The Indian Contract Act में कोई Free Concern में Coercion नहीं होना

Update: 2025-08-15 11:51 GMT

वैध संविदा के लिए स्वतंत्र सहमति आवश्यक गुण है। स्वतंत्र सहमति की परिभाषा भारतीय संविदा अधिनियम के अंतर्गत धारा 14 में प्रस्तुत की गई है। धारा 14 के अंतर्गत स्वतंत्र सहमति के गुणों का उल्लेख किया गया है। किसी भी वैध संविदा के लिए स्वतंत्र सहमति आवश्यक है।

सम्मति का तात्पर्य वास्तविक सम्मति से है। इसे शुद्ध सम्मती भी कहते हैं। यदि यह स्वतंत्र या शुद्ध नहीं है तो यह संविदा को प्रतिकूल रूप में प्रभावित कर सकती है। इस प्रकार जब भी विधिमान्य संविदा का सृजन किया जाना तात्पर्य हो तो ऐसी स्थिति में पक्षकारों की स्वतंत्र सम्मति आवश्यक है। इस प्रकार धारा 14 के अंतर्गत स्वतंत्र सहमति के अर्थ को भली प्रकार स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है। यदि पक्षकार भी कोई अधिकार विषय वस्तु के संदर्भ में आयोजित करता है तो यह तब तक मानना होगा जब तक कि इसी दरमियान संविदा अपास्त न कर दी जाए।

Coercion

प्रपीड़न किसी भी स्वतंत्र सहमति के लिए घातक होता है। कोई भी सहमति स्वतंत्र नहीं होती है यदि उसमें प्रपीड़न का समावेश होता है। भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 15 के अंतर्गत प्रपीड़न की परिभाषा दी गई है। इस परिभाषा के अनुसार किसी व्यक्ति की सम्मति प्रपीड़न द्वारा तब अभिप्राप्त की गई कहीं जाती है।

जब वह कोई कार्य करें अथवा उक्त कार्य को करने की धमकी दे जो भारतीय दंड संहिता द्वारा निषिद्ध हो या किसी व्यक्ति पर कोई प्रतिकूल प्रभाव डालने के लिए किसी सम्मति का विधि विरुद्ध विरोध करना विरोध करने की धमकी देना भी इसके अंतर्गत आता है।

सरल शब्दों में यह समझा जा सकता है कि धमकी देकर किसी व्यक्ति से सहमति प्राप्त करना प्रपीड़न होता है। अज़हर मिर्जा बनाम बीवी जय किशोर 1912 के प्रकरण में यह कहा गया है कि धारा 15 अत्यंत व्यापक है क्योंकि इस पर सम्मति का विधि विरुद्ध रूप में निरुद्ध किया जाना भी तात्पर्य है। पत्नी और पुत्र के मध्य आत्महत्या संबंधी कोई करार इसी प्रकार संविदा को दूषित कर देते हैं।

एक प्रकरण में जहां वादी जो कि राष्ट्रीय राजमार्ग वाहक था प्रतिवादी से उसकी एक संविदा हुई कि प्रतिवादी के माल का परिवहन करेगा। उसे एक सुनिश्चित धनराशि प्रत्येक चक्कर में प्राप्त होगी। व धनराशि सुधारित की गई किंतु बाद में वादी ने ऐसा करने से इंकार कर दिया और कहा कि प्रति लोड जब तक उसे प्रतिवादी 440 पौंड देना स्वीकार नहीं कर लेता तब तक वादी उसके माल का वाहन नहीं करेगा, क्योंकि प्रतिवादी वादी की सेवा पर पूरी तरह से आश्रित था उसने उसकी बात को उस समय स्वीकार कर लिया क्योंकि उसके पास उसको अस्वीकार करने का कोई विकल्प नहीं था किंतु भाड़े का संदाय न किया तो वादी ने उसे वसूलने हेतु वाद संस्थित किया। कोर्ट ने निर्धारित किया कि उक्त मामला आर्थिक प्रपीड़न की कोटि में आने वाला था क्योंकि सहमति प्रपीड़न के द्वारा प्राप्त की गई है। यह इंग्लैंड का प्रकरण है।

प्रपीड़न के संबंध में सबूत जहां किसी मामले में प्रपीड़न के बारे में कोई अभिकथन प्रस्तुत किया गया हो वहां इस संदर्भ में पूर्ण विवरण मामले को साबित किए जाने हेतु प्रस्तुत किया जाना चाहिए और पक्षकारों का यह कर्तव्य है कि वे मामले से संबंधित प्रमुख तत्वों का वर्णन करें। यह कहा जा सकता है कि प्रपीड़न का भी कथन प्रस्तुत करने वाला व्यक्ति प्रपीड़न के अस्तित्व को साबित करें।

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