13 वर्षीय बच्ची प्रेग्नेंसी जारी रखने और टर्मिनेट के बीच चयन करने की स्थिति में नहीं हो सकती: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2024-08-28 07:31 GMT

यह देखते हुए कि 13 वर्षीय बच्ची टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी और प्रेग्नेंसी पूरी अवधि तक जारी रखने के बीच सही विकल्प चुनने में सक्षम नहीं हो सकती, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि प्रेग्नेंसी जारी रखने की तुलना में 13 वर्षीय बच्ची के जीवन के लिए अधिक जोखिम होने के कारण मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी संभव नहीं होगा।

याचिकाकर्ता 13 वर्षीय बच्ची का उसके वृद्ध रिश्तेदार ने यौन उत्पीड़न किया, जिसके साथ वह रह रही थी। FIR दर्ज होने के बाद याचिकाकर्ता का मेडिकल टेस्ट किया गया, जिसमें पाया गया कि वह 28 सप्ताह की प्रेग्नेंट थी। इसके बाद याचिकाकर्ता ने प्रेग्नेंसी के लगभग 32 सप्ताह में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

न्यायालय ने याचिकाकर्ता की जांच के लिए मेडिकल बोर्ड के गठन का निर्देश दिया। अपनी रिपोर्ट में मेडिकल बोर्ड ने कहा कि प्रेग्नेंसी को पूर्ण अवधि तक ले जाना गर्भावस्था को टर्मिनेट करने की तुलना में कम जोखिम भरा है। प्रश्न “क्या याचिकाकर्ता के जीवन को किसी भी खतरे के बिना इस स्तर पर प्रेग्नेंसी टर्मिनेट की जा सकती है?” का उत्तर नकारात्मक में दिया गया।

तदनुसार, जस्टिस शेखर बी. सराफ और जस्टिस मंजीव शुक्ला की खंडपीठ ने मेडिकल बोर्ड की राय पर भरोसा किया और कहा कि इस स्तर पर मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी की अनुमति नहीं दी जा सकती।

न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता केवल 13 वर्ष की बच्ची है। तदनुसार वह टर्मिनेशन और प्रेग्नेंसी को पूर्ण अवधि तक ले जाने के बीच सही विकल्प चुनने की स्थिति में नहीं हो सकती।

इसके अलावा न्यायालय ने निर्देश दिया कि राज्य बच्चे के जन्म से संबंधित सभी खर्च वहन करेगा। न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता के पास कोई पारिवारिक समर्थन नहीं है। उसका विचार है कि वह बच्चे को गोद दे देगी।

तदनुसार, न्यायालय ने केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (कारा) के निदेशक को बच्चे को गोद लेने के लिए कानून के अनुसार उचित कदम उठाने का निर्देश दिया।

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