सम्पत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 भाग 2: स्थावर सम्पत्ति क्या होती है

Update: 2021-07-25 05:00 GMT

संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 मूल रूप से अचल संपत्तियों के अंतरण के विनियमन हेतु निर्माण किया गया है। इस अधिनियम में कहीं भी चल संपत्ति की परिभाषा नहीं है जबकि इस अधिनियम में धारा 3 के अंतर्गत स्थावर संपत्ति अर्थात अचल संपत्ति की परिभाषा प्रस्तुत की गई है। इस अधिनियम की धारा 3 के अंतर्गत कुछ महत्वपूर्ण शब्दों की परिभाषाओं को प्रस्तुत किया गया है और यह धारा इस अधिनियम की अत्यधिक महत्वपूर्ण धाराओं में से एक हैं।

इस धारा में स्थावर संपत्ति पदावली का प्रयोग बिना यह स्पष्ट किए हुए की संपत्ति क्या है किया गया है। संपत्ति को किसी वस्तु के संबंध में प्राप्त अनिर्बन्धित तथा अनन्य अधिकार के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।

यह किसी वस्तु के स्वत्व को प्रत्येक विधिक रूप में अंतरित करने का अधिकार है तथा उसका उपयोग करने प्रत्येक व्यक्ति को उसमें हस्तक्षेप करने से वंचित करने का अधिकार है। इस बात का उल्लेख एन बख़्शी बनाम एजी बिहार राज्य एआईआर 1957 पटना 515 के मामले में किया गया है।

इसके अंतर्गत न केवल वस्तु आती है अपितु कब्जा स्वामित्व का अधिकार अथवा आंशिक स्वामित्व भी सम्मिलित है। संपत्ति के स्वरूप को भली-भांति समझने के उद्देश्य से उसे अनेक वर्गों में विभाजित किया गया है जिसे मूर्त तथा अमूर्त संपत्ति भौतिक तथा आभौतिक संपत्ति और जंगम एवं स्थावर संपत्ति उपरोक्त वर्गीकरण में से इस अधिनियम के प्रायोजनार्थ जंगम तथा स्थावर किस्म के वर्गीकरण को स्वीकृति प्रदान की गई है।

अचल संपत्ति क्या है- इस प्रयोजन यह धारा व्यापक आधार प्रस्तुत नहीं करती है। इस प्रयोजन हमें कतिपय अन्य विधियों की सहायता लेनी पड़ती है जिसमें शब्द का प्रयोग किया गया है-

जरनल क्लाजेज अधिनियम, 1897 की धारा 3 (26) उपबन्धित करती है- अचल सम्पत्ति के अन्तर्गत भूमि से उत्पन्न प्रलाभ, भूमि से संलग्न वस्तुएँ अथवा भूमि से संलग्न वस्तुओं से स्थायी रूप से आबद्ध वस्तुएँ आती हैं।

यह परिभाषा भी केवल स्पष्टीकरणात्मक है, व्यापक नहीं। रजिस्ट्रेशन अधिनियम, 1908 में भी अचल सम्पत्ति' शब्दों को परिभाषित किया गया है। इस परिभाषा के अनुसार 'अचल सम्पत्ति के अन्तर्गत भूमि, भवन, वंशानुगत भत्ते, रास्ते का अधिकार, प्रकाश, धरणाधिकार, मछली पकड़ने का अधिकार अथवा भूमि से उत्पन्न होने वाले अन्य प्रलाभ, भूमि से संलग्न वस्तुएं अथवा भूमि से संलग्न वस्तुओं से स्थायी रूप से आबद्ध वस्तुएँ आती हैं, जब कि खड़ा काष्ठ उगती फसलें तथा घासें इसके अन्तर्गत नहीं आती है।

यह परिभाषा भी उपरोक्त दोनों परिभाषाओं की भाँति केवल विवरणात्मक है, सम्पत्ति के स्वरूप को सुस्पष्ट करने में सहायक है। यह अधिनियम, जनरल क्लाजेज अधिनियम एवं रजिस्ट्रेशन अधिनियम में दी गयी परिभाषाओं को एक साथ देखने से ही अचल सम्पत्ति का स्वरूप सुस्पष्ट होता है।

उपरोक्त तीनों अधिनियमों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि चल सम्पत्ति के अन्तर्गत, भूमि, भूमि से उत्पन्न होने वाले प्रलाभ, भूमि से आबद्ध वस्तुएं, पृथ्वी से संलग्न वस्तुएँ तथा उसमें स्थायी रूप में आबद्ध वस्तुएँ, वंशानुगत भत्ते तथा रास्ते का अधिकार, धरणाधिकार, मछली पकड़ने का अधिकार इत्यादि आते हैं, जबकि खड़ा काष्ठा, उगती फसलें तथा घासें इसके अन्तर्गत नहीं आती।

भूमि:- भूमि अचल संपत्ति का सबसे महत्वपूर्ण उदाहरण है इसमें कुछ चीजें सम्मिलित हैं-

पृथ्वी की सतह का एक निश्चित भूभाग।

पृथ्वी की सतह पर निश्चित ऊंचाई तक स्थित वायुमंडल।

पृथ्वी की सतह के नीचे स्थित भूमि।

पृथ्वी की सतह अथवा सतह के नीचे प्राकृतिक रूप में विद्यमान सभी वस्तुएं।

पृथ्वी की सतह अथवा सतह के नीचे मनुष्य द्वारा स्थाई अनुबंधन के उद्देश्य से रखी गई सभी वस्तुएं जैसे भवन दीवारें आदि।

झील तालाब तथा नदियां भूमि की उपरोक्त परिकल्पना में समाहित हैं और इन्हें जल्द से आवृत भूमि की संज्ञा दी गई है।

भूमि सदैव अचल संपत्ति है भूमि से उत्पन्न होने वाले प्रभाव को भी अचल संपत्ति माना गया है क्योंकि वह भूमि से अभिन्न रूप में संलग्न होते हैं तथा भूमि के अनुसार माने जाते हैं इन्हें भूमि से अलग नहीं किया जा सकता। पेड़ से लकड़ी एकत्र करने का अधिकार, जलाशय से मछली पकड़ने का अधिकार, भूमि से खनिज एकत्र करने का अधिकार इत्यादि भूमि से उत्पन्न प्रह्लाद माने जाते हैं तथा इन्हें भी अचल संपत्ति माना जाता है।

कुछ भूमि से आवृत वस्तुएं भी अचल संपत्ति मानी जाती हैं तथा उन्हें भूमि का हिस्सा माना जाता है। पृथ्वी से आवृत वस्तुएं पदावली के अंतर्गत निम्नलिखित सम्मिलित है-

भूमि में निविष्ट वस्तु जैसे वृक्ष तथा झाड़ियां।

भूमि में निविष्ट वस्तुएं जैसे दीवारें इमारतें आदि।

भूमि में निविष्ट प्रस्तावों से उनके स्थाई लाभप्रद उपभोग के लिए संलग्न वस्तुएं जैसे खिड़की दरवाजे इत्यादि।

राजेंद्र बनाम मल्लू के पुराने प्रकरण में खान के वाद में यह अभिनिर्धारित किया था कि 4 वर्ष तक वृक्षों को काटते रहने का अधिकार अचल संपत्ति नहीं है। यह निर्णय उचित नहीं प्रतीत होता है क्योंकि प्रदत्त अधिकारों से यह स्पष्ट नहीं है कि 4 वर्षों के दौरान केवल वृक्षों को ही काटा जाएगा यदि ऐसा है तो संपत्ति में हित केवल चल संपत्ति है किंतु यदि इन 4 वर्षों में उगने वाले वृक्षों को भी काटने का अधिकार दिया गया है तो प्रदत्त अधिकार अचल संपत्ति होगा।

भूमि में निविष्ट वस्तुएं-

भूमि में निविष्ट वस्तुएं पदावली के अंतर्गत भवन इमारत दीवार जैसी वस्तुएं आती हैं किंतु कतिपय वस्तुएं जैसे लंगर जो नदियों और समुद्रों में जहाजों को रोकने के लिए प्रयोग में लाया जाता है भूमि में निविष्ट होने के बावजूद भी अचल संपत्ति नहीं माना जाता है। यदि कोई वस्तु जो भूमि में निविष्ट है अचल संपत्ति होगी या नहीं प्रत्येक मामले की परिस्थितियों पर निर्भर करेगा।

इस प्रयोजन यह देखना होगा कि वह वस्तु अपने वजन से भूमि पर विद्यमान है या नहीं और वह वस्तु अपना स्थान परिवर्तित कर सकती है या नहीं तथा उसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया सकता है अथवा नहीं कोई वस्तु भूमि में शामिल है या नहीं इस तथ्य का निर्धारण करने हेतु परीक्षण करने होते हैं वह परीक्षण दो प्रकार से हैं-

1)- संलग्न होने की मात्रा तथा प्रकृति- यह एक महत्वपूर्ण अवयव है। जब कोई वस्तु अपने वजन से ही भूमि से संलग्न है, उसे जमीन में गाड़ा या धँसाया गया है तो उस वस्तु को अचल सम्पत्ति की कोटि में नहीं माना जायेगा। उदाहरणार्थ जहाज को रोकने हेतु प्रयोग में लाया गया लंगर, एक के ऊपर रखी गयी ईंटें या पत्थर सामान्य रूप से रखा हुआ सिस्टर्न, सजावट प्रयोग में लायी गयी झोपड़ी जिसके लिए नींव नहीं खोदी गयी थी, चल सम्पत्ति को कोटि में आयेगी न कि अचल सम्पत्ति की कोटि में। यदि कोई भूमि से इस प्रकार संलग्न हो कि उसे भूमि को क्षति कारित किये बिना हटाया न जा सके, तो यह अवधारित किया जाएगा कि वह वस्तु स्थायी रूप से संलग्न है और वह अचल सम्पत्ति होगी। उदाहरणार्थ किसी कारखाने में लगे करघे, विज्ञापन हेतु खड़े किये गये स्तम्भ, सिनेमा घरों में रखी गयी सीटें, जो फर्श से बोल्ट द्वारा जुड़ी हों, क्योंकि इन परिस्थितियों में संयोजन की मात्रा एवं प्रकृति दोनों ही स्थायित्व की ओर संकेत करते हैं और संलग्न भूमि का अंग बन जाती है।

2)- संयोजन का उद्देश्य- अवयव संभावित अधिक महत्वपूर्ण है। किसी वस्तु के भूमि से संयोजित होने का उद्देश्य है, इस तथ्य का निर्धारण भी प्रत्येक मामले की परिस्थिति पर निर्भर करता है। साधारणतया, यह माना जाता है कि यदि कोई भूमि से केवल अपने ही वजन कारण संलग्न है, उसे भूमि में धँसाया या गाड़ा नहीं गया है, तो वह चल सम्पत्ति होगी। किन्तु यदि उसके स्वामी का आशय ऐसी वस्तु को भूमि का अंग बनाना है तो वह उसका अंश मानी जाएगी और अचल सम्पत्ति की कोटि में होगी। इसी कारण ईंट अथवा पत्थरों द्वारा निर्मित सूखी दीवार जिसमें गारे तथा सीमेंट का प्रयोग न हुआ हो, अचल सम्पत्ति होगी क्योंकि वह भूमि का अंग मानी जाती है जबकि उन्हीं ईंटों एवं पत्थरों को यदि एकत्र करने के आशय में रखा जाए तो वे चल संपत्ति होगी। कुआँ जमीन में गाड़ी गयी मशीन स्थाई सम्पत्ति होंगी।

खड़ा काष्ठ-

खड़ा काष्ठा का आशय लकड़ी से है जो भवन निर्माण पुल निर्माण नौका निर्माण या इनके मरम्मत हेतु काम में लाई जाती है इसके लिए आवश्यक है कि वे वृक्ष जिनसे इस प्रयोजनार्थ लकड़ी प्राप्त की जाती है कतिपय आयु एवं आकार के हों।

उपरोक्त तथ्य को ध्यान में रखते हुए वृक्षों को दो वर्गों में विभक्त किया जा सकता है-

(1) खड़ा काष्ठ प्रदान करने वाले

(2) फल प्रदान करने वाले वृक्ष।

प्रथम वर्ग के अन्तर्गत, नीम, शीशम बबूल, टीक, 'चोड़, देवदार, ओक, बाँस साख, इमली इत्यादि आते हैं। इसके अन्तर्गत वे वृक्ष नहीं आते हैं जिनकी लकड़ियाँ ईंधन के रूप में प्रयोग में जाती हैं। द्वितीय वर्ग के अन्तर्गत आम, जामुन, महुआ, कटहल, ताड़, खजूर इत्यादि के वृक्ष आते हैं।

विवादित प्रश्न यह है कि क्या खड़ा काष्ठ प्रदान करने वाले वृक्ष सदैव चल सम्पत्ति को कोटि में होंगे और फल प्रदान करने वाले वृक्ष सदैव अचल सम्पत्ति की कोटि में होंगे? साधारण स्थिति में यह माना जाता है कि काष्ठ प्रदान करने वाले वृक्ष कभी न कभी काटे जायेंगे, इसके विपरीत फलदार वृक्षों के सन्दर्भ में यह माना जाता है कि काटा नहीं जायेगा, किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि प्रथम श्रेणी के वृक्ष निश्चयतः काटे ही जाएंगे।

यदि वृक्ष में वृद्धि हो रही है, वह भूमि से भोजन तथा अवलम्ब प्राप्त कर रहा है तो वह अचल सम्पत्ति है किन्तु यदि उसे भूमि से अलग किया जाना है तो ऐसी स्थिति में उसे मिलने वाला भोजन और अवलम्ब तुच्छ होगा। यह स्थिति उसे अचल सम्पत्ति से परे कर देगी।

वृक्ष चाहे प्रथम श्रेणी का हो या द्वितीय श्रेणी का मार्शल के अनुसार- 'सिद्धान्त यह प्रतीत होता है कि जब कभी भी संविदा के समय यह अपेक्षित रहता है कि विक्रय की गयी वस्तु की अतिरिक्त वृद्धि से लाभ प्राप्त करेगा. संविदा भूमि में हित अन्तरित करती हुई मानी जाएगी किन्तु यदि प्रक्षेपण (वृद्धि) की प्रक्रिया समाप्त हो चुकी हैं, या यदि पक्षकार इस बात पर सहमत हो गये हैं कि विक्रय की गयी वस्तु यथाशीघ्र भूमि से हटा ली जाएगी. तो ऐसी स्थिति में भूमि, विक्रय की गयी वस्तु के लिए केवल गोदाम स्वरूप होगी, और संविदा, माल की संविदा से तुल्य होगी।'

इसी विचारधारा को भारत में भी स्वीकार किया गया है। खड़ा काष्ठ प्रदान करने वाले वृक्षों को यदि काटने का आशय नहीं बनाया गया है तो वे अचल सम्पत्ति होंगे। इसी प्रकार फलदार वृक्ष को यदि काटने का निश्चय किया जा चुका तो वह चल सम्पत्ति होगा।

साधारण स्थिति इसके विपरीत होती है। स्टेट ऑफ उड़ीसा बनाम टीटागढ़ पेपर मिल्स कं० लि वाद में कुछ वृक्ष एवं बाँस इस आशय से बेचे गये कि क्रेता उन्हें दस वर्षों तक वृक्षों एवं बाँसों के विक्रय को अचल सम्पत्ति का विक्रय गया। इसी प्रकार भविष्य में उगने वाले बाँसों के सम्बन्ध में की गयी संविदा, अचल सम्पत्ति से सम्बन्धित होगी।

उगती फसलें – इस शीर्षक के अन्तर्गत सब्जी जैसी वस्तुओं को सम्मिलित किया गया है चाहे वे फल, पत्ती, छिलके अथवा जड़ के रूप में ही क्यों न हों।

ऐसी अवधारणा है कि इन वस्तुओं का अस्तित्व इनके व्युत्पाद के कारण ही है। इससे भिन्न इनका अस्तित्व नहीं है। वृक्ष एवं झाड़ियाँ इस कोटि में नहीं आते क्योंकि इनकी स्थिति सब्जियों से भिन्न होती है। कभी-कभी सब्जियों की कालावधि को लेकर विवाद उठता है।

मनोहर लाल रामेश्वर दास बनाम स्टेट ऑफ एमपी के मामले में कहा गया है- इस सम्बन्ध में महत्वपूर्ण यह है कि सब्जियों के जीवनकाल का उनकी प्रकृति पर कोई प्रभाव नहीं स्वीकार किया गया है।

'उगती फसलें' पदावली के अन्तर्गत विद्यमान फसलों और उन फसलों को, जिनमें फूल और फल लग रहे हों, रखा गया है। किन्तु भविष्य में उगायी जाने वाली फसलें इस पदावलि के अन्तर्गत नहीं आयेंगी क्योंकि वे भूमि से उत्पन्न होने वाले प्रलाभ के तुल्य होंगी। अत: अचल सम्पत्ति की कोटि में आयेंगी। उगती फसलें शीर्षक के अन्तर्गत, गन्ने के पौधे, पान की बेलें व अन्य लताएं जैसे अंगूर, सब्जियों के पौधे, जैसे बैंगन, टमाटर, गोभी, जौ, गेहूँ, चना, मटर इत्यादि आते हैं।

घास–'घास' अचल सम्पत्ति से परे रखी गयी है क्योंकि इसका एकमात्र उपयोग चारे के रूप में होता है। घास को चारे के रूप में किसी भी प्रकार प्रयोग में लाया जा सकता है, किन्तु उगती हुई घासों को काटते रहने का अधिकार अचल सम्पत्ति की कोटि में आयेगा क्योंकि यह अधिकार भूमि से उत्पन्न होने वाले प्रलाभ की कोटि में आयेगा।

इंग्लिश विधि के अन्तर्गत घास को काटने तथा उसे ढेर के रूप में इकट्ठा करने का अधिकार भूमि में सृष्ट अधिकार के तुल्य माना जाता है। यदि शीघ्र घास को काटकर हटाने का उद्देश्य नहीं है, तो सृष्ट हित अचल सम्पत्ति होगा।

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