बात महाराष्ट्र की। तारीख 29 जून 2022। महाराष्ट्र में राजननीतिक संकट चरम पर पहुंच गया था। सुप्रीम कोर्ट ने ठाकरे की नेतृत्व वाली 31 महीने पुरानी महाराष्ट्र विकास अघाड़ी सरकार का फ्लोर टेस्ट यानी बुहमत परीक्षण कराने के राज्यपाल के निर्देश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। ठाकरे ने फ्लोर टेस्ट का सामना नहीं करने का फैसला किया और मुख्यमंत्री पद से इस्पीफा दिया। इसकी के चलते जुलाई 2022 में महाराष्ट्र में सरकार बदल गई। और एकनाथ शिंदे की सरकार बनी, जो कि वर्तमान में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री हैं।
दोनों गुटों की ओर से कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की गईं। उद्धव ठाकरे गुट ने राज्यपाल की भूमिका पर सवाल उठाए। नौ महीने तक महाराष्ट्र के राजनीतिक संकट को लेकर सुनवाई चली। 16 मार्च यानी गुरूवार को अंतिम सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने फैसला सुरक्षित रखा है। ठाकरे गुट की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने दलीलें पेश की थी। इसके साथ ही सीनियर एडवोकेट मनु सिंघवी ने भी दलीलें पेश की थी। शिंदे की ओर से सीनियर एडवोकेट नीरज किशन कौल, हरीश साल्वे, महेश जेठमलानी और मनिंदर सिंह ने दलीलें दीं। भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने महाराष्ट्र के राज्यपाल की ओर से दलील पेश कीं।
उद्धव ठाकरे गुट ने महाराष्ट्र के तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के उस आदेश को रद्द करने का अनुरोध किया, जिसमें मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को फ्लोर टेस्ट का सामना करने के लिए कहा गया था यानी विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए कहा गया था।
सुनवाई के दौरान सीनियर कपिल सिब्बल ने कहा कि अगर ऐसा नहीं किया गया तो लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा।
सिब्बल ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ से आदेश को रद्द करने की अपील की।
इस बात पर सुप्रीम कोर्ट ने आश्चर्य जताया और कहा कि कोर्ट महाराष्ट्र में ठाकरे सरकार को कैसे बहाल कर सकता है क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री यानी उद्धव ठाकरे ने फ्लोर टेस्ट का सामना किए बिना ही इस्तीफा दे दिया था। सीजेआई ने कहा कि ठाकरे सरकार को बहाल करना तार्किक बात तब होती जब आपने इस्तीफा नहीं दिया होता, आप विश्वास मत खो चुके हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने दोनों तरफ की दलीलें सुनी। फैसला सुरक्षित रखा है। अब फैसले का पूरे देश को इंतजार है।
फ्लोर टेस्ट क्या होता है?
फ्लोर टेस्ट को हिंदी में बहुमत परीक्षण कहते हैं यानी विश्वासमत। फ्लोर टेस्ट के जरिए ये फैसला लिया जाता है कि वर्तमान सरकार के पास पर्याप्त बहुमत है या नहीं। राज्य के मामले में मुख्यमंत्री और केंद्र के मामले में प्रधानमंत्री को बहुमत साबित करना होता है।
किसी राज्य के मुख्यमंत्री के खिलाफ संदेह है कि उसकी सरकार के पास बुहमत नहीं है तो उसे सदन में बहुमत साबित करने के लिए कहा जा सकता है। गठबंधन सरकार के मामले में मुख्यमंत्री को विश्वास मत पेश करने और बहुमत हासिल करने के लिए कहा जा सकता है।
फ्लोर टेस्ट में विधायकों या सासंदों को सदन में व्यक्तिगत रूप से पेश होना होता है और सबके सामने अपना वोट देना होता है। अगर मामला राज्य का है तो विधान सभा में फ्लोर टेस्ट होता है और अगर मामला केंद्र का है तो लोकसभा में। सत्ता पर काबिज पार्टी के लिए ये बेहद जरूरी होता है कि वो फ्लोर टेस्ट में बहुमत साबित करे।
फ्लोर टेस्ट की प्रक्रिया भी समझ लीजिए। फ्लोर टेस्ट सदन में चलने वाली एक पारदर्शी प्रक्रिया है और राज्यपाल केवल फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश देते हैं। इसमें राज्यपाल का किसी भी तरह से कोई हस्तक्षेप नहीं होता है। फ्लोर टेस्ट कराने की पूरी जिम्मेदारी सदन के स्पीकर के पास होती है। अगर स्पीकर का चुनाव नहीं हुआ हो तो पहले प्रोटेम स्पीकर नियुक्त होता है। प्रोटेम स्पीकर अस्थायी स्पीकर होता है। नई विधानसभा या लोकसभा के चुने जाने पर प्रोटेम स्पीकर बनाया जाता है जो सदन के सदस्यों को शपथ दिलाता है।
साल 1994 में सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट कराने के अधिकार से संबंधित एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। सुप्रीम कोर्ट के 9 जजों की बेंच ने जस्टिस बोम्मई मामले में कहा था कि सरकार गिराने का रास्ता फ्लोर से ही होकर जाता है। बहुमत सिर्फ सदन के पटल पर ही जांचा जा सकता है।