क्या वकील क्लाइंट द्वारा फीस न दिए जाने की स्थिति में उसके कागज़ात वापस करने से मना कर सकते हैं?

Update: 2019-12-04 04:15 GMT

जैसा कि हम जानते हैं कि वकालत एक पेशा है, यह कोई व्यवसाय नहीं और इस पेशे का उद्देश्य, लोगों की सेवा करना है। एक पेशे की अहमियत को समझाते हुए, रोस्को पाउंड ने कहा था: "ऐतिहासिक रूप से, पेशे में 3 विचार शामिल हैं: संगठन (Organisation), सीखने और सार्वजनिक सेवा की भावना। ये आवश्यक हैं। इसके अलावा, आजीविका प्राप्त करने का विचार, इसके साथ है (पर अधिक महत्वपूर्ण नहीं)।"

कानूनी पेशा अपनाने वाले व्यक्तियों पर, समाज में कानून के शासन को बनाए रखने की एक बड़ी जिम्मेदारी होती है। सत्ता के दुरुपयोग के खिलाफ व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करते हुए एक वकील को न्याय, निष्पक्षता, इक्विटी के सिद्धांतों का ध्यान रखना चाहिए। जैसा कि हम जानते हैं, एक वकील-मुवक्किल का संबंध, एक विश्वास का संबंध माना जाता है और इस प्रकार एक वकील का, अपने मुवक्किल के प्रति नैतिक दायित्व होता है। एक वकील एवं मुवक्किल के बीच (विवाद के रूप में), गोपनीयता (Secrecy), हितों के टकराव, फीस/शुल्क, महवपूर्ण कागजातों एवं मुक़दमे की देखभाल आदि सम्बंधित मामले जन्म ले सकते हैं।

आखिर तब क्या होता है जब एक वकील एवं उसके मुवक्किल के बीच फीस को लेकर विवाद पैदा हो जाता है, ऐसे मामलों में मुवक्किल और वकील, एक-दूसरे पर अविश्वास करने लगते हैं। नतीजतन, वकील उस मामले/मुक़दमे को तब तक जारी नहीं रखना चाहता है, जब तक कि उसे अपनी फीस नहीं मिलती है, जबकि मुवक्किल, अपने वकील को बदलना चाहता है या उसे फीस नहीं चुकाना चाहता है। इस लेख में हम ऐसी ही स्थिति के बारे में बात करेंगे।

सवाल यह है कि वकील को यदि फीस का भुगतान नहीं किया जाता/गया है, तो क्या वकील, मुवक्किल को उसके कागजात/अदालती दस्तावेज वापस करने से इंकार कर सकता है, जिससे वह उस मुवक्किल को अपने दस्तावेजों को वापस पाने के लिए भुगतान करने के लिए मजबूर कर सके? दूसरे शब्दों में, क्या एक वकील के पास धारण का अधिकार (Right to Lien) है, कि वह अपने मुवक्किल के कागजात को उस समय तक अपने पास रख सके (या लौटाने से माना करदे) जब तक उसकी फीस का मुवक्किल द्वारा भुगतान नहीं किया जाता है।

वकील कौन होता है?

एक वकील वह व्यक्ति होता है जो कानून की प्रैक्टिस करता है। ऐसा व्यक्ति या तो एक पैरालीगल हो सकता है, एक एडवोकेट, बैरिस्टर, अटॉर्नी, काउंसलर, सॉलिसिटर या एक चार्टर्ड लीगल एग्जीक्यूटिव हो सकता है। एक वकील के रूप में काम करने के दौरान, एक व्यक्ति कई कानूनी समस्याओं का समाधान करने के लिए, अमूर्त कानूनी सिद्धांतों और ज्ञान के व्यावहारिक अनुप्रयोग को शामिल करता है। इसके अलावा एक वकील, उन लोगों के कानूनी हितों को आगे बढ़ाने के लिए कार्य करता है, जो लोग ऐसे वकील की कानूनी सेवाएं लेने के लिए उसको नियुक्त करते हैं। एक वकील की भूमिका, कानूनी क्षेत्राधिकार के मामले में विभिन्न प्रकार की होती है, और इसलिए एक वकील को केवल सामान्य शब्दों में ही परिभाषित किया जा सकता है।

क्या वकील, मुवक्किल द्वारा फीस न दिए जाने की स्थिति में उसके कागजात वापस करने से मना कर सकते हैं?

इस प्रश्न का सीधा जवाब 'नहीं' है। सर्वोच्च न्यायालय ने आरडी सक्सेना बनाम बलराम प्रसाद शर्मा AIR 2000 SC 2912 के मामले में यह कहा है कि किसी भी पेशेवर वकील को अवैतनिक पारिश्रमिक के लिए किसी भी दावे के रूप में अपने मुवक्किल के मामले में उसके द्वारा किए गए काम से संबंधित, वापस करने योग्य रिकॉर्ड को अपने पास रख लेने का कोई अधिकार नहीं दिया जा सकता है। ऐसा एक पेशेवर, किसी भी अवैतनिक पारिश्रमिक का दावा करने के लिए, कानूनी उपायों का सहारा ले सकता है।

अदालत ने यह भी कहा कि, हालांकि एक वकील का यह एक नैतिक दायित्व और पेशेवर कर्तव्य होता है कि जब मुवक्किल को अपना वकील बदलना आवश्यक हो, तो वह संक्षिप्त विवरणी (मामले से जुड़े कागजात) उस मुवक्किल को वापस करे। अदालत ने यह भी कहा कि फाइल वापस नहीं करने के मामले को पेशेवर कदाचार (Professional Misconduct) माना जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने इसी मामले में यह भी माना कि यदि कोई वकील, केस के कागजात पर ग्रहणाधिकार (Right to Lien) का दावा करता है, तो यह कितना महत्वपूर्ण है। अदालत ने इसका उत्तर देते हुए कहा कि अदालत/न्यायाधिकरण में चल रहा मामला, एक वकील के पारिश्रमिक के अधिकार से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है और यदि रिकॉर्ड के इस तरह के धारण की अनुमति दी जाती है तो यह प्रतिकूल रूप से मामले को प्रभावित और बाधित करेगा।

अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के अंतर्गत 'ग्रहणाधिकार'

CHAPTER – II - Standards of Professional Conduct and Etiquette (Rules under Section 49 (1) (c) of the Act read with the Proviso thereto) BAR COUNCIL OF INDIA RULES के नियम 28 और 29 के अंतर्गत, वकील अपनी फीस के रूप में, जिस मामले के लिए उसे वकील नियुक्त किया गया था, उस मामले की समाप्ति पर, वकील के पास बचे मुवक्किल द्वारा दिए गए पैसे एवं मुकदमे के दौरान प्राप्त पैसे को अपने पास रख सकता है। यह अधिकार तो बार काउन्सिल के नियमों के अंतर्गत दिया गया है, परन्तु अधिनियम के अंतर्गत उसे मुक़दमे से जुड़े दस्तावेजों को लेकर कोई ग्रहणाधिकार प्रदान नहीं किया गया है। हम यह जानते हैं कि भारत में बहुत सारे अनपढ़ लोग भी मामले में पक्षकार बनते हैं एवं वे एक वकील की सेवाएं लेते हैं, ऐसी स्थिति में, यह उचित नहीं हो सकता है कि वकील को उसके द्वारा दावा की गई फीस के लिए, मामले से जुड़े दस्तावेज को अपने पास रख लेने की अनुमति दी जाये। यदि ऐसी अनुमति दी जाएगी तो ऐसा कोई ग्रहणाधिकार, मुवक्किलों के शोषण के रास्ते खोल देगा।

एक ओर जहाँ वकील का यह कर्तव्य है कि वह अपने मुवक्किल की फाइलों को लौटा दे (मुकदमा खत्म होने पर या वकील बदलने की स्थिति में), तो मुवक्किल को भी यह अधिकार है कि वह अपने वकील से फाइलें वापस प्राप्त कर सके, यह तब और अधिक जरुरी हो जाता है जब मुकदमा अदालत में अभी भी चल रहा हो। मुवक्किल के इस अधिकार को, अधिवक्ता के पेशेवर कर्तव्य (Professional Duty) के संगत समकक्ष के रूप में पढ़ा जाना चाहिए।

अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 35 में परिकल्पित 'कदाचार' (Misconduct) को परिभाषित नहीं किया गया है। यह धारा, 'कदाचार, पेशेवर या अन्यथा' अभिव्यक्ति का उपयोग करती है। कदाचार शब्द एक विस्तृत शब्द है। इसे विषय वस्तु के संदर्भ में समझा जाना चाहिए। इसका शाब्दिक अर्थ है 'गलत आचरण' या 'अनुचित आचरण'।

In re A Solicitor ex parte the Law Society [(1912) 1 KB 302] के मामले में जस्टिस चार्ल्स डार्लिंग ने टिपण्णी की थी कि: यदि यह दिखाया जाता है कि एक वकील ने अपने पेशे के अंतर्गत कार्य करते हुए ऐसा कुछ किया है, जो उचित रूप से अपमानजनक या बेईमानी के रूप में देखा जा सकता है तो यह पेशेवर कदाचार है।

जॉर्ज फ्रिएर ग्राहम बनाम अटॉर्नी जनरल, फिजी (1936 PC 224) के मामले में भी इस परिभाषा को स्वीकृति मिली थी। भारत में मुवक्किल को उसकी फाइलें वापस करने से इनकार करने के मामले में, वकील को अधिनियम की धारा 35 के तहत कदाचार का दोषी माना जायेगा। यही बात आरडी सक्सेना के मामले में अभिनिर्णित की गयी थी।

भारतीय संविदा अधिनियम 1872 की धारा 171 के अंतर्गत वकील का ग्रहणाधिकार?

जैसा कि हम जानते हैं कि भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 171 के तहत, जनरल बैलेंस ऑफ़ अकाउंट के लिए, प्रतिभूति (Security) के रूप में किसी भी 'माल' (Goods) को अपने पास बनाए रखने के लिए उच्च न्यायालय के वकीलों को अनुमति दी जाती है। इस प्रयोजन के लिए 'माल' और 'उपनिधान' (Bailment) के अर्थ को समझना आवश्यक है। माल विक्रय अधिनियम 1930 की धारा 2 (7) के तहत

'माल' से अनुयोज्य दावे और धन से भिन्न हर किस्म की जंगम संपत्ति अभिप्रेत है तथा इसके अंतर्गत स्टॉक और अंश, उगती फसलें, घास और भूमि से बद्ध या उसकी भागरूप ऐसी चीज़ें जिनका विक्रय से पूर्व या विक्रय संविदा के अधीन, भूमि से पृथक किया जाने का करार किया गया हो, शामिल हैं।

वहीँ भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 148 के मुताबिक,

"उपनिधान' एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को किसी प्रयोजन के लिए इस संविदा पर माल का परिदान करता है कि जब वह प्रयोजन पूरा हो जाए तब वह लौटा दिया जाएगा; या उसे परिदान करने वाले व्यक्ति के निदेशों के अनुसार अन्यथा व्ययनित कर दिया जाएगा।"

आरडी सक्सेना के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इन परिभाषाओं की व्याख्या की और यह माना कि 'माल', बाजार में बिक्री योग्य होना चाहिए और जिस व्यक्ति को वह 'माल' प्रतिभूति के रूप में दिया गया है, वह उस माल का, धन के बदले में निपटान करने की स्थिति में होना चाहिए। रिकॉर्ड और केस पेपर और मूल दस्तावेजों की प्रतियों वाली फाइलों को 'माल' के रूप में नहीं देखा जा सकता है।

अंत में पी. कृष्णामाचारी बनाम ऑफिसियल असाइनी मद्रास (एआईआर 1932 मद्रास 256) के मामले में डिवीजन बेंच ने कहा था कि एक वकील के पास इस तरह का ग्रहणाधिकार नहीं हो सकता है, जब तक कि इसके विपरीत मुवक्किल के साथ उसका कोई समझौता न हो। यह शायद तार्किक लगे कि यदि मुवक्किल ने वकील को उसके निर्धारित शुल्क का भुगतान करने से इनकार किया है, तो वकील को मुवक्किल के अदालती दस्तावेजों के ग्रहणाधिकार की अनुमति दी जानी चाहिए, लेकिन इसके ठीक विपरीत, अदालतों ने अपने तमाम निर्णयों में यह कहा है कि वकील को फीस देने में विफल रहने पर भी, एक वकील के पास यह अधिकार नहीं है कि वह अपने मुवक्किल के दस्तावेजों को अपने पास रख सके। 

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