पटना हाईकोर्ट ने JDU विधायक दिलीप रे के निर्वाचन को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की

Update: 2024-07-08 10:57 GMT

पटना हाईकोर्ट ने बिहार विधानसभा के सदस्य के रूप में JDU के दिलीप रे के निर्वाचन को चुनौती देने वाली सैयद अबू दोजाना की याचिका खारिज की।

सुरसंड निर्वाचन क्षेत्र से विधानसभा चुनाव 07 नवंबर, 2020 को हुए थे।

सैयद अबू दोजाना (चुनाव याचिकाकर्ता) ने राष्ट्रीय जनता दल (RJD) पार्टी से उक्त चुनाव लड़ा था और चुनाव में दूसरे स्थान पर रहे थे। उन्होंने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 (RPA) की धारा 80, 80-ए, 81 और 100 के तहत दिलीप रे (प्रतिवादी नंबर 1) के निर्वाचन को चुनौती दी थी।

याचिकाकर्ता ने दावा किया कि रे को निम्नलिखित आधारों पर अयोग्य ठहराया गया: (i) उनकी और उनकी पत्नी की संपत्ति के बारे में जानकारी छिपाना, (ii) आपराधिक पृष्ठभूमि को प्रकाशित करने में विफलता और (iii) मतों की अनुचित गणना।

जस्टिस सुनील कुमार पंवार की एकल पीठ ने कहा कि हालांकि किसी उम्मीदवार द्वारा RPA की धारा 33ए के तहत दाखिल हलफनामे में अपनी संपत्ति और देनदारियों के बारे में पूरी जानकारी का खुलासा न करना अयोग्यता का आधार है लेकिन उसने यह भी कहा कि "यह आवश्यक है कि इस तरह की जानकारी का खुलासा चुनाव परिणाम को भौतिक रूप से प्रभावित करे।"

इसमें कहा गया कि यह साबित करने का दायित्व याचिकाकर्ता पर है कि रे द्वारा संपत्ति का खुलासा न करने के कारण चुनाव भौतिक रूप से प्रभावित हुआ।

न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता ने रे और उनकी पत्नी की अचल संपत्तियों का विवरण दिया और दावा किया कि संपत्ति का विवरण उन्होंने अपने हलफनामे में नहीं दिया। विवरण का आकलन करते हुए न्यायालय ने पाया कि रे की पत्नी द्वारा खरीदी गई कुछ संपत्तियां चुनाव लड़ने के लिए नामांकन दाखिल करने से पहले ही विभिन्न बिक्री-पत्रों के माध्यम से बेची जा चुकी थीं और रे के स्वामित्व वाली कुछ संपत्तियों का उल्लेख पहले ही फॉर्म-26 में किया जा चुका था।

इस प्रकार, न्यायालय ने माना कि रे ने अपनी या अपनी पत्नी की अचल संपत्तियों का विवरण नहीं छिपाया।

आपराधिक पृष्ठभूमि प्रकाशित न करना

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि रे ने अपने आपराधिक पृष्ठभूमि का विवरण इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रकाशित नहीं किया। इसके अलावा उन्होंने भारत के चुनाव आयोग (ECI) द्वारा निर्धारित तीन अलग-अलग तिथियों पर और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार विवरण प्रकाशित नहीं किया।

न्यायालय ने पाया कि RPA की धारा 33ए के तहत उम्मीदवारों को अपने आपराधिक पृष्ठभूमि का खुलासा करना चाहिए और ऐसा न करना अयोग्यता का आधार है।

इसने कहा कि यह साबित करने की जिम्मेदारी रे पर है कि उन्होंने अपने आपराधिक पृष्ठभूमि को प्रकाशित किया। उनके द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य की जांच करते हुए न्यायालय ने पाया कि उन्होंने तीन अलग-अलग मौकों पर हिंदी समाचार पत्र में अपने आपराधिक पृष्ठभूमि का विवरण प्रकाशित किया। उन्होंने इसे इलेक्ट्रॉनिक समाचार पत्र में भी प्रकाशित किया। इसने पाया कि रे ने सुप्रीम कोर्ट और ECI के निर्देशों के अनुसार वैध प्रकाशन किया।

इस प्रकार, न्यायालय ने माना कि रे द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य से पता चलता है कि उन्होंने RPA की धारा 33ए के तहत अपने आपराधिक पृष्ठभूमि के बारे में प्रकाशित किया।

मतों की गिनती में गड़बड़ी

याचिकाकर्ता ने दलील दी कि डाक मतपत्रों की गिनती मुख्य मतगणना हॉल से दूर की गई, घर-घर जाकर मतपत्रों की गलत तरीके से प्राप्ति की गई और बिना उचित कारणों के मतों को खारिज कर दिया गया।

न्यायालय ने पाया कि मतों की गिनती में हेराफेरी के याचिकाकर्ता के दावे में उसने चुनाव आयोग द्वारा जारी संशोधित निर्देश का हवाला दिया। निर्देश में खारिज मतपत्रों के सत्यापन का प्रावधान था, जब जीत का अंतर खारिज मतपत्रों की संख्या से कम था। न्यायालय ने पाया कि चुनाव आयोग द्वारा जारी ऐसा निर्देश वर्तमान मामले में लागू नहीं था, क्योंकि जीत का अंतर डाक मतपत्रों के माध्यम से डाले गए कुल मतों से दस गुना से अधिक था।

न्यायालय ने कहा,

“मतों की गिनती के आधार पर चुनाव रद्द करने के लिए यह देखा जाना चाहिए कि इस तरह की गिनती ने चुनाव परिणाम को भौतिक रूप से प्रभावित किया। क्या मतों की गिनती ने चुनाव परिणाम को भौतिक रूप से प्रभावित किया, यह तथ्य का प्रश्न है। इसे ठोस सबूतों के आधार पर तय किया जाना चाहिए। लेकिन चुनाव याचिकाकर्ता ऐसे सबूत पेश करने में विफल रहा है।”

न्यायालय ने टिप्पणी की कि प्रक्रियागत अनियमितताएं यह मानने का आधार नहीं हो सकतीं कि चुनाव परिणाम भौतिक रूप से प्रभावित हुआ है, यदि मतों की गिनती के संबंध में वैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन नहीं हुआ।

न्यायालय ने आगे कहा,

“किसी उम्मीदवार की अयोग्यता के संबंध में कानून की मांग है कि वैधानिक प्रावधानों का पर्याप्त गैर-अनुपालन होना चाहिए। केवल प्रक्रियागत नियमितताएं चुनाव को शून्य घोषित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। हालांकि, यदि ऐसी अनियमितताओं से भ्रष्टाचार होता है तो चुनाव को शून्य घोषित किया जा सकता है।”

वर्तमान मामले में कहा कि प्रक्रियागत अनियमितताएं थीं लेकिन मतों की गिनती के संबंध में वैधानिक प्रावधानों का कोई उल्लंघन नहीं हुआ, इसलिए यह चुनाव शून्य घोषित नहीं कर सकता।

इस प्रकार, हाईकोर्ट ने माना कि RPA के तहत दिलीप रे को अयोग्य ठहराने का कोई आधार नहीं है।

केस टाइटल- सैयद अबू दोजाना बनाम दिलीप रे और अन्य। (ई.पी. नंबर 20/2020)

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