वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 : अधिनियम की संरचना और मुख्य विशेषताएँ

Update: 2025-08-21 12:16 GMT

भारत में वन्यजीवों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए सबसे महत्वपूर्ण क़ानून है वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972। इसे सामान्यत: Wildlife Protection Act (WPA) कहा जाता है। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य है जंगली जानवरों, पक्षियों और पौधों की रक्षा करना, शिकार पर रोक लगाना और उनके आवास (Habitat) को बचाने के लिए Sanctuary (अभयारण्य) और National Park (राष्ट्रीय उद्यान) जैसी संरक्षित श्रेणियाँ बनाना। यह अधिनियम 1972 में पारित किया गया था ताकि लगातार हो रहे शिकार, वन विनाश और वन्यजीवों के अवैध व्यापार को रोका जा सके।

अधिनियम की ज़रूरत क्यों पड़ी (Historical Background and Purpose)

आज़ादी के बाद के दशकों में भारत में कई वन्यजीव प्रजातियाँ संकट में आ गई थीं। बाघ (Tiger) जैसी प्रतीकात्मक प्रजातियों की संख्या तेजी से घट रही थी। शिकार, वनों की कटाई और व्यापार ने इनकी स्थिति और ख़राब कर दी थी। इसी पृष्ठभूमि में सरकार ने यह क़ानून बनाया ताकि शिकार को अपराध घोषित किया जा सके, संरक्षित क्षेत्र बनाए जा सकें, व्यापार को नियंत्रित किया जा सके और राज्यों व केंद्र के बीच एकरूपता लाई जा सके। इसका उद्देश्य सिर्फ़ दंड (Punishment) देना नहीं था बल्कि पारिस्थितिकी (Ecology) और वन्यजीवों को संरक्षित करना भी था।

अधिनियम की संरचना और मुख्य विशेषताएँ (Structure and Major Features)

यह अधिनियम कई अध्यायों में विभाजित है। इसमें सरकारी संस्थाएँ बनाने, अपराधों को परिभाषित करने और संरक्षित क्षेत्रों की घोषणा की व्यवस्था की गई है।

1. Authorities (प्राधिकरण) – इसमें National Board for Wildlife (राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड), State Boards (राज्य बोर्ड) और Central Zoo Authority (केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण) जैसे निकाय बनाए गए।

2. Protected Areas (संरक्षित क्षेत्र) – सरकार को अधिकार है कि वह Sanctuaries (अभयारण्य), National Parks (राष्ट्रीय उद्यान), Conservation Reserves (संरक्षण आरक्षित क्षेत्र) और Community Reserves (सामुदायिक आरक्षित क्षेत्र) घोषित कर सके।

3. Schedules (अनुसूचियाँ) – जानवरों और पौधों को अलग-अलग अनुसूचियों में रखा गया है। इनके आधार पर उनकी सुरक्षा और अपराध की सज़ा तय होती है।

4. Penalties (दंड) – अवैध शिकार, कब्ज़ा या व्यापार करने वालों के लिए कठोर सज़ा और जुर्माने का प्रावधान है।

अनुसूचियाँ और उनका महत्व (Schedules and Protection Levels)

इस अधिनियम की सबसे अहम विशेषता है प्रजातियों को अलग-अलग Schedules (अनुसूचियों) में बाँटना।

• Schedule I (अनुसूची-1) और Schedule II (भाग-2) में शामिल प्रजातियों को सबसे ज़्यादा सुरक्षा दी जाती है। इनके शिकार या व्यापार पर सबसे कठोर दंड मिलता है।

• निचली अनुसूचियों में रखी प्रजातियों के लिए दंड अपेक्षाकृत कम है।

• कुछ जानवरों को Vermin (हानिकारक जीव) घोषित किया जा सकता है, जिन्हें नियंत्रित करने की अनुमति दी जाती है।

इन अनुसूचियों को समय-समय पर संशोधित किया जाता है ताकि नई परिस्थितियों और अंतरराष्ट्रीय समझौतों के हिसाब से सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

संरक्षित क्षेत्र (Protected Areas)

अधिनियम राज्यों को यह शक्ति देता है कि वे National Parks (राष्ट्रीय उद्यान) और Wildlife Sanctuaries (वन्यजीव अभयारण्य) घोषित कर सकें। केंद्र सरकार भी देशव्यापी महत्व के क्षेत्रों को चिन्हित कर सकती है।

इन क्षेत्रों में खनन, पेड़ों की कटाई और अन्य व्यावसायिक गतिविधियाँ सख्ती से नियंत्रित की जाती हैं। खासकर Tiger Reserves (बाघ अभयारण्य) के लिए तो विशेष प्रावधान किए गए हैं।

इस तरह अधिनियम एक तरफ़ व्यक्तिगत स्तर पर प्रजातियों को बचाता है और दूसरी तरफ़ उनके आवास (Habitat) को भी सुरक्षित करता है।

संस्थागत ढाँचा और संशोधन (Institutional Architecture and Amendments)

अधिनियम में समय-समय पर संशोधन (Amendments) हुए हैं ताकि इसे और प्रभावी बनाया जा सके। इसमें सबसे महत्वपूर्ण सुधार हैं:

• Central Zoo Authority (केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण) की स्थापना, जो चिड़ियाघरों और कैद में प्रजनन (Captive Breeding) को नियंत्रित करता है।

• National Board for Wildlife (राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड) और State Boards (राज्य बोर्ड) जैसे निकाय, जो नीति और सलाह का काम करते हैं।

• अपराधों के लिए सज़ा और जुर्माने को कड़ा करना।

अपराध और दंड (Offences and Penalties)

यह अधिनियम अवैध Hunting (शिकार), Capture (पकड़ना), Possession (कब्ज़ा रखना), Trade (व्यापार) और Transport (परिवहन) को अपराध घोषित करता है।

• अपराध की गंभीरता इस पर निर्भर करती है कि संबंधित प्रजाति किस Schedule (अनुसूची) में है।

• Schedule I से जुड़ा अपराध सबसे गंभीर माना जाता है और इसके लिए कठोरतम सज़ा मिलती है।

• अधिकारियों को जानवर, खाल, हड्डियाँ, हथियार और गाड़ियाँ तक ज़ब्त करने का अधिकार है।

हालाँकि, व्यवहार में अक्सर संसाधनों की कमी और अवैध शिकार-व्यापार के संगठित नेटवर्क इस कानून की प्रभावशीलता को चुनौती देते हैं।

न्यायालयों की भूमिका और प्रमुख मामले (Role of Courts and Landmark Cases)

भारतीय न्यायपालिका, विशेषकर Supreme Court (सुप्रीम कोर्ट) ने इस अधिनियम को लागू करने और उसकी व्याख्या करने में बड़ी भूमिका निभाई है।

सबसे प्रसिद्ध मामला है T.N. Godavarman Thirumulpad बनाम Union of India, जिसे आमतौर पर Godavarman Case कहा जाता है। यह एक जनहित याचिका (PIL) थी, जिसमें जंगलों और वन्यजीवों के संरक्षण पर अदालत ने कई ऐतिहासिक आदेश दिए।

इस केस के चलते:

• जंगलों के उपयोग और कटाई पर कड़ी निगरानी हुई।

• संरक्षित क्षेत्रों की पहचान और सीमाओं पर न्यायालय ने महत्वपूर्ण दिशानिर्देश दिए।

• खनन और विकास परियोजनाओं को लेकर कई बार अदालत ने संरक्षण को प्राथमिकता दी।

इस तरह न्यायालयों ने वन्यजीव संरक्षण को संवैधानिक और कानूनी दोनों स्तरों पर मज़बूत किया।

वर्तमान चुनौतियाँ (Contemporary Challenges)

इस अधिनियम के बावजूद कई समस्याएँ बनी हुई हैं।

• Forest-Dwelling Communities (वन-निवासी समुदायों) के अधिकार और आजीविका बनाम संरक्षण का सवाल।

• संरक्षित क्षेत्रों के आसपास खनन, सड़क, बाँध जैसी विकास परियोजनाओं का दबाव।

• अवैध व्यापार (Illegal Trade) और अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क का बढ़ना।

• स्थानीय लोगों की भागीदारी (Participation) को लेकर विवाद।

कई बार संरक्षित क्षेत्रों की सीमाओं (Boundaries) को बदलने या विस्तार करने पर बड़े विवाद उठते हैं।

भविष्य की दिशा (Looking Ahead)

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम एक मज़बूत कानूनी आधार देता है, लेकिन इसे कारगर बनाने के लिए ज़रूरी है:

• बेहतर संसाधन और वित्तीय सहायता।

• वैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्रबंधन।

• स्थानीय समुदायों को संरक्षण की प्रक्रिया में शामिल करना।

• अवैध शिकार और व्यापार से निपटने के लिए आधुनिक तकनीक और अंतरराष्ट्रीय सहयोग।

न्यायालय भविष्य में भी तब हस्तक्षेप करेंगे जब संरक्षण और विकास के बीच टकराव होगा।

वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 भारत में वन्यजीवों और उनके आवास की रक्षा के लिए आधारशिला है। यह अधिनियम शिकार और व्यापार को अपराध घोषित करता है, संरक्षित क्षेत्र बनाता है और अपराधियों पर दंड लगाता है। वर्षों में इसमें संशोधन हुए हैं और अदालतों ने इसे और मज़बूत बनाया है।

हालाँकि, सिर्फ़ क़ानून काफी नहीं है। सच्ची सुरक्षा तभी संभव है जब प्रशासन, विज्ञान, स्थानीय समुदाय और राजनीतिक इच्छाशक्ति सब मिलकर काम करें। यही इस अधिनियम का असली संदेश और महत्व है।

Tags:    

Similar News