वकीलों को न्यायालय का अधिकारी कहा गया है, यह एक पवित्र पेशा है। कानून ने वकीलों के लिए कुछ कार्य प्रतिबंधित किये हैं जो उन्हें वकालत की सनद मिलने के बाद नहीं करने चाहिए। न्याय प्रशासन एक प्रवाह है। इसे स्वच्छ, शुद्ध एवं प्रदूषण मुक्त रखा जाना आवश्यक है। यह बार एवं बैंच दोनों का दायित्व है कि वे न्याय प्रशासन की पवित्रता को बनाये रखें। अधिवक्ताओं से ऐसे आचरण की अपेक्षा की जाती है कि उनकी सत्यनिष्ठा पर कोई अंगुलि न उठा सकें।"
भारत के उच्चतम न्यायालय द्वारा अपने एक वाद में भी वकीलों के लिए प्रतिबंधित कार्य निर्धारित किये गए हैं। वकीलों की अपनी एक 'आचार संहिता' (Code of Conduct) है। कई कार्य ऐसे हैं जो वकीलों द्वारा किये जाने चाहिये और कई ऐसे हैं जिनका किया जाना वकीलों के लिए निषिद्ध है।
ऐसे निषिद्ध कार्य निम्नांकित है-
1- निर्धारित योग्यता धारण किये बिना वकालत नहीं करना विधि व्यवसाय (वकालत) केवल वे ही व्यक्ति कर सकते हैं जो इसके लिए पात्र हो अर्थात् अर्हता रखते हों। निर्धारित योग्यता धारण किये बिना विधि व्यवसाय किया जाना निषिद्ध है।
निर्धारित योग्यता से अभिप्राय है-
(i) विधि स्नातक होना, तथा
(ii) अधिवक्ताओं की नामावली में नाम दर्ज होना अर्थात् बार कौंसिल की 'सनद' होना।
यदि कोई व्यक्ति निर्धारित योग्यता धारण किये बिना वकालत करता है तो वह अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 45 के अन्तर्गत दण्डनीय अपराध है जहां छः महीने तक के कारावास का उल्लेख है और साथ ही भारतीय दंड संहिता की धारा 415 एवं 420 भी प्रयोज्य होती है।
2- अन्य व्यवसाय नहीं करना
अधिवक्ताओं के लिए विधि व्यवसाय (वकालत) के साथ-साथ अन्य कोई व्यवसाय किया जाना निषिद्ध है। अधिवक्ता एक समय में केवल एक ही व्यवसाय कर सकता है, अर्थात् वह उसके साथ अन्य कोई व्यवसाय नहीं कर सकता है, जैसे-
(i) नर्स का कार्य
(ii) दूध की दुकान
(iii) किराना और फोटोकॉपी की दुकान
(iv) चिकित्सा व्यवसाय' आदि।
अन्य व्यवसाय करने वाले व्यक्ति बार कौंसिल को नामावली में नाम दर्ज कराने के हकदार नहीं होते।
3- पक्षकारों को गलत राय नहीं देना
वकीलों के लिए अपने पक्षकारों को गलत राय देना निषिद्ध है। उनका यह दायित्व है कि वे अपने पक्षकारों को सही राय दें और उनका सही मार्गदर्शन करें।
'पाण्डुरंग दत्तात्रेय खाण्डेकर बनाम बार कौंसिल ऑफ महाराष्ट्र" के मामले में अपने पक्षकारों को गलत राय देने को वकीलों का वृत्तिक कदाचार (Professional Misconduct) माना गया है। यदि पक्षकार का मामला कमजोर है तो उसे भ्रमित एवं गुमराह करने तथा मिथ्या आश्वासन देने की बजाय सही राय दें।
इसी प्रकार यदि पक्षकार अपने मामले में हार जाता है तो उसे अन्यथा राय देने के बजाय अपील, पुनरीक्षण या पुनर्विलोकन किये जाने की राय दी जानी चाहिये।
4-विपक्षी के साथ मिलीभगत न करना
वकील एवं पक्षकार के बीच वैश्वासिक सम्बन्ध होते हैं। अतः प्रयास यह रहना चाहिये कि यह विश्वास बना रहे, टूटे नहीं। इसके लिए यह आवश्यक है कि वकील विपक्षी के साथ किसी प्रकार की दुरभिसंधि अथवा साँठ-गाँठ (Collusion) नहीं करे, अर्थात् वह,
(i) विरोधी पक्षकार की पैरवी नहीं करे,
(ii) उसके पक्ष में नहीं बोले,
(iii) उसे मुकदमे बाबत राय न दे,
(iv) उससे शुल्क, उपहार आदि नहीं ले, एवं
(v) उसे अपने पक्षकार के विरुद्ध उत्प्रेरित नहीं करे, आदि।
5- अन्य वकील के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करें
वकील के लिए दूसरे अधिवक्ता के कार्यों में हस्तक्षेप किया जाना निषिद्ध है। वकीलों का यह कर्तव्य है कि वे अपने कार्यों तक ही सीमित रहें। दूसरे वकीलों के कार्यों में हस्तक्षेप करना वृतिक कदाचार है।
'अभय प्रकाश सहाय बनाम हाई कोर्ट, पटना के मामले में पटना उच्च न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि— आज यह प्रचलन चल पड़ा है कि अनेक वकील एक ही पक्षकार की ओर से उच्च न्यायालय एवं अधीनस्थ न्यायालयों में पैरवी कर लेते हैं। यह पता नहीं चल पाता है कि वास्तव में किस पक्षकार का वकील कौन है। इससे भ्रम को स्थिति पैदा हो जाती है।
यह इस बात की ओर संकेत है कि वकीलों को केवल अपने पक्षकारों के मामलों में ही पैरवी करनी चाहिये। अन्य के मामलों में न तो पैरवी करनी चाहिये और न ही उपस्थिति दी जानी चाहिये।
6- रिश्वत नहीं लेना
न्याय प्रशासन में 'रिश्वत' सर्वथा निषिद्ध है। वकीलों का कर्तव्य है कि वे न्यायाधीशों के नाम पर पक्षकारों से रिश्वत, उपहार आदि नहीं लें। मामले में सफलता दिलाने के लिए अथवा सफलता मिल जाने पर न्यायाधीश को उपहार अथवा रिश्वत देने के नाम पर अपने पक्षकारों से धन ऐंठना वृतिक कदाचार है।
'पुरुषोत्तम एकनाथ निमाड़े बनाम डी.एन. महाजन" के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह कहा गया है कि न्यायाधीशों के नाम पर रिश्वत लेना-
(i) वृत्तिक कदाचार है एवं
(ii) न्यायालय का अवमान (Contemp of court), दोनों है। वकीलों को ऐसे कार्यों से बचना चाहिये।
7- वादग्रस्त सम्पत्ति से संव्यवहार नहीं करना
वकीलों के लिए वादग्रस्त सम्पत्ति से संव्यवहार करना निषिद्ध है अर्थात् यह यादग्रस्त सम्पत्ति को
(i) न खरीद सकता है, और
(ii) न ही उसका अन्यथा अन्तरण कर सकता है।
इस सम्बन्ध में 'पी.डी. गुप्ता बनाम राममूर्ति का एक उद्धरणीय मामला है। इसमें उच्चतम न्यायालय द्वारा यह कहा गया है कि वकील के पक्षकार के साथ वैश्वासिक सम्बन्ध होते हैं। पक्षकार सामान्तः अपने वकील के प्रभाव में रहते हैं। अतः वकील का यह कर्तव्य हो जाता है कि वह अपने पक्षकार पर असम्यक् असर का प्रयोग न करें। वह न तो अपने पक्षकार की सम्पत्ति का क्रय करे और न उसे अन्यथा भारग्रस्त करे। इस मामले में अपीलार्थी पी. डी. गुप्ता ने अपने पक्षकार की वादग्रस्त सम्पत्ति का क्रय कर मामले में उलझन पैदा कर दी थी। भारत की बार कौंसिल द्वारा अपीलार्थी की सनद को एक वर्ष के लिए निलम्बित कर दिया गया।
8- हड़ताल आदि नहीं करना
वकीलों के लिए निम्नांकित कार्य निषिद्ध माने गये हैं-
(i) हड़ताल,
(ii) बन्द,
(iii) धरना,
(iv) प्रदर्शन,
(v) घेराव,
(vi) न्यायालयों का बहिष्कार आदि।
वकीलों को इन सभी प्रवृत्तियों से बचना चाहिये, क्योंकि इनसे पक्षकारों के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
'हरीश उप्पल बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया" के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह प्रतिपादित किया गया है कि वकीलों को हड़ताल पर जाने एवं न्यायालयों का बहिष्कार आदि करने का कोई अधिकार नहीं है। न्यायालय ऐसे मामलों में स्थगन दें, यह आवश्यक नहीं है। यदि वकील हड़ताल, बन्द अथवा बहिष्कार के कारण न्यायालय में उपस्थिति नहीं देते हैं तो उन पर खर्च अधिरोपित किया जा सकता है।
'रांची बार एसोसियेशन बनाम स्टेट ऑफ बिहार के मामले में पटना उच्च न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि न्यायपालिका स्वतंत्र है। वह भय, धमकी एवं उत्पीड़न के बिना काम करने के लिए कटिबद्ध है। यदि किसी अवैध हड़ताल, बन्द अथवा बहिष्कार द्वारा न्यायालय के कामकाज को ठप्प करने का प्रयास किया जाता है तो वह न्यायालय का अवमान है।
इसी प्रकार 'डॉ. बी एल बड़ेहरा बनाम स्टेट के मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा यह कहा गया है कि- वकील को न्यायालय का अधिकारी माना जाता है। समाज में उसका अपना विशिष्ट स्थान है। उसके पक्षकारों के साथ वैश्वासिक सम्बन्ध होते हैं। अतः वकीलों का कर्तव्य है कि वे अपने पक्षकारों के प्रति निष्ठावान रहें तथा मामले को समुचित पैरवी करें। हड़ताल बन्द बहिष्कार आदि से मामले के विचारण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, अतः वकील इनसे बचें हड़ताल वकीलों का संवैधानिक अधिकार नहीं है।
अनेक मामलों में वकीलों को हड़ताल आदि से बचने को अनुशंसा की गई है।
9- साक्षी हो जाने पर पैरवी नहीं करना वकील के लिए ऐसे मामले में पैरवी करना निषिद्ध है जिसमें वह साक्षी बन गया है। साक्षी बन जाने पर उसे स्वतः मामले से हट जाना चाहिये।
इस प्रकार वकीलों के लिए उपरोक्त कार्य निषिद्ध है। इनके अलावा ऐसे कार्य भी निषिद्ध हैं जिनसे-
(i) न्याय प्रशासन में व्यवधान उत्पन्न होता हो,
(ii) न्यायालय का अवमान होता हो, अथवा
(iii) न्याय के उद्देश्यों को विफल बनाते हों।
एन के बाजपेयी बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा कहा गया है कि हालांकि वकालत करना अधिवक्ताओं का मूल अधिकार है, लेकिन वह निरपेक्ष नहीं है। उस पर युक्तियुक्त निर्बन्धन लगाये जा सकते हैं।