लिए तैयार थे, जो दुर्भाग्य से नहीं हो सका, जिसके कारण दोनों पक्षों और उनके परिवारों के बीच संबंध खराब हो गए। बाद में यह FIR दर्ज की गई।"

पीठ ने कहा कि वर्तमान मामला एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जब किसी स्थिति को आपराधिक रंग दिया जाता है, जहां सहमति से बनाया गया संबंध एक पक्ष द्वारा वांछित तरीके से नहीं बनता है, जिसे अदालतें जारी रखने की अनुमति नहीं दे सकतीं, क्योंकि यह कानून की प्रक्रिया का घोर दुरुपयोग है।

उपरोक्त के आलोक में अदालत ने FIR रद्द कर दी।

Title: XXX v. XXXX

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