अभी हाल ही के प्रकरणों में ट्रांजिट रिमांड जैसे शब्द को लेकर प्रश्न उठे हैं। टूलकिट मामले में गिरफ्तार किए गए कुछ सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकारों के संबंध में भी ट्रांजिट रिमांड जैसे शब्द सुनने में आए हैं।पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि के मामले में ट्रांजिट रिमांड को लेकर काफी चर्चा की गई।
ट्रांजिट रिमांड क्या है और न्यायालय द्वारा ट्रांजिट रिमांड कब दिया जाता है इससे संबंधित जानकारियां इस आलेख में प्रस्तुत की जा रही है।
ट्रांजिट रिमांड
रिमांड की परिभाषा जिसे हिंदी में हिरासत कहा जाता है दंड प्रक्रिया संहिता 1973 के अंतर्गत प्राप्त होती है। दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 41 के अंतर्गत पुलिस किसी व्यक्ति को कब गिरफ्तार कर सकती है इसका उल्लेख किया गया है। कोई व्यक्ति वारंट के बिना पुलिस द्वारा संज्ञेय मामले की परिस्थिति में गिरफ्तार किया जाता है।
जब भी कोई व्यक्ति पुलिस द्वारा बगैर वारंट के गिरफ्तार किया जाता है या फिर किसी न्यायालय के जारी किए गए वारंट के आधार पर गिरफ्तार किया जाता है तब उस गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 57, 76 के अंतर्गत 24 घंटे के भीतर निकटतम मजिस्ट्रेट के न्यायालय में पेश किया जाना चाहिए।
भारत के संविधान का भाग 3 जो मूल अधिकारों का उल्लेख कर रहा है उसके अनुच्छेद 22 के खंड 2 के अंतर्गत मूल अधिकारों के उल्लेख में किसी आरोप में गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को यह मूल अधिकार ग्यारंटी के रूप में स्टेट द्वारा दिया गया है।
जिस व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है उसे गिरफ्तार करने के समय से लेकर केवल 24 घंटे तक पुलिस हिरासत में रखा जा सकता है और ऐसी गिरफ्तारी से 24 घंटे की अवधि में ही निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाता है। मजिस्ट्रेट के अधिकार के बिना 24 घंटे से अधिक अवधि के लिए उस व्यक्ति को अभिरक्षा में निरुद्ध नहीं रखा जा सकता।
भीम सिंह बनाम जम्मू कश्मीर राज्य 1985 के एक मामले में विधानसभा के एक सदस्य को जानबूझकर अवैध रूप से गिरफ्तार करके विधानसभा सत्र में उपस्थित रहने से रोका गया था। उच्चतम न्यायालय ने इस प्रकरण में पुलिस के इस कार्य को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22(2) का अति लंघन माना तथा उक्त गिरफ्तारी के लिए जम्मू कश्मीर राज्य को यह निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को ₹50000 का प्रतिकार क्षतिपूर्ति के रूप में दिया जाए।
केंद्रीय जांच ब्यूरो बनाम किशोर सिंह उच्चतम न्यायालय 2010 के मामले में पुलिस थाने के बाहर साधक अधिकारी ने गिरफ्तार किए व्यक्ति को 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करने के बजाए जानबूझकर 3 दिनों तक पुलिस लॉकअप में रखा और यातनाएं दी।
उच्चतम न्यायालय ने पुलिस की इस ज्यादती को गंभीरता से लेते हुए अभिनिर्धारित किया कि संबंधित दोषी पुलिस अधिकारी के विरुद्ध धारा 342 दंड प्रक्रिया संहिता के आरोप के अधीन कार्यवाही किया जाना न्यायोचित था।
यदि किसी व्यक्ति को देश की साधारण विधि के अंतर्गत गिरफ्तार किया गया है तब उसे भारत के संविधान में अनुच्छेद बावीस के अंतर्गत उल्लेखित किए गए मूल अधिकार प्राप्त होंगे और जिन्हें निवारक निरोध के अंतर्गत गिरफ्तार किया गया है उन्हें यह अधिकार प्राप्त नहीं होतें हैं।
जब भी कोई अपराध होता है तब उस अपराध को भारत राज्य के किसी एक थाना क्षेत्र के अंतर्गत एफआईआर पर दर्ज किया जाता है। कभी-कभी परिस्थितियां ऐसी होती हैं जिसमें अपराध भारत के किसी सुदूर इलाके के थाने पर दर्ज किया जाता है और व्यक्ति को गिरफ्तार उस थाना क्षेत्र से कई किलोमीटर दूर से किया जाता है।
इस परिस्थिति में उस थाना क्षेत्र के संबंधित मजिस्ट्रेट के न्यायालय में उस गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को पेश किया जाना संभव नहीं होता है।
जैसे कि किसी व्यक्ति को कश्मीर के श्रीनगर से गिरफ्तार किया जाए और उस व्यक्ति पर अपराध चेन्नई के किसी थाना क्षेत्र के अंतर्गत दर्ज किया गया है।
इस परिस्थिति में ट्रांजिट रिमांड की अवधारणा पर काम होता है। पुलिस जब ऐसे व्यक्ति को श्रीनगर से गिरफ्तार करती है तब उसे गिरफ्तार करने के 24 घंटे के भीतर ही जिस जगह से गिरफ्तार किया गया है उसी जगह के संबंधित मजिस्ट्रेट के न्यायालय में पेश कर देती है।
जब व्यक्ति को उस न्यायालय में पेश किया जाता है तो न्यायालय का मजिस्ट्रेट पेश किए गए व्यक्ति के संदर्भ में पुलिस से जानकारी लेकर पेश किए गए व्यक्ति को ट्रांजिट रिमांड पर पुलिस हिरासत में सौंप देता है।
मजिस्ट्रेट द्वारा पुलिस से यह प्रश्न किया जाता है कि उसके द्वारा कितनी समय अवधि में गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को संबंधित मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश कर दिया जाएगा। पुलिस द्वारा बताई गई अवधि में ट्रांजिट रिमांड देने वाला मजिस्ट्रेट पेश किए गए व्यक्ति के संदर्भ में ट्रांजिट रिमांड जारी कर देता है।
पुलिस उस ट्रांजिट रिमांड को लेकर गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को संबंधित मजिस्ट्रेट के न्यायालय में उपस्थित होती है। फिर संबंधित मजिस्ट्रेट उस व्यक्ति के पुलिस रिमांड के संबंध में अपना आदेश देता है। संबंधित मजिस्ट्रेट द्वारा इस बात का निर्धारण होता है कि उसके द्वारा कितनी समय अवधि के लिए पुलिस रिमांड दिया जाएगा।
वर्तमान दिशा रवि के मामले में दिशा रवि एक पर्यावरणविद है जिन्हें दिल्ली के किसान आंदोलन के टूलकिट से संबंधित प्रकरण में गिरफ्तार किया गया। उन्हें भारत के खिलाफ असहमति, सांप्रदायिक विद्वेष फैलाने और आपराधिक षड्यंत्र के मामले में गिरफ्तार किया गया है।
दिशा रवि द्वारा एक ट्वीट किया गया था जिस ट्वीट में दिल्ली साइबर पुलिस द्वारा उन्हें बेंगलुरु से गिरफ्तार किया गया तथा बेंगलुरु से गिरफ्तार करने के बाद 14 फरवरी को उन्हें दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट में मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया।
दिशा रवि के वकीलों द्वारा इस बात पर प्रश्न खड़े किए गए कि दिल्ली साइबर पुलिस ने जब दिशा रवि को गिरफ्तार किया तब उसका ट्रांजिट रिमांड क्यों नहीं लिया गया?
बगैर ट्रांजिट रिमांड लिए पुलिस द्वारा दिशा रवि को सीधे दिल्ली के मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया जो कि दिशा रवि के मौलिक अधिकार का सीधा-सीधा अतिक्रमण है क्योंकि गिरफ्तारी की 24 घंटे की अवधि के नियम का पुलिस द्वारा सीधे-सीधे उल्लंघन किया गया।
वकीलों के अनुसार इस प्रकरण में पहले दिल्ली पुलिस को बेंगलुरु के मजिस्ट्रेट से दिशा रवि के मामले में ट्रांजिट रिमांड लेना था। रिमांड के बाद उसे दिल्ली के मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया जाता।
ट्रांज़िट रिमांड नहीं लिया गया और दिशा रवि को अपने पसंद के वकील से मिलने के अधिकार से भी वंचित किया गया। दिल्ली के मजिस्ट्रेट द्वारा दिशा रवि को 5 दिन की हिरासत में भेज दिया गया। दिल्ली के मजिस्ट्रेट द्वारा दिशा रवि की ट्रांजिट रिमांड के संबंध में कोई विचार नहीं किया गया।