सीनियरिटी का पुनर्मूल्यांकन किए बिना आरक्षित वर्ग को लगातार पदोन्नति का लाभ देना समानता के अधिकार का उल्लंघन: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 में निहित समानता का सिद्धांत निष्पक्ष एवं न्यायपूर्ण शासन की आधारशिला है।
अदालत ने कहा कि सेवा पदोन्नति के संदर्भ में यह सिद्धांत यह अनिवार्य करता है कि किसी भी कर्मचारी को - चाहे वह आरक्षित वर्ग का हो या सामान्य वर्ग का - पद में समानता प्राप्त होने के बाद स्थायी रूप से लाभ या हानि की स्थिति में नहीं रखा जाना चाहिए।
वर्तमान मामले में एक कर्मचारी 13 वर्ष की आयु प्राप्त करने के बाद रिटायर हुआ। अदालत ने हरियाणा सरकार को उसके वेतन में वृद्धि करने और अन्य लाभ प्रदान करने का निर्देश दिया और कहा कि सीनियर को केवल इसलिए उनके उचित वेतन, पद या मान्यता से वंचित नहीं किया जा सकता, क्योंकि उनके जूनियर सहकर्मी को आरक्षण नीति के तहत पहले पदोन्नत किया गया।
जस्टिस संदीप मौदगिल ने कहा,
"संविधान एक नाज़ुक संतुलन का प्रावधान करता है, जहां सामाजिक न्याय का पालन किया जाता है। हालांकि, योग्यता या संस्थागत अखंडता की कीमत पर नहीं। यही वह संतुलन है, जिसकी रक्षा करने का प्रयास न्यायालयों ने बार-बार किया है। समावेशन को बढ़ावा देते हुए यह व्यवस्था उन लोगों के लिए अलगाव का स्रोत नहीं बननी चाहिए, जो निरंतर प्रदर्शन और सीनियरिटी के बावजूद, केवल आरक्षण-आधारित त्वरण के कारण खुद को विस्थापित पाते हैं। सेवा के एक चरण के रूप में पदोन्नति केवल पदोन्नति के बारे में नहीं है, बल्कि मान्यता, निष्पक्षता और मनोबल के बारे में है।"
इसमें आगे कहा गया कि केवल पूर्व आरक्षित पदोन्नतियों के संचित लाभ के कारण सीनियर सामान्य श्रेणी के कर्मचारियों को उचित विचार से वंचित करना समानता के अधिदेश को कमजोर करता है।
जज ने कहा कि ऐसे मामलों में जहां सामान्य श्रेणी का कर्मचारी अपने जूनियर कर्मचारी के समान पद प्राप्त करता है, जिसे पहले आरक्षण नीति के तहत पदोन्नत किया गया, 'कैच-अप नियम' लागू किया जाना चाहिए। यह सीनियर कर्मचारी के उचित पद को बहाल करता है और उसे विपरीत भेदभाव से बचाता है।
अदालत ने आगे कहा,
"सामान्य पद पर वरिष्ठता का पुनर्मूल्यांकन किए बिना आरक्षित श्रेणी के जूनियर कर्मचारी को निरंतर पदोन्नति का लाभ प्रदान करना भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 में निहित समानता के प्रावधानों की अनदेखी करने के समान होगा। समानता का सिद्धांत यह मांग करता है कि एक बार पद में समानता प्राप्त हो जाने पर मूल रूप से सीनियर सामान्य श्रेणी के कर्मचारी के साथ वेतन, पद या आगे की पदोन्नति के मामलों में कोई पक्षपात नहीं किया जाना चाहिए।"
जज ने टिप्पणी की कि किसी भी प्रकार का विचलन निष्पक्षता के प्रति संवैधानिक प्रतिबद्धता को कमजोर करेगा और संतुलित एवं समावेशी शासन के व्यापक उद्देश्य के साथ समझौता करेगा।
यह याचिका कैलाश चंद्र द्वारा दायर की गई, जो 2010 से 2012 में अपनी रिटायरमेंट तक ज़िलेदार के पद पर रहे। उन्होंने उस याचिका को चुनौती दी थी, जिसके तहत प्राधिकारी ने राजस्व लिपिक और ज़िलेदार के पद पर अपने जूनियर अनुसूचित जाति वर्ग के कर्मचारी रघुबीर सिंह के बराबर वेतन बढ़ाने के याचिकाकर्ता का दावा खारिज कर दिया। साथ ही प्रतिवादियों को निर्देश देने का अनुरोध किया गया कि वे 'कैच-अप नियम' के मद्देनजर, बकाया राशि पर 18% ब्याज सहित सभी परिणामी लाभों के साथ ज़िलेदार के पद पर याचिकाकर्ता (सीनियर सामान्य कर्मचारी) का वेतन रघुबीर सिंह (जूनियर अनुसूचित जाति वर्ग के कर्मचारी) के वेतन के बराबर निर्धारित करें।
जस्टिस मौदगिल ने कहा कि याचिकाकर्ता की शिकायत केवल मौद्रिक समानता के बारे में नहीं है, बल्कि यह मूलतः सार्वजनिक सेवा में एक लंबे और सम्मानजनक करियर के अंतिम चरण में मान्यता, सम्मान और निष्पक्षता की मांग है। यह एक ऐसी अपील है, जो राज्य के कामकाज में मौन योगदान में बिताए गए जीवन में संतुलन बहाल करने का प्रयास करती है और जब कानून स्पष्ट रूप से उसके पक्ष में है तो उसे इस समानता से वंचित करना, तकनीकी पहलुओं को न्याय पर हावी होने देना होगा।
इसमें आगे कहा गया,
"भारत का संविधान इस तरह की उदासीनता की अनुमति नहीं देता, क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता और अनुच्छेद 16 के तहत सेवा में निष्पक्षता, केवल सांकेतिक स्वीकृति से अधिक की मांग करती है, बल्कि यह भी आवश्यक है कि उचित दावों को नौकरशाही की देरी या प्रशासनिक चूक के नीचे न दबाया जाए।"
जज ने कहा कि जीवन के इस पड़ाव पर जब याचिकाकर्ता भविष्य में पदोन्नति नहीं, बल्कि पूर्वव्यापी पुष्टि चाहता है तो न्यायालय नज़रें नहीं फेर सकता, क्योंकि न्याय न केवल होना चाहिए, बल्कि उसे याचिकाकर्ता के दरवाजे तक इस शांत आश्वासन के साथ पहुंचना चाहिए कि कानून उसे भूला नहीं है।
उपरोक्त के आलोक में न्यायालय ने याचिकाकर्ता का वेतन उसके जूनियर रघुबीर सिंह के बराबर करने का निर्देश दिया, जिस दिन से वह जिलादार के पद पर नियुक्त हुआ था। साथ ही सभी परिणामी लाभ, जिसमें 6% ब्याज के साथ बकाया राशि भी शामिल है, तीन महीने की अवधि के भीतर जारी करने का निर्देश दिया।
Title: KAILASH CHANDER v. STATE OF HARYANA AND ORS.