लोगों को नियमित रोजगार से वंचित करना शोषण, दो दशकों की लंबी सेवा को अंशकालिक नहीं माना जा सकता: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

Update: 2024-08-01 09:17 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को अंशकालिक कर्मचारी बताकर राज्य सरकार के शोषण को उजागर करते हुए स्पष्ट किया कि दो दशक लंबी सेवा को अंशकालिक सेवा नहीं माना जा सकता।

चीफ जस्टिस शील नागू और जस्टिस जगमोहन बंसल ने कहा,

"देश में बेरोजगारी सर्वविदित है। दो दशक की लंबी सेवा को अंशकालिक सेवा नहीं माना जा सकता। ऐसा प्रतीत होता है कि अपीलकर्ता ने दो दशक तक निर्बाध रूप से प्रतिवादियों की सेवा ली और अंशकालिक रोजगार की आड़ में उन्हें वेतन और अन्य भत्तों के उनके बहुमूल्य अधिकार से वंचित किया।"

न्यायालय ने कहा कि राज्य ने नियमित आधार पर नियुक्तियां करने के बजाय अंशकालिक या अनुबंध के आधार पर नियुक्तियां करने की प्रथा अपनाई।

बड़े पैमाने पर बेरोजगारी के कारण लोग कम वेतन पर अंशकालिक या अनुबंध के आधार पर काम करने को तैयार हैं। राज्य आदर्श नियोक्ता है और उससे अपने नागरिकों का शोषण करने की उम्मीद नहीं की जाती है। पीठ ने आगे कहा कि कम वेतन देना और लोगों को नियमित रोजगार से वंचित करना शोषण के अलावा और कुछ नहीं है।

खंडपीठ ने कहा कि राज्य को अनुबंध या अंशकालिक आधार पर नियुक्तियां करने के लिए अपनी नीति में संशोधन करना चाहिए।

ये टिप्पणियां हरियाणा सरकार द्वारा दायर अपील के जवाब में आईं, जिसमें एकल न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी गई थी। इसमें दो दशकों से काम कर रहे चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को रिटायरमेंट लाभ (पुरानी पेंशन योजना) देने का निर्देश दिया गया, जिन्हें अभी भी अंशकालिक कर्मचारी माना जाता है।

राज्य के वकील ने प्रस्तुत किया कि प्रतिवादियों (चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों) को शुरू में अंशकालिक आधार पर नियुक्त किया गया। वे दिन में बहुत कम घंटे काम करते थे। यह कहा गया कि स्कूल के प्रिंसिपल/हेडमास्टर जैसे अधिकार क्षेत्र वाले अधिकारियों ने तदर्थ आधार पर चपरासियों की नियुक्ति की और वे दिन में 3-4 घंटे काम करते थे। इसलिए उन्हें दैनिक वेतनभोगी या संविदा कर्मचारी नहीं माना जा सकता।

हरियाणा के सीनियर डीएजी ने कहा,

"नियम 3.17-ए, जिसे एकल जज ने लागू किया, में अंशकालिक कर्मचारियों की सेवा को विशेष रूप से शामिल नहीं किया गया। इस प्रकार, एकल जज ने नियम 3.17-ए को गलत तरीके से पढ़ा है। लगभग 5,000 कर्मचारी हैं, जिन्हें शुरू में अंशकालिक आधार पर नियुक्त किया गया। उसके बाद उन्हें नियमित कर दिया गया। पेंशन लाभ के लिए उनकी सेवा की गणना करने से राज्य के खजाने पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।"

दलीलें सुनने के बाद न्यायालय ने पाया कि याचिका में चपरासी को 1992 में सरकारी स्कूल में नियुक्त किया गया और उसने 1992 से 2012 तक बिना किसी रुकावट के दो दशकों तक काम किया। हालांकि, 2012 में उसकी सेवा को नियमित कर दिया गया और वह 2015 में रिटायर हो गया।

राज्य सरकार द्वारा 2008 में नई पेंशन योजना शुरू की गई और उसकी सेवा इसके द्वारा शासित थी। न्यायालय ने राज्य के इस तर्क को खारिज कर दिया कि कर्मचारियों ने काम के हिसाब से सेवा दी।

न्यायालय ने कहा,

"न तो दलीलों से और न ही आरोपित आदेश से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि प्रतिवादी ने कार्यभार के रूप में सेवा प्रदान की थी। उसने ऐसे विद्यालय में काम किया, जो साल भर चलता है। यदि यह मान लिया जाए कि प्रतिवादी कार्यभार के रूप में कार्यरत था, तब भी उसकी सेवा को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, क्योंकि उसने लगभग दो दशकों तक बिना किसी रुकावट के काम किया था। यह मानना ​​मुश्किल और बेहद असंभव है कि किसी सरकारी विद्यालय ने प्रतिदिन 3-4 घंटे के लिए चपरासी या जलवाहक नियुक्त किया हो। विद्यालय में जितने घंटे शिक्षक और छात्र रहते हैं, उतने ही घंटों के लिए चपरासी या जलवाहक की आवश्यकता होती है।"

सचिव कर्नाटक राज्य और अन्य बनाम उमा देवी और अन्य में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा कि संविधान पीठ ने अंशकालिक, दैनिक वेतन या अनुबंध के आधार पर कर्मचारियों की नियुक्ति की प्रथा की निंदा की है।

पीठ ने कहा कि संविधान जिस आधार पर टिका है, वह है स्थिति और अवसर की समानता और अंशकालिक या अनुबंध के आधार पर नियुक्तियां करना संविधान की प्रस्तावना में निहित 'सामाजिक और आर्थिक न्याय के साथ-साथ स्थिति और अवसर की समानता' के उद्देश्य का उल्लंघन है।

उपर्युक्त के आलोक में हरियाणा सरकार द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया गया।

केस टाइटल- हरियाणा राज्य और अन्य बनाम जय भगवान [अन्य संबंधित मामले]

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