The Representation Of The People Act, 1950 की धारा 16 भारतीय चुनावी व्यवस्था में मतदाता सूची में पंजीकरण के लिए अयोग्यताओं को परिभाषित करती है। इस धारा के अनुसार, कोई व्यक्ति मतदाता सूची में पंजीकरण के लिए अयोग्य होगा यदि
वह (क) भारत का नागरिक नहीं है; या
(ख) अस्वस्थ मस्तिष्क का है और सक्षम न्यायालय द्वारा ऐसा घोषित किया गया है; या
(ग) चुनावों से जुड़े भ्रष्ट आचरणों और अन्य अपराधों से संबंधित किसी कानून के प्रावधानों के तहत वोट देने से अयोग्य है।
यह धारा सुनिश्चित करती है कि केवल योग्य और पात्र व्यक्ति ही मतदान प्रक्रिया में भाग लें, जिससे चुनावों की निष्पक्षता और विश्वसनीयता बनी रहे। उदाहरण के लिए, नागरिकता की कमी विदेशी प्रभाव या अनधिकृत भागीदारी को रोकती है, जबकि अस्वस्थ मस्तिष्क यह सुनिश्चित करती है कि निर्णय लेने की क्षमता वाले व्यक्ति ही वोट दें।
धारा 16(ग) चुनावी अपराधों से जुड़ी पनिशमेंट को जोड़ती है, जैसे लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8ए के तहत भ्रष्ट आचरण के लिए अयोग्यता, जो मतदाता सूची से नाम हटाने का आधार बनती है। लोक प्रतिनिधित्व से जुड़े हुए दो अधिनियम हैं एक अधिनियम 1950 का है एवं एक अधिनियम 1951 का है।
यह प्रावधान चुनाव आयोग को मतदाता सूचियों की शुद्धता बनाए रखने में मदद करता है, और धारा 19, 20, 21 आदि के साथ मिलकर वार्षिक या विशेष संशोधन (जैसे विशेष गहन संशोधन - एसआईआर) को संचालित करता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 326 के साथ जुड़कर यह धारा वयस्क मताधिकार को लागू करती है, लेकिन अयोग्यताओं के माध्यम से दुरुपयोग को रोकती है।
यदि कोई व्यक्ति इन अयोग्यताओं के अंतर्गत आता है, तो उसका नाम मतदाता सूची से हटाया जा सकता है, और धारा 22 के तहत अपील का प्रावधान है। धारा 16 चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता को बनाए रखने का एक आवश्यक उपकरण है, जो सुनिश्चित करती है कि मतदाता सूची में केवल वैध नागरिकों का ही पंजीकरण हो, जिससे लोकतंत्र में विश्वास बढ़े और चुनावी धोखाधड़ी कम हो।
सुप्रीम कोर्ट ने धारा 16 की व्याख्या और अनुपालन पर कई महत्वपूर्ण फैसलों में जोर दिया है, जो मतदाता पंजीकरण की अयोग्यताओं से जुड़े विवादों को हल करने में मार्गदर्शक सिद्ध हुए हैं। एक मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता से जुड़ी अयोग्यता पर विचार किया, जहां याचिकाकर्ता ने सोनिया गांधी की भारतीय नागरिकता को चुनौती दी थी। अदालत ने याचिका खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि नागरिकता का प्रमाण पत्र आवश्यक है, लेकिन अपर्याप्त साक्ष्यों के आधार पर अयोग्यता सिद्ध नहीं की जा सकती, जो धारा 16 के सख्त अनुपालन को रेखांकित करता है।
इसी प्रकार, चीफ इलेक्शन कमिश्नर बनाम जन चौकीदार (पीपुल्स वॉच) (2013) में, सुप्रीम कोर्ट ने धारा 16(ग) के तहत अयोग्यता पर प्रकाश डाला, जहां पुलिस हिरासत या जेल में बंद व्यक्तियों को मतदान से वंचित किया गया, क्योंकि वे 'इलेक्टर' की परिभाषा (आरपीए 1951 की धारा 2(1)(ई)) के अंतर्गत नहीं आते, जो धारा 16 से जुड़ी है। अदालत ने कहा कि ऐसे व्यक्ति चुनाव लड़ने के अयोग्य हैं, क्योंकि मतदाता सूची में पंजीकरण के बावजूद धारा 62(5) उन्हें वोट देने से रोकती है, जो अप्रत्यक्ष रूप से धारा 16 की अयोग्यताओं को मजबूत करती है।
हाल ही में, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स बनाम इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया में, सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में विशेष गहन संशोधन (एसआईआर) को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की, जहां चुनाव आयोग ने धारा 16 का हवाला देकर मतदाता सूचियों से अयोग्य व्यक्तियों (जैसे मृत, स्थानांतरित या अवैध प्रवासी) को हटाने की प्रक्रिया को वैध ठहराया।
अदालत ने ईसीआई से जवाब मांगा, लेकिन एसआईआर पर रोक नहीं लगाई, जो धारा 16 के तहत पात्रता और अयोग्यता के संतुलन को महत्वपूर्ण मानता है। एक अन्य वाद में, श्यामदेव प्रसाद सिंह बनाम नवल किशोर यादव में, सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्ट आचरण से जुड़ी अयोग्यता पर जोर देते हुए कहा कि चुनावी अपराधों के दोषी व्यक्तियों का पंजीकरण रद्द किया जा सकता है, जो चुनावी शुद्धता को सुनिश्चित करता है। सुप्रीम कोर्ट धारा 16 को लोकतंत्र की रक्षा के लिए आवश्यक मानता है, और इसे संविधान के अनुच्छेद 326 के साथ जोड़कर व्याख्या करता है, ताकि मतदाता सूचियां विश्वसनीय रहें और अयोग्य तत्वों से मुक्त हों।