घरेलू हिंसा अधिनियम (DV Act) में व्यथित व्यक्ति किसे कहा गया?

Update: 2025-10-06 08:54 GMT

इस एक्ट में व्यथित व्यक्ति से ऐसी कोई महिला अभिप्रेत है जो प्रत्यर्थी की घरेलू नातेदारी में है या रही है और जिसका अभिकथन है कि वह प्रत्यर्थी द्वारा किसी घरेलू हिंसा की शिकार रही है।

"व्यथित व्यक्ति" की परिभाषा के पठन से यह इंगित होता है कि महिला जो प्रत्यर्थी के साथ घरेलू नातेदारी में है या रही है एवं जो प्रत्यर्थी द्वारा घरेलू हिंसा के किसी कृत्य का शिकार है अधिनियम के प्रावधानों के अधीन संरक्षण की वांछा करने के लिए व्यथित व्यक्ति को महिला होना चाहिए और प्रत्यर्थी के साथ वह घरेलू नातेदारी में हो या रह चुकी हो एवं घरेलू हिंसा की शिकार हो।

धारा 2 (क) परिभाषित करती है कि "व्यथित व्यक्ति" से कोई ऐसी महिला अभिप्रेत है जो प्रत्यर्थी की घरेलू नातेदारी में है या रही है जिसका अभिकथन है कि वह प्रत्यर्थी द्वारा किसी घरेलू हिंसा का शिकार रही है।

धारा 2 (क) के अधीन यथापरिभाषित "व्यथित व्यक्ति" से कोई ऐसी महिला अभिप्रेत है जो प्रत्यर्थी की घरेलू नातेदारी में है या रही है और जिसका अभिकथन है कि वह प्रत्यर्थी द्वारा किसी घरेलू हिंसा का शिकार रही है।

'व्यथित व्यक्ति' की परिभाषा अपेक्षा करती है कि महिला को प्रत्यर्थी के साथ घरेलू नातेदारी में होना चाहिए एवं घरेलू नातेदारी, दो व्यक्तियों की अपेक्षा करती है जो साझी गृहस्थी में रह रहें हैं या रह चुके हैं।

परन्तुक की दृष्टि से यदि व्यथित व्यक्ति पत्नी है या विवाह की प्रकृति की नातेदारी में कोई व्यक्ति है तो प्रत्यर्थी को ऐसा व्यक्ति होने की आवश्यकता नहीं है जो उसके साथ घरेलू नातेदारी में है या रहा है। अधिनियम की धारा (थ) का परन्तुक में ऐसी महिला या विवाह की प्रकृति की नातेदारी में रह रही महिला को किसी पुरुष के विरुद्ध परिवाद दाखिल करने पर ऐसे व्यथित व्यक्ति के साथ घरेलू नातेदारी में नहीं है, तार्किक दोष की ओर अग्रसर करेगी। व्यथित व्यक्ति पद को स्पष्ट करने के लिए आवश्यक रूप से अपेक्षा होती है कि ऐसी महिला होनी चाहिए जो प्रत्यर्थी के साथ घरेलू नातेदारी में हो या रही हो।

"व्यथित व्यक्ति" की परिभाषा ऐसी महिला तक सीमित नहीं है जो केवल 'पत्नी' को क्षमता में हो। आवश्यकता मात्र इतनी है कि व्यथित व्यक्ति प्रत्यर्थी के साथ 'घरेलू सम्बन्ध' में है या रही है। इस प्रकार इस परिभाषा की भाषा स्पष्ट रूप से इंगित करती है कि अधिनियम केवल पति या पत्नी या इससे मिलते-जुलते सम्बन्ध तदा सीमित नहीं है जबकि जैसा अधिनियम के उद्देश्य और कारण में कथित है कि यह किसी महिला की हर क्षमता एवं भूमिका में बेहतर अनुतोष प्रदान करने के लिए अधिनियमित की गई है जिसे सिविल कानून में विधि निर्माताओं ने अस्तित्व में नहीं या अपर्याप्त पाया।

"व्यक्ति व्यक्ति" की परिभाषा जैसा कि धारा 2 (क) में अन्तर्विष्ट है, जब तक यह विशेष रूप से मात्र पत्नी/पुत्रवधू के लिए तात्पर्यित न हो जब तक यह अन्य महिला को, जो पति की नातेदार है, अपवर्जित न करता हो, यह धारित करना गलत है कि धारा 2 (घ) में यथापरिभाषित "प्रत्यर्थी" की परिभाषा के अन्तर्गत पत्नी / पुत्रवधू नहीं आएगी।

यह उल्लिखित करना सुसंगत होता है कि व्यक्ति व्यक्ति की परिभाषा किसी महिला या पुरुष की वैवाहिक प्रास्थिति पर आधारित नहीं होती है। इसलिए "व्यक्ति व्यक्ति" की परिभाषा को केवल पत्नी के सीमित अर्थों में निर्विचित नहीं किया जा सकता है।

"व्यथित व्यक्ति" की परिभाषा किसी स्त्री को जो प्रत्यर्थी के साथ घरेलू नातेदारी में है या रह चुकी है एवं प्रत्यर्थी का तात्पर्य किसी ऐसे वयस्क पुरुष व्यक्ति से है जो व्यक्ति व्यक्ति के साथ घरेलू नातेदारी में है या रह चुका है।

दीपक उर्फ गजानन रामराव कानेगांवकर बनाम महाराष्ट्र राज्य, 2015 के मामले में प्रत्यर्थी संख्या 2 जानती थी कि आवेदक विवाहित व्यक्ति था और उसकी पत्नी से बच्चे थे। प्रत्यर्थी संख्या 2 यह भी जानती थी कि आवेदक अपनी पत्नी के साथ रह रहा था। इसके बावजूद, वह आवेदक से सम्बन्ध बनाये रखी थी। इस प्रकार, उक्त सम्बन्ध को विवाह की प्रकृति में सम्बन्ध होना नहीं कहा जा सकता। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि प्रत्यर्थी संख्या 2 अधिनियम की धारा 2 (थ) के अर्थान्तर्गत "व्यथित व्यक्ति" थी।

यह स्पष्ट है कि विवाह-विच्छेद के लिए डिक्री और न्यायिक पृथक्करण की डिक्री के बीच अन्तर है; पूर्ववर्ती में प्रास्थिति का पृथक्करण है और पक्षकार पति और पत्नी नहीं रह जाते, जबकि पश्चात्वर्ती में पति और पत्नी के बीच सम्बन्ध जारी रहता है और विधिक सम्बन्ध जारी रहता है, जैसे यह विच्छेदित नहीं हुआ है। इस प्रकार समझे जाने पर, अवर न्यायालयों द्वारा अभिलिखित निष्कर्ष, जिससे हाई कोर्ट सहमत है कि पक्षकार न्यायिक पृथक्करण किए हैं, इसलिए अपीलार्थी पत्नी "व्यथित व्यक्ति" नहीं रह गयी है, यह पूर्णतया असमर्थनीय है।

व्यथित व्यक्ति केवल महिला हो सकती है न कि पुरुष- परिभाषा से यह देखा जा सकता है कि "व्यथित व्यक्ति" केवल महिला हो सकती है न कि पुरुष जिसके लिए घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम को अधिनियमित किया गया है। इसी प्रकार प्रत्यर्थी जिसके विरुद्ध अनुतोष की वांछा की गयी है उस मामले के अलावा जहाँ पत्नी या विवाह की प्रकृति की नातेदारी में रहने वाली महिला द्वारा अनुतोष की वांछा की गयी है कोई पुरुष हो सकता है।

"घरेलू नातेदारी"

"घरेलू नातेदारी" का तात्पर्य दो व्यक्तियों के बीच का सम्बन्ध होता है जो साझी गृहस्थी में किसी समय एक साथ रहते हों या रह चुके हों जब वे समरक्तता, विवाह या विवाह की प्रकृति की नातेदारी द्वारा सम्बन्धित हो या संयुक्त परिवार के रूप में पारिवारिक सदस्य की तरह रह रहे हों।

धारा 2 (च) “घरेलू नातेदारी" को परिभाषित करता है जिसका तात्पर्य ऐसे दो व्यक्तियों के बीच नातेदारी से है, जो साझी गृहस्थी में एक साथ रहते हैं या किसी समय एक साथ रह चुके हैं, जब वे समरक्तता, विवाह द्वारा या विवाह, दत्तक ग्रहण की प्रकृति की किसी नातेदारी द्वारा सम्बन्धित हैं या एक अविभक्त कुटुम्ब के रूप में एक साथ रहने वाले कुटुम्ब के सदस्य हैं।

“घरेलू नातेदारी" की परिभाषा "दो व्यक्तियों के बीच सम्बन्ध" शब्दों से प्रारम्भ होती है। यदि घरेलू नातेदारी धारा 2 (च) के अधीन वर्णित किसी प्रकार की क्षमता वालें दो व्यक्तियों के सम्बन्ध तक सीमित किया जाए एवं व्यथित व्यक्ति के अर्थों से केवल प्रत्यर्थी के साथ घरेलू नातेदारी को संदर्भित किया जाय तो वह केवल प्रत्यर्थी जो (वयस्क पुरुष सदस्य) है उसी के विरुद्ध घरेलू हिंसा की शिकायत की जा सकती है।

"व्यथित व्यक्ति" एवं "प्रत्यर्थी" दोनों का उभयनिष्ठ आवश्यक तत्व अभिव्यक्ति "घरेलू नातेदारी" है। व्यक्ति व्यक्ति एवं घरेलू हिंसा कारित करने वाले के बीच पारिवारिक या वैवाहिक सम्बन्ध धारा 12 के अधीन आवेदन करने के पहले होना चाहिए।

धारा 2 (च) के अधीन यथापरिभाषित "घरेलू नातेदारी" की परिभाषा अपने संदर्भों की प्रयोज्यता में एवं घरेलू हिंसा अधिनियम के कई महत्वपूर्ण प्रावधानों को आकर्षित करने के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण होती है। परिभाषा प्रदर्शित करती है कि यह अपनी प्रयोग्यता के लिए दो व्यक्तियों के बीच के सम्बन्ध की परिकल्पना करती है जो एक साथ साझी गृहस्थी में वर्तमान में रह रहे हैं या पूर्व में साथ-साथ रह चुके हैं, उनके बीच अतिरिक्त अपेक्षा होती है।

Tags:    

Similar News