आरोपी को एफआईआर दर्ज होने से पहले सुनवाई का अधिकार नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

Update: 2024-07-15 06:21 GMT

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने माना कि कोई आरोपी एफआईआर दर्ज होने से पहले सुनवाई के अधिकार का दावा नहीं कर सकता। इसलिए इस आधार पर एफआईआर रद्द नहीं की जा सकती कि अपराध दर्ज होने से पहले आरोपी की सुनवाई नहीं की गई।

जस्टिस गुरपाल सिंह अहलूवालिया की पीठ ने अभिषेक पांडे नामक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। उक्त याचिका में स्कूल में जबरन घुसने और स्टाफ के साथ दुर्व्यवहार करने के आरोपों पर उसके खिलाफ दर्ज दो एफआईआर को चुनौती दी गई थी।

याचिकाकर्ता आरोपी ने तर्क दिया कि पुलिस को अपराध दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच करनी चाहिए और याचिकाकर्ता अपराध दर्ज होने से पहले सुनवाई का हकदार था।

न्यायालय ने ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2014 के फैसले पर भरोसा किया, जिसने कहा कि प्रारंभिक जांच करना वांछनीय है और प्रारंभिक जांच न करने के आधार पर एफआईआर रद्द नहीं की जा सकती।

न्यायालय ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) और अन्य बनाम थोम्मांद्रू हन्ना विजयलक्ष्मी @ टी.एच. विजयलक्ष्मी और अन्य एलएल 2021 एससी 551 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें यह माना गया कि भ्रष्टाचार के मामलों में केंद्रीय जांच ब्यूरो द्वारा प्रारंभिक जांच अनिवार्य नहीं है।

2021 के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ललिता कुमारी (सुप्रा) में संविधान पीठ के फैसले सहित विभिन्न फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि वे यह अनिवार्य नहीं करते हैं कि भ्रष्टाचार के मामलों में एफआईआर दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच की जानी चाहिए।

इसने कहा कि प्रारंभिक जांच न किए जाने से एफआईआर अमान्य नहीं मानी जाएगी।

न्यायालय ने यह भी कहा कि ललिता कुमारी (सुप्रा) का उद्देश्य भ्रष्टाचार के मामलों में प्रारंभिक जांच को मूल्यवान मानते हुए अभियुक्त को अधिकार प्रदान करना नहीं था बल्कि यह सुनिश्चित करना था कि लोक सेवकों को निशाना बनाने के लिए कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग न हो।

उसके बाद हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता का पहला तर्क कि अपराध दर्ज करने से पहले आरोपों की सत्यता की प्रारंभिक जांच की जानी चाहिए, अपने आप में गलत है और इसे अस्वीकार किया जाता है।

इसके अलावा न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता ने स्वीकार किया कि कथित घटना के दिन वह स्टूडेंट लीडर की हैसियत से स्कूल गया था।

उसके स्वीकारोक्ति के आलोक में जब न्यायालय ने उससे यह स्पष्ट करने के लिए कहा कि क्या स्वयंभू स्टूडेंट लीडर को स्कूल में प्रवेश करने का अधिकार है तो याचिकाकर्ता ऐसे किसी कानून का हवाला नहीं दे सका, जो ऐसे व्यक्ति द्वारा स्कूल में अनधिकृत प्रवेश की अनुमति देता हो।

इस प्रकार उसकी याचिका अस्वीकार कर दी गई।

केस टाइटल - अभिषेक पांडे बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य

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