The Indian Contract Act में Contract कौन कर सकता है?

Update: 2025-08-14 04:26 GMT

The Indian Contract Act में Contract कौन कर सकता है

संविदा करने के लिए सक्षम होने के संबंध में धारा 11 और 12 में प्रावधान दिए गए हैं। धारा 11 में यह बतलाया गया है कि कोई भी व्यक्ति जो प्राप्तवय हो जो स्वस्थचित्त हो और किसी विधि द्वारा संविदा करने से निर्योग्य न हो।

एक्ट की धारा 11 और 12 संविदा करने की सक्षमता और स्वस्थ मस्तिष्क की स्थिति को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। यह धाराएँ न केवल पक्षकारों को शोषण से बचाती हैं, बल्कि संविदा की कानूनी वैधता को भी बनाए रखती हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय, जैसे कि मोहरा बीबी बनाम धरमदास घोस और अन्य, इन धाराओं की व्याख्या और अनुप्रयोग को और स्पष्ट करते हैं। कुल मिलाकर, धारा 11 और 12 भारतीय संविदा कानून की नींव हैं और सामाजिक व व्यावसायिक लेनदेन में निष्पक्षता को बढ़ावा देती हैं।

धारा के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति संविदा करने के लिए सक्षम में जो प्राप्तवय हो जो स्वस्थचित्त हो और किसी विधि द्वारा संविदा करने के निर्योग्य न हो।

अवयस्क व्यक्ति के साथ संविदा के प्रश्न समय-समय पर उठते रहे हैं। यह अत्यंत महत्वपूर्ण प्रश्न न्यायालयों के समक्ष आता रहा है कि अवयस्क के साथ संविदा वैध होती है या नहीं!

भारतीय वयस्कता अधिनियम के अंतर्गत 18 वर्ष की आयु वयस्कता की आयु है। भारत में अवयस्क के साथ संविदा को शून्य मानी जाती है। भारतीय विधि में वयस्क संविदा करने के लिए सक्षम माना जाता है। यह उल्लेखनीय है कि यदि वयस्क के लिए संरक्षक नियुक्त किया गया है तो ऐसी स्थिति में वह 21 वर्ष की आयु प्राप्त कर लेगा वह समझा जाएगा कि संविदा करने के लिए सक्षम है।

नरेंद्र लाल बनाम ऋषिकेश 1918 आईसी 765 के प्रकरण में यह कहा गया है कि अवयस्क के साथ संविदा शून्य है पर जब वह वयस्कता की आयु प्राप्त कर लेता है तो उक्त कृत्य की बाबत अनुसमर्थन कर सकता है।

मोहरा बीबी के प्रकरण में यह कहा गया है कि जो व्यक्ति किसी को अवयस्क बताता है तो उसकी अवयस्कता को साबित करने का भार उसी व्यक्ति पर होगा जो ऐसा वाद प्रस्तुत करता है। जहां कोई अवयस्क अपने आप को अवयस्क के रूप में प्रस्तुत करता है और संविदा करना चाहता है तो उसे उक्त कार्य से रोका जाएगा।

यदि किसी अवयस्क ने धोखाधड़ी के उद्देश्य से कोई संविदा कर संपत्ति प्राप्त कर ली है तो अवयस्क के साथ होने वाली शून्य संविदा के परिणामस्वरूप अवयस्क द्वारा प्राप्त किया गया लाभ उसे पुनः लौटाना होगा।

भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 65 के अधीन यह उपबंध किया गया है जबकि किसी करार के शून्य होने का पता चला है या कोई संविदा शून्य हो जाए तब वह व्यक्ति जिसने ऐसा कर या लोप के अधीन कोई फायदा प्राप्त किया है तो फायदा उस व्यक्ति को जिस से वह प्राप्त किया गया है प्रत्यावर्ती करने या लौटने का बाध्य हो जायेगा।

पागल के साथ संविदा-

पागल के साथ संविदा के संबंध में भारतीय संविदा अधिनियम 1872 के अंतर्गत धारा 12 महत्वपूर्ण धारा है। इस धारा के अंतर्गत स्वास्थ्यचित्त व्यक्ति के साथ संविदा को वैध संविदा माना गया है। किसी भी व्यक्ति को बार बार उन्मत्ता के दौरे नहीं आना चाहिए तथा वह मानसिक रूप से पागल नहीं होना चाहिए। उसका पागलपन इतना नहीं होना चाहिए कि वह कोई भी हितार्थ निर्णय ले पाने में सक्षम हो।

मोहम्मद बनाम अब्दुल के प्रकरण में यह कहा गया है कि उन्मत्ता का तात्पर्य पागलपन से है। उन्मत्ता का अर्थ ऐसा पागलपन जिसके कारण कोई भी व्यक्ति अपना कोई भी निर्णय ले पाने में असमर्थ है। किसी करार को अवैध घोषित करने के प्रयोजन के लिए जो प्रसंगिकता है वह यह कि इसे निष्पादित करने वाला व्यक्ति ऐसे करार को निष्पादित करने की तिथि पर ऐसी अयोग्यता से पीड़ित था।

इस प्रकरण में धारित किया गया कि वर्ष 1990 की चिकित्सीय रिपोर्ट पर प्रकाश क्रमश वर्ष 1985 से 1987 में किए गए। करार के समय पागलपन का साक्ष्य होना चाहिए। करार पहले यदि कोई पागल था तो इसमें कोई अर्थ नहीं रह जाता है।

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