लापता कर्मचारी के आश्रित, कर्मचारी के लापता होने के सात साल बाद अनुग्रह राशि के हकदार: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

Update: 2025-02-26 12:49 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के जज जस्टिस जगमोहन बंसल की पीठ ने माना कि लापता कर्मचारी के आश्रित, कर्मचारी के लापता होने के सात साल बाद अनुग्रह राशि के हकदार हैं।

पृष्ठभूमि तथ्य

याचिकाकर्ता के पिता नगर समिति, अंबाला में चुंगी चपरासी के पद पर कार्यरत थे। वे 31.10.1990 को रिटायर होने वाले थे। लेकिन वे 01.05.1990 को लापता हो गए। उनके रिटायरमेंट की तिथि तक उनका पता नहीं लगाया जा सका। प्रतिवादी ने उन्हें 31.10.1990 से रिटायरमेंट माना। तदनुसार, उनकी विधवा को ग्रेच्युटी, अवकाश नकदीकरण और भविष्य निधि का भुगतान किया।

उस समय याचिकाकर्ता विवाहित थी, लेकिन 1994 में उसके पति की मृत्यु हो गई। वह अपनी मां पर आश्रित हो गई, जिसके पास आय का कोई स्रोत नहीं था। अपने पिता को 'मृत' घोषित किए जाने के बाद याचिकाकर्ता ने अनुकंपा नियुक्ति के लिए प्रतिवादी के समक्ष दावा दायर किया। प्रतिवादी ने 25.08.1998 के आदेश के तहत उसके दावे को इस आधार पर खारिज कर दिया कि विधवा बेटी को अनुकंपा नियुक्ति का कोई प्रावधान नहीं है। इसलिए उसे आश्रित नहीं माना जा सकता।

इससे व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने रिट याचिका दायर कर 25.08.1998 के उस आदेश को खारिज करने की मांग की, जिसके तहत प्रतिवादी ने अनुकंपा नियुक्ति के लिए उसका दावा खारिज कर दिया था।

याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि 2003 की नीति के अनुसार आश्रितों को 2.50 लाख रुपये की अनुग्रह राशि मिलनी चाहिए। आगे यह भी प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ता नीति के अनुसार 15,000 रुपये की अनुग्रह राशि पाने की हकदार थी, जो उसके पिता की मृत्यु की तिथि पर लागू थी। हालांकि उक्त राशि याचिकाकर्ता या उसकी मां को नहीं दी गई।

याचिकाकर्ता ने आगे तर्क दिया कि वह 2003 की पॉलिसी से मिलने वाले लाभ की हकदार नहीं हो सकती। हालांकि, वह 1970 की पॉलिसी के लाभ की हकदार थी। इस स्तर पर, वह अनुकंपा नियुक्ति का दावा नहीं कर सकती। हालांकि, वह अनुग्रह राशि के हकदार हैं।

दूसरी ओर, प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता के पिता को वेतन दिया गया और उसकी मां को ग्रेच्युटी, अवकाश नकदीकरण और भविष्य निधि का भुगतान किया गया। अनुकंपा नियुक्ति का कोई सवाल ही नहीं था, क्योंकि प्रचलित नीति के अनुसार, विधवा बेटी अनुकंपा नियुक्ति की हकदार नहीं थी। प्रतिवादियों ने आगे तर्क दिया कि याचिकाकर्ता कर्मचारी की मृत्यु के समय भी विवाहित बेटी थी, और उसने 1998 में दावा दायर किया था।

अदालत के निष्कर्ष

अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता के पिता मई 1990 में लापता हो गए और वे 31.10.1990 को सेवानिवृत्त होने वाले थे। उन्हें सम्मानपूर्वक रिटायर किया गया तथा उस अवधि के लिए वेतन का भुगतान किया गया। उनके परिवार को ग्रेच्युटी, अवकाश नकदीकरण तथा भविष्य निधि का भुगतान किया गया। याचिकाकर्ता ने 1998 में अनुकंपा नियुक्ति के लिए दावा प्रस्तुत किया, जिसे प्रतिवादी ने इस आधार पर अस्वीकार कर दिया कि वह 'आश्रित' की श्रेणी में नहीं आती।

अदालत ने आगे कहा कि जिस समय कर्मचारी लापता हुई उस समय 1970 की नीति लागू थी। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता के परिवार को अनुग्रह राशि नहीं मिली, जबकि उसके पिता सेवा में रहते हुए लापता हो गए। अदालत ने कहा कि भुगतान न करने का कारण यह हो सकता है कि कर्मचारी को उसकी सेवानिवृत्ति की तिथि से पहले मृत घोषित नहीं किया गया।

अदालत ने माना कि लापता होने की तिथि से सात वर्ष की समाप्ति के बाद मृत घोषित किया जाता है। अदालत ने माना कि मृतक कर्मचारी का परिवार 15,000 रुपये की अनुग्रह राशि पाने का हकदार था, जो परिवार को नहीं दी गई।

न्यायालय ने प्रतिवादी को 50,000/- रुपये का एकमुश्त मुआवजा देने का निर्देश दिया, जिसमें 15,000 रुपये की मूल राशि और माना गया ब्याज शामिल है। न्यायालय ने निर्देश दिया कि दो महीने के भीतर आवश्यक कार्रवाई की जानी चाहिए।

उपर्युक्त टिप्पणियों के साथ रिट याचिका का निपटारा किया गया।

केस टाइटल: भूपिंदर कौर बनाम हरियाणा राज्य और अन्य

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