क्या सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की जवाबदेही RTI Act के तहत है?

Update: 2025-03-18 11:24 GMT
क्या सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की जवाबदेही RTI Act के तहत है?

सुप्रीम कोर्ट ने अंजलि भारद्वाज बनाम CPIO, सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया (RTI Cell) (2022) मामले में एक महत्वपूर्ण कानूनी मुद्दे पर फैसला दिया, जो सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम (Supreme Court Collegium) की पारदर्शिता (Transparency) से जुड़ा था।

इस मामले में यह सवाल उठाया गया कि क्या कोलेजियम की बैठकों में हुई चर्चाओं को सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (Right to Information Act, 2005 - RTI Act) के तहत सार्वजनिक किया जाना चाहिए।

अदालत ने स्पष्ट किया कि केवल कोलेजियम के अंतिम निर्णय (Final Decision) और प्रस्ताव (Resolution) ही सार्वजनिक किए जाने चाहिए, जबकि चर्चाओं (Discussions) और विचार-विमर्श (Deliberations) को सार्वजनिक करने की आवश्यकता नहीं है।

इस फैसले ने न्यायिक स्वतंत्रता (Judicial Independence) और जनता के सूचना के अधिकार (Right to Information - RTI) के बीच संतुलन बनाए रखने के महत्व को उजागर किया।

कानूनी मुद्दा: RTI और कोलेजियम चर्चाओं की पारदर्शिता (RTI and Collegium Discussions Transparency)

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) को पारदर्शिता (Transparency) और जवाबदेही (Accountability) सुनिश्चित करने के लिए लागू किया गया था। यह अधिनियम नागरिकों को सरकारी संस्थानों से जानकारी प्राप्त करने का अधिकार देता है। सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम, जो न्यायाधीशों (Judges) की नियुक्ति और स्थानांतरण (Transfer) के लिए जिम्मेदार है, को अक्सर गोपनीयता (Secrecy) के कारण आलोचना झेलनी पड़ती है।

अंजलि भारद्वाज मामले में याचिकाकर्ता (Petitioner) ने 12 दिसंबर 2018 को हुई कोलेजियम बैठक का विवरण मांगा, जिसमें कुछ न्यायिक नियुक्तियों (Judicial Appointments) पर चर्चा की गई थी। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि चूंकि कोलेजियम एक सार्वजनिक निकाय (Public Body) है, इसलिए इसकी चर्चाएं RTI अधिनियम के तहत सार्वजनिक की जानी चाहिए।

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दिया कि केवल अंतिम प्रस्ताव (Final Resolution) ही सार्वजनिक किया जाना चाहिए, जबकि चर्चाओं को सार्वजनिक करने की कोई आवश्यकता नहीं है।

कोलेजियम की पारदर्शिता पर पूर्व के न्यायिक फैसले (Judicial Precedents on Collegium Transparency)

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पहले के कुछ महत्वपूर्ण फैसलों को दोहराया। Supreme Court Advocates-on-Record Association बनाम भारत संघ (2015) मामले में अदालत ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (National Judicial Appointments Commission - NJAC) को असंवैधानिक (Unconstitutional) ठहराया और कोलेजियम प्रणाली (Collegium System) को बरकरार रखा। इस फैसले में न्यायिक स्वतंत्रता को बनाए रखने पर जोर दिया गया था।

Central Public Information Officer, Supreme Court of India बनाम सुभाष चंद्र अग्रवाल (2019) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि कोलेजियम के कुछ कार्य RTI के तहत आ सकते हैं, लेकिन न्यायिक नियुक्ति प्रक्रिया की गोपनीयता (Confidentiality) को बनाए रखना आवश्यक है।

इस फैसले में यह स्पष्ट किया गया कि कोलेजियम के अंतिम प्रस्ताव (Final Resolution) सार्वजनिक किए जाने चाहिए, लेकिन उनके पीछे हुई चर्चाओं को सार्वजनिक करने की आवश्यकता नहीं है।

इसी तरह, एस. पी. गुप्ता बनाम भारत संघ (1981) मामले में अदालत ने माना कि सभी सरकारी दस्तावेज (Government Documents) को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता, खासकर यदि वे निर्णय लेने की प्रक्रिया (Decision-Making Process) को प्रभावित करते हैं।

अंजलि भारद्वाज मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इसी सिद्धांत (Principle) को दोहराते हुए कहा कि जब तक कोलेजियम का अंतिम प्रस्ताव पारित नहीं हो जाता, तब तक चर्चाएं केवल एक अनौपचारिक (Informal) प्रक्रिया मानी जाएंगी।

सुप्रीम कोर्ट की RTI अधिनियम की व्याख्या (Supreme Court's Interpretation of RTI Act)

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में यह विचार किया कि क्या कोलेजियम चर्चाओं से संबंधित जानकारी RTI अधिनियम के दायरे में आती है। RTI अधिनियम की धारा 8(1)(e) (Section 8(1)(e)) के अनुसार, किसी भी संस्थान के पास फिड्यूशियरी क्षमता (Fiduciary Capacity) में रखी गई जानकारी को सार्वजनिक करने की आवश्यकता नहीं है।

अदालत ने माना कि कोलेजियम चर्चाओं में गोपनीयता (Confidentiality) बनाए रखना आवश्यक है क्योंकि वे केवल परामर्श (Consultation) का हिस्सा होती हैं, अंतिम निर्णय (Final Decision) नहीं।

RTI अधिनियम की धारा 8(1)(i) (Section 8(1)(i)) यह कहती है कि किसी भी निर्णय लेने की प्रक्रिया के दौरान प्राप्त जानकारी को तब तक सार्वजनिक करने की आवश्यकता नहीं है, जब तक वह पूरा नहीं हो जाता। सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि जब तक कोलेजियम का अंतिम प्रस्ताव पारित और हस्ताक्षरित (Signed) नहीं हो जाता, तब तक वह एक "निर्णय" (Decision) नहीं माना जा सकता और उसे सार्वजनिक करने की आवश्यकता नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने 2017 के अपने प्रस्ताव (Resolution) का भी उल्लेख किया, जिसमें यह निर्देश दिया गया था कि कोलेजियम के अंतिम प्रस्ताव को सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड किया जाएगा। हालांकि, अदालत ने यह स्पष्ट किया कि यह नियम चर्चाओं और अस्थायी निर्णयों (Tentative Decisions) पर लागू नहीं होता।

न्यायिक स्वतंत्रता और पारदर्शिता के बीच संतुलन (Balancing Judicial Independence and Transparency)

यह निर्णय न्यायिक स्वतंत्रता और पारदर्शिता के बीच संतुलन बनाए रखने के महत्व को उजागर करता है। कोलेजियम प्रणाली को अक्सर गोपनीयता के कारण आलोचना झेलनी पड़ती है, और न्यायिक नियुक्तियों में अधिक जवाबदेही की मांग की जाती है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि पारदर्शिता को न्यायिक स्वतंत्रता की कीमत पर लागू नहीं किया जाना चाहिए।

अदालत का तर्क है कि यदि कोलेजियम चर्चाओं को सार्वजनिक किया जाता है, तो यह जजों की स्वतंत्र राय को प्रभावित कर सकता है और उन्हें दबाव में ला सकता है। इससे न्यायिक नियुक्ति प्रक्रिया में बाहरी हस्तक्षेप (External Influence) बढ़ सकता है, जिससे निष्पक्षता (Fairness) प्रभावित हो सकती है।

इसके बावजूद, जनता को न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया को समझने और इसमें पारदर्शिता की मांग करने का अधिकार है। अंजलि भारद्वाज मामले में अदालत का दृष्टिकोण यह दिखाता है कि पारदर्शिता आवश्यक है, लेकिन इसे न्यायपालिका की स्वायत्तता (Autonomy) को कमजोर किए बिना लागू किया जाना चाहिए।

क्या कोलेजियम प्रणाली में सुधार की जरूरत है? (Need for Institutional Reforms in Collegium System)

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि कोलेजियम चर्चाएं RTI के तहत नहीं आतीं, फिर भी यह सवाल बना रहता है कि क्या न्यायिक नियुक्ति प्रणाली (Judicial Appointment System) में सुधार किया जाना चाहिए? कई कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि कोलेजियम प्रणाली में अधिक जवाबदेही (Accountability) लाने की आवश्यकता है, जबकि इसकी स्वतंत्रता (Independence) को भी बनाए रखना चाहिए।

संभावित सुधारों में एक ऐसा तंत्र (Mechanism) विकसित करना शामिल हो सकता है, जिसमें न्यायपालिका (Judiciary) अपने निर्णयों के पीछे का तर्क स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करे, बिना गोपनीय चर्चाओं को उजागर किए। एक अन्य तरीका एक न्यायिक निगरानी निकाय (Judicial Oversight Body) बनाना हो सकता है, जो पारदर्शिता सुनिश्चित करे, लेकिन निर्णय लेने की प्रक्रिया की गोपनीयता को बरकरार रखे।

सुप्रीम कोर्ट का अंजलि भारद्वाज बनाम CPIO, सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया (RTI Cell) में दिया गया निर्णय यह स्पष्ट करता है कि कोलेजियम प्रणाली के अंतिम प्रस्ताव RTI के तहत सार्वजनिक किए जा सकते हैं, लेकिन चर्चाएं गोपनीय रहेंगी। इस फैसले ने RTI अधिनियम की सीमाओं को परिभाषित किया और न्यायिक स्वतंत्रता बनाए रखने के महत्व को दोहराया।

भविष्य में, यदि कोलेजियम प्रणाली में कोई सुधार किया जाता है, तो वह विधायी संशोधन (Legislative Amendment) या नीतिगत बदलावों (Policy Reforms) के माध्यम से होगा, न कि केवल न्यायिक निर्णयों से।

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