वैकल्पिक उपाय उपलब्ध होने पर पुलिस को एफआईआर दर्ज करने का निर्देश देने वाली रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने दोहराया

Update: 2024-07-25 06:39 GMT

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के जज जस्टिस जी.एस. अहलूवालिया ने दोहराया कि वैकल्पिक उपाय उपलब्ध होने पर पुलिस को एफआईआर दर्ज करने का निर्देश देने वाली रिट याचिकाओं पर हाईकोर्ट विचार नहीं कर सकते।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उन्होंने एफआईआर दर्ज करने के लिए पुलिस से संपर्क किया लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई। रिट याचिका में विशेष रूप से न्यायालय से पुलिस को शिकायत पर विचार करने और आवश्यक कार्रवाई करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया।

याचिकाकर्ता ने ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के आलोक में प्रतिवादी को याचिकाकर्ता के शिकायत पर विचार करने और निर्णय लेने का निर्देश देने के लिए परमादेश की रिट मांगी।

राज्य के वकील ने तर्क दिया कि एफआईआर दर्ज करने के लिए रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। इसके बजाय याचिकाकर्ता के पास दंड प्रक्रिया संहिता (CrPc) की धारा 200 के तहत वैकल्पिक उपाय उपलब्ध है, जो अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 223 है। यह प्रावधान याचिकाकर्ता को सीधे ट्रायल मजिस्ट्रेट से संपर्क करने की अनुमति देता है।

जस्टिस अहलूवालिया ने रिट याचिका में प्रस्तुत किए गए तर्कों पर विचार किया। अदालत के सामने प्राथमिक प्रश्न यह था कि क्या पुलिस को एफआईआर दर्ज करने का निर्देश देने के लिए रिट याचिका दायर की जा सकती है।

निर्णय को निर्देशित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला दिया गया। एलेक पदमसी और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य (2007) 6 एससीसी 17 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुलिस को संज्ञेय अपराध के बारे में सूचना मिलने पर एफआईआर दर्ज करनी चाहिए लेकिन पुलिस द्वारा निष्क्रियता के लिए उचित उपाय सीआरपीसी की धारा 190 और 200 के तहत मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत दर्ज करना है।

डिवाइन रिट्रीट सेंटर बनाम केरल राज्य और अन्य (2008) 3 एससीसी 542 में सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि अगर जांच अधिकारी द्वारा दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई के बारे में आश्वस्त होता है तो हाईकोर्ट संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत निर्देश जारी कर सकता है लेकिन ऐसे मामले दुर्लभ हैं। आम तौर पर उपाय CrPc की धारा 190 और 200 के तहत होता है।

श्वेता भदौरिया बनाम एमपी राज्य और अन्य में हाईकोर्ट की खंडपीठ (2016) ने फिर से पुष्टि की कि पुलिस को एफआईआर दर्ज करने के लिए मजबूर करने वाली रिट याचिकाएं तब तक सुनवाई योग्य नहीं हैं, जब तक सुप्रीम कोर्ट के निर्णय व्हर्लपूल कॉर्पोरेशन बनाम रजिस्ट्रार ऑफ़ ट्रेड मार्क्स (1998) 8 एससीसी 1 में उल्लिखित असाधारण परिस्थितियां मौजूद न हों।

इस प्रकार जस्टिस अहलूवालिया ने याचिका खारिज की तथा याचिकाकर्ता को शिकायत निवारण के लिए CrPc की धारा 200/भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 223 के तहत मजिस्ट्रेट से संपर्क करने की स्वतंत्रता प्रदान की।

न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि स्थापित कानूनी स्थिति वैकल्पिक उपाय उपलब्ध होने पर पुलिस को एफआईआर दर्ज करने का निर्देश देने के लिए रिट याचिकाओं पर विचार करने का समर्थन नहीं करती है।

केस टाइटल- रामसिंह ठाकुर बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य

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