इंडिया में उत्तराधिकार से रिलेटेड मामले पर्सनल लॉ से रेग्युलेट होते हैं। भारत में हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम लागू है जो भारत के हिन्दू,सिख,जैन और बौद्ध समाज के लोगों पर समान रूप से लागू होता है। इस एक्ट में उत्तराधिकारियों की अलग अलग क्लॉस दी गयी है। अगर प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारी उपलब्ध नहीं होते हैं तब संपत्ति दूसरे को मिलती है। दूसरे भी जब उपलब्ध नहीं होते हैं तब तीसरी या चौथी को चली जाती है।
सामान्य रूप से यह देखने को नहीं मिलता है कि किसी हिंदू पुरुष या स्त्री की संपत्ति दूसरी और तीसरी श्रेणी के उत्तराधिकारियों को नहीं मिलती है क्योंकि पहली श्रेणी के उत्तराधिकारी उपलब्ध होते हैं। अगर पहली श्रेणी के उत्तराधिकारियों में कोई एक भी जीवित है तब समस्त संपत्ति उत्तराधिकार में उस एक ही व्यक्ति को मिलती है।
प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारी
आमतौर से यह मान लिया जाता है कि किसी भी बगैर वसीयत के मरने वाले हिंदू पुरुष की संपत्ति का उत्तराधिकार केवल उसके बच्चों को मिलता है। यह बात निराधार है, प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारी केवल बच्चे नहीं होते हैं। बल्कि इस श्रेणी के 16 उत्तराधिकारी है। यह संपत्ति 16 उत्तराधिकारियों में बंट सकती है।
बगैर वसीयत के मरने वाले किसी भी हिंदू पुरुष के चार मुख्य उत्तराधिकारी होते हैं, जिनके नाम इस प्रकार हैं
1. माता
2. विधवा पत्नी
3. बेटा
4. बेटी
यह चार लोग प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारी हैं। यहां पर यह ध्यान देने योग्य बात है कि पिता प्रथम श्रेणी का उत्तराधिकारी नहीं है। अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है और उसने अपनी संपत्ति की वसीयत नहीं की है तब उसकी संपत्ति का उत्तराधिकार इन चारों लोगों को मिलेगा। अगर उसका पिता जीवित है तब उसके पिता को उत्तराधिकार नहीं मिलेगा, सारी संपत्ति इन चारों लोगों में बराबर बंट जाएगी।
इन चारों लोगों में अगर कोई एक जीवित है तब उस एक ही व्यक्ति को सारी संपत्ति चली जाएगी।
उत्तराधिकार की श्रेणी केवल यहीं समाप्त नहीं हो जाती बल्कि इसके आगे के लोग भी उत्तराधिकारी हैं, वे निम्न है-
1. मृत बेटे का बेटा
2. मृत बेटे की बेटी
3.मृत बेटे की विधवा
यह तीन लोग किसी मर चुके बेटे के बाद आते हैं। अगर किसी हिंदू पुरुष की मौत के पहले ही उसका बेटा भी मर चुका है फिर उस हिंदू पुरुष की मौत होती है तब उसकी संपत्ति में उसके मर चुके बेटे का बेटा अर्थात उस हिंदू पुरुष का पोता उसकी पोती और उसकी बहू, यह तीनों प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारी होंगे। यहां पर ध्यान देना आवश्यक है कि मर चुके बेटे के वारिस बराबर बेटे के हिस्से को बांटेगे।
उत्तराधिकारी यहां भी समाप्त नहीं होते है और इसके बाद भी दूसरे उत्तराधिकारी हैं, जो निम्न होंगे-
1. पोते का बेटा
2. पोते की बेटी
3. पोते की विधवा
अगर किसी हिंदू पुरुष के बेटे की भी मौत हो चुकी है ऐसे बेटे की मौत शादी के बाद हुई और उस शादी से उसे संतान हुई। ऐसी संतान पोता और पोती है, अगर पोते की भी मौत हो जाती है और पोते की मौत शादी के बाद होती है, ऐसी शादी से पोते के घर बच्चे होते हैं तब परपोता, परपोती और साथ ही पोते की विधवा यह तीनों उत्तराधिकार प्राप्त करेंगे। इन तीनों को एक जैसा उत्तराधिकार मिलेगा।
इसके बाद उत्तराधिकार बेटी की तरफ आ जाता है। अगर किसी हिंदू पुरुष की मौत होती है और उसकी मौत के पहले उसकी बेटी की मौत हो जाती है तब बेटी का हिस्सा निम्न लोगों को मिलेगा-
1. बेटी की बेटी
2. बेटी का बेटा
अगर बेटी की मौत हो जाती है और इसी के साथ बेटी की बेटी और बेटी के बेटे की भी मौत हो जाती है अर्थात हिंदू पुरुष के नातिन की भी मौत हो जाती है तब उत्तराधिकार इन से आगे निकल जाता है और निम्न लोगों को प्राप्त होता है-
1. नातिन की बेटी
2. नातिन का बेटा
3. नवासे की बेटी
4. नवासे का बेटा
इस तरह से एक हिंदू पुरुष का उत्तराधिकार तीन पीढ़ियों तक चला जाता है। अगर बेटा जीवित है तो बेटे को मिल जाएगा। बेटा जीवित नहीं है तब बेटे की विधवा और बच्चों को मिल जाएगा, अगर केवल विधवा है तब सब कुछ विधवा को ही मिलेगा। विधवा के साथ बच्चे भी हैं तब बच्चों को भी मिलेगा। अगर पोता जीवित नहीं है पर पोते तक के बच्चों को मिल जाएगा।
इस तरीके से उत्तराधिकार चलता है। इन बातों में सबसे अधिक ध्यान रखने वाली बात यह है कि पिता को प्रथम श्रेणी का उत्तराधिकार नहीं मिलता है। प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारियों में यदि कोई भी एक जीवित है तब उस एक को ही सब कुछ मिल जाएगा लेकिन पिता को कुछ नहीं मिलेगा। इस ही के साथ दामाद को कुछ नहीं मिलता और दामाद प्रथम श्रेणी का उत्तराधिकारी नहीं है। बहु प्रथम श्रेणी की उत्तराधिकारी है, बहू के साथ बहू की बहू भी प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारी है। बेटी नातिन और नातिन के बच्चे प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारी है।