जानवरों को जान से खत्म करने के अपराध पर क्या है कानून? जानिए

Update: 2024-08-02 10:09 GMT

भारतीय न्याय संहिता सिर्फ इंसानों के लिए ही नहीं है वह जानवरों के अधिकारों को भी सुरक्षित करती है। किसी भी जानवर को अनावश्यक जान से खत्म नहीं किया जा सकता है और यदि ऐसा किया जा रहा है तो यह अपराध है और इसके लिए सज़ा के प्रावधान तय हैं। हालांकि ऐसे अपराध में कम सज़ा होती है किंतु सज़ा के प्रावधान तो तय हैं।

भारतीय न्याय संहिता में अलग-अलग अधिनियम एवं विशेषतः भारतीय न्याय संहिता के भीतर पशुओं को संपत्ति माना गया है लेकिन संपत्ति के संबंध में ही दंड भी रखा गया है, ऐसा नहीं है कि भारत की सीमा के भीतर कोई भी व्यक्ति किसी भी पशु को परेशान कर सकता है या किसी पशु का वध कर सकता है।

भारतीय संविधान द्वारा पशुओं की रक्षा-

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51(क) के अंतर्गत मूल कर्तव्य दिए गए है। इन मूल कर्तव्यों में प्रत्येक नागरिक पर कुछ कर्तव्य रखे गए है, यह कर्तव्य भारत राष्ट्र के प्रति एक नागरिक के कर्तव्य है। हालांकि यह कर्तव्य न्यायालय द्वारा प्रवर्तन नहीं कराए जा सकते है परंतु इन कर्तव्य से प्रेरणा लेकर भारत की संसद नवीन विधानों की रचना अवश्य कर सकती है, जो विधान इन कर्तव्यों को पूरा करने में सहायक हो।

भारत के संविधान में मूल कर्त्तव्य एक महत्वपूर्ण भाग है। अनुच्छेद 51(क) (छ) में एक प्रावधान किया गया है जिसके अंतर्गत प्राकृतिक पर्यावरण जिसमें झील,नदी, वन्यजीव की रक्षा करने का कर्तव्य दिया गया है।

वन्यजीवों की रक्षा करनी है उनका संवर्धन भी करना है। प्राणीमात्र के प्रति दयाभाव भी रखना है।

संविधान में दी गयी इस व्यवस्था से प्रेरणा लेकर भारत की संसद में पशुओं के प्रति क्रूरता अधिनियम 1960, वन्यजीव प्रोटक्शन एक्ट 1972 एवं सलास्टर हाउस रूल्स 2001 का निर्माण किया है।

भारतीय न्याय संहिता के अंतर्गत अपराध-

पशुओं के होने वाले वध और उनके प्रति होने वाली क्रुरता को भारतीय न्याय संहिता में भी अपराध का रूप दिया गया है तथा भारतीय न्याय संहिता में पशुओं के जीवन को मानव के जीवन के समान तो नहीं माना गया है परंतु पशु को एक संपत्ति की तरह ही सही मानकर इनके वध एवं इनके प्रति क्रूरता को दंडनीय अपराध बनाया गया है।

भारतीय न्याय संहिता के रिष्टि अध्याय में संपत्ति के विरुद्ध अपराधों के संबंध में प्रावधान हैं। इन प्रावधानों में एक प्रावधान रिष्टि है जिसे अंग्रेजी में मिशचीफ कहते है। किसी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वंचित करना ही नहीं अपितु उस को क्षति पहुंचाना भी एक अपराध है क्योंकि ऐसी क्षति या तो उसकी उपयोगिता नष्ट कर देती है या उसमें ऐसा परिवर्तन आ जाता है जो स्वामी एवं उपभोक्ताओं के उद्देश्य को पूरा नहीं कर पाती है।

यह अपराध पूर्व अपराधों से कम गंभीर प्रकृति का हो सकता है फिर भी अपराध अपराध है चाहे वह कैसा भी हो और ऐसे अपराध के लिए दंड की व्यवस्था है।

इस ही रिष्टि के भीतर पशुओं से संबंधित अपराधों की व्यवस्था की गयी है।

पशुओं के प्रति क्रूरता एवं उनके वध किए जाने को रिष्टि का गंभीर स्वरूप माना गया है।

धारा 325-

इस संबंध में भारतीय दंड संहिता में दो धाराएं थी धारा 428 और धारा 429। इन दोनों धाराओं में दंड अलग अलग थे और पशु की कीमत के अनुसार यह दंड निर्धारित किये गए थे। अब भारतीय न्याय संहिता में सभी जानवरों को एक साथ रख दिया गया है और सभी के लिए एक जैसी सज़ा निर्धारित कर दी गयी है। इस अपराध में पांच साल तक की सज़ा निर्धारित कर दी गयी है।

इस धारा में हाथी, ऊंट, घोड़े, खच्चर, भैंस, सांड, गाय या बेल को या कोई अन्य जीव जंतु हो ऐसे जीव जंतु को जहर देने उसे विकलांग करने या फिर ऐसा बनाने जिससे कोई उपयोगी नहीं रहे यह गंभीर रिष्टि है। इसके लिए 5 साल तक का कारावास और दोनों से दंडित किया जा सकता है।

गोपाल कृष्ण बनाम कृष्ण भट्ट एआईआर 1960 केरल 74 के मामले में यह भी निर्धारित किया गया है किया धारा पशु को स्थाई क्षति पहुंचाए जाने से संबंधित है।

नागरिक सुरक्षा संहिता के अंतर्गत इस धारा को संज्ञेय अपराध बनाया गया है अर्थात जैसे ही पुलिस को इसका संज्ञान मिलता है एफआईआर लिखी जाएगी और अन्वेषण शुरू किया जाएगा। हालांकि नागरिक सुरक्षा संहिता में ही इस अपराध को जमानतीय भी रखा गया है परंतु भारतीय न्याय संहिता इस अपराध में 5 साल तक का कठोर कारावास दिए जाने का प्रावधान करती है।

यह धारा धार्मिक प्रयोजन हेतु किसी पशु को बलि दिए जाने पर प्रयुक्त नहीं होती है, परंतु ऐसी बलि भी धार्मिक रीति अनुसार होना चाहिए।

भारत में वन्य जीव संरक्षण अधिनियम1972 के अंतर्गत हाथी, ऊंट, घोड़े इत्यादि की बलि नहीं दी जा सकती तथा बैल और सांड गोवंश संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत अलग अलग राज्यों में संरक्षित कर दिए गए है, अब केवल कुछ चुने हुए पशु रह गए है जिनकी धार्मिक बली दी जाती है, जैसे बकरा, भैंस, भेड़ या सुअर और मुर्गा।

इस धारा में पशु को संपत्ति बताया गया है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि यदि मालिक संपत्ति का उपभोग करता है तो वह पशु को विकलांग भी कर सकता है उसका वध भी कर सकता है या फिर उसे विष भी दे सकता है यह अपराध मालिक पर भी लागू होगा। हाथी ऊंट घोड़े खच्चर इन्हें वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत संरक्षण दिया गया है, गाय बैल को गोवंश संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत संरक्षण प्राप्त है तथा भैंस बकरी भेड़ को यहां संरक्षण प्राप्त नहीं है परंतु यह भी पशु क्रूरता अधिनियम के अंतर्गत संरक्षित होते होते हैं। सलास्टर हाउस रूल्स 2001 के अंतर्गत ही इन पशुओं का वध किया जा सकता है।

पशुओं के प्रति क्रूरता का निवारण अधिनियम 1960-

पशु क्रूरता से निपटने के उद्देश्य से पशुओं के प्रति क्रूरता का निवारण अधिनियम,1960 का निर्माण भारत की संसद द्वारा किया गया है। इस अधिनियम के माध्यम से पशुओं के प्रति होने वाली क्रूरता को रोकने के संपूर्ण प्रयास किए गए है। अधिनियम की धारा 11 पशुओं के प्रति क्रूरता के व्यवहार का उल्लेख करती है जो साधारण शब्दों में निम्न है-

किसी पशु को पीटना, ठोकर मारना, बहुत ज्यादा सवारी लगाना, बहुत ज्यादा बोझ लाद देना उसे यंत्रणा देना या फिर उसके साथ में कोई भी ऐसा व्यवहार करना जिससे उसे अनावश्यक पीड़ा हो।

कोई पशु अपनी उम्र, कोई अंग के शिथिल हो जाने, कोई घाव, किसी फोड़े के कारण कोई कार्य कर पाने में असमर्थ है यदि उस पशु को फिर भी उस कार्य में लगाया जाता है।

किसी भी पशु को कोई भी नुकसान पहुंचाने वाली दवाई या फिर क्षति कारक पदार्थ जानबूझकर देगा या खिलाएगा या खिलवायेगा।

किसी पशु या पशुओं को कोई ऐसी रीति से किसी गाड़ी मोटर यान में लेकर जाना जिस रीति से ले जाने में पशु को यातना पहुंचे।

किसी पशु को किसी ऐसे पिंजरे में रखना जिसकी लंबाई चौड़ाई छोटी हो और पशु को यातना पहुंचे।

किसी पशु को अनुचित या छोटी रस्सी या जंजीर से बांध के रखना या फिर कोई भारी वस्तु से बांध के रखना।

पशु का मालिक होने के बाद भी पशु को खाना पानी नहीं देना।

बिना कोई उचित कारण किसी पशु को ऐसी जगह छोड़ देना जहां पर उसको दाना पानी खाना नहीं मिले और वह भूखा मर जाए।

कोई विकलांग, भूखा, बीमार और प्यासा ऐसा पशु बिक्री के लिए बाजार में रखना।

दो पशुओं को आपस में लड़ा कर लड़ाई का मनोरंजन लेना।

गोली चला कर निशाना लगाकर पशुओं को मारना।

यह सभी बातें क्रूरता की श्रेणी में रखी गयी है और इसे अपराध बनाया गया है और इस अपराध के लिए यदि प्रथम बार यह अपराध किया जाता है तो कम से कम ₹25000 का जुर्माना है और जो ₹100000 तक का हो सकता है। दूसरी बार फिर या अपराध किया जाता है तो इसमें तीन महीने तक की सजा का प्रावधान रखा गया है।

इन पशुओं की सुरक्षा के लिए एक बोर्ड का गठन किया गया है, जो कि केंद्रीय बोर्ड होता है। जिसका गठन केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है, जिसका अध्यक्ष केंद्र सरकार का वन महानिरीक्षक होता है। यह बोर्ड अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग समितियां बनाता है, यह समितियां नगर निगम और नगर निकाय के अंतर्गत संचालित होती है। इन समितियों द्वारा जो कार्यवाही की जाती है वह इस अधिनियम के अंतर्गत की जाती है।

यह क्रांतिकारी अधिनियम है जो भारत की सीमा के भीतर पशुओं की सुरक्षा के लिए अत्यंत कारगर है। इस अधिनियम के अंतर्गत मनुष्य से भिन्न किसी भी जीव को पशु कहा गया है अर्थात सारी धरती के जीवित प्राणी भारत की सीमा के भीतर सुरक्षित कर दिए गए है।

हालांकि जैसे आवारा कुत्तों को मारने और चिड़ियाघर चलाने के लिए कुछ नियम तय किए गए है। चिड़ियाघर केवल वैज्ञानिक अनुसंधान एवं जानकारी के लिहाज से चलाया जाता है।

चिड़ियाघर का उद्देश्य जानवरों की नुमाइश कर उन से धन कमाना नहीं होता है। जैसा कि भारत में बंदरिया को नचा कर मदारी खेल दिखाया करते थे, सांपों को नचा कर सपेरे खेल दिखाया करते थे। इसे भी इस अधिनियम के अंतर्गत प्रतिबंधित किया गया है।

कोई सर्कस इत्यादि में कोई प्रशिक्षण देकर जानवरों से काम लिया जाता है तो ऐसे परीक्षण के लिए केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए इस बोर्ड के अंतर्गत रजिस्ट्रेशन लेना होता है यह बोर्ड इसकी निगरानी करता है। पशुओं के प्रति क्रूरता का निवारण अधिनियम,1960 ही रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया का भी उल्लेख करता है।

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