इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से अश्लील और यौन सामग्री के प्रसारण से जुड़े अपराध और दंड: सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 67, 67A, 67B और 67

Update: 2025-06-11 12:09 GMT

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 को भारत सरकार ने डिजिटल दुनिया में बढ़ते आर्थिक, सामाजिक और कानूनी व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए लागू किया था। इसका मुख्य उद्देश्य इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड और डिजिटल हस्ताक्षर को कानूनी मान्यता देना था, जिससे इंटरनेट आधारित संचार और व्यापार को एक वैधानिक आधार प्राप्त हो सके। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, इंटरनेट का दुरुपयोग बढ़ता गया और इस अधिनियम में नए संशोधन करने की आवश्यकता महसूस हुई।

खासकर, इंटरनेट के ज़रिए अश्लील सामग्री का आदान-प्रदान, बच्चों के यौन शोषण से जुड़े दृश्य, और यौन रूप से स्पष्ट क्रियाओं वाले वीडियो या चित्रों के प्रकाशन को रोकने के लिए अधिनियम की कुछ विशेष धाराएं बेहद जरूरी बन गईं। इन्हीं में से प्रमुख धाराएं हैं धारा 67, 67A, 67B और 67C।

धारा 67 सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत एक मूलभूत प्रावधान है जो अश्लील (Obscene) सामग्री को इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों पर प्रकाशित करने या प्रसारित करने से संबंधित है। इस धारा के अंतर्गत कोई भी व्यक्ति जो इंटरनेट, मोबाइल एप्लिकेशन, वेबसाइट, या किसी अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म पर कोई ऐसा कंटेंट अपलोड करता है या शेयर करता है जो अश्लील हो या यौन इच्छा को भड़काने वाला हो, और जिसका प्रभाव ऐसा हो कि वह पढ़ने, देखने या सुनने वाले व्यक्ति को मानसिक या नैतिक रूप से भ्रष्ट कर दे, तो वह कानून के अंतर्गत दोषी माना जाएगा।

यह धारा इस बात पर भी ज़ोर देती है कि प्रसारित की गई सामग्री की प्रकृति और उसकी संभावित सामाजिक प्रतिक्रिया को ध्यान में रखते हुए दंड तय किया जाएगा। इस धारा के तहत पहली बार दोषी पाए जाने पर अधिकतम तीन साल तक की सज़ा हो सकती है और साथ ही पांच लाख रुपये तक जुर्माना भी लगाया जा सकता है। यदि वही व्यक्ति दूसरी बार या बार-बार वही अपराध करता है, तो सजा की अवधि पांच साल तक बढ़ जाती है और जुर्माना भी दस लाख रुपये तक लगाया जा सकता है।

इस धारा का व्यापक प्रभाव इस दृष्टिकोण से भी है कि यह भारतीय दंड संहिता, जो अब भारतीय न्याय संहिता के रूप में जानी जाती है, की उस परंपरा को आगे बढ़ाती है जिसमें सार्वजनिक नैतिकता (Public Morality) और शालीनता (Decency) की रक्षा को प्राथमिकता दी जाती रही है। पहले ऐसे मामलों को आईपीसी की धारा 292 या 294 के अंतर्गत देखा जाता था, परंतु अब इंटरनेट आधारित अपराधों के बढ़ने से इस प्रकार के विशिष्ट प्रावधान जरूरी हो गए हैं।

धारा 67A धारा 67 से भी आगे की स्थिति को दर्शाती है। इसमें केवल अश्लील सामग्री नहीं बल्कि यौन कृत्य को स्पष्ट रूप से दर्शाने वाली सामग्री को कवर किया गया है। जब कोई व्यक्ति किसी ऐसे वीडियो, चित्र, एनिमेशन या ऑडियो-विजुअल माध्यम में यौन गतिविधियों को दिखाता है और उसे इलेक्ट्रॉनिक रूप में साझा करता है, तो वह इस धारा के अंतर्गत दोषी माना जाता है।

यहां यह स्पष्ट किया गया है कि 'यौन कृत्य' (Sexual Act) का तात्पर्य वास्तविक या स्पष्ट रूप से प्रदर्शित शारीरिक संबंध की गतिविधियों से है। इस धारा के अंतर्गत पहली बार दोषी पाए जाने पर अधिकतम पांच वर्ष तक की सजा और दस लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। पुनरावृत्ति की स्थिति में सजा सात वर्ष तक हो सकती है और जुर्माना दस लाख रुपये तक ही रहेगा।

आज के दौर में जब स्मार्टफोन और इंटरनेट का उपयोग हर आयु वर्ग के लोग कर रहे हैं, तब कई बार ऐसे दृश्य जो वास्तव में यौन क्रियाओं को दर्शाते हैं, बहुत आसानी से सोशल मीडिया या निजी चैट प्लेटफॉर्म पर वायरल हो जाते हैं।

कई बार यह अपराध केवल मनोरंजन के उद्देश्य से नहीं बल्कि किसी व्यक्ति को बदनाम करने या उसका उत्पीड़न करने के इरादे से किया जाता है। उदाहरण के रूप में, यदि कोई व्यक्ति अपनी पूर्व प्रेमिका का एक निजी वीडियो वायरल कर देता है जिसमें वे शारीरिक संबंध में दिखाई दे रहे हैं, तो यह धारा 67A के अंतर्गत गंभीर अपराध माना जाएगा। इस प्रकार की सामग्री पीड़िता की निजता और गरिमा को गंभीर रूप से चोट पहुँचाती है।

यह ध्यान देने योग्य है कि धारा 67A की प्रकृति और प्रभाव धारा 66E से भी मेल खाता है जिसमें किसी व्यक्ति की निजता के उल्लंघन पर दंड का प्रावधान किया गया है। यदि किसी की सहमति के बिना उसका नग्न या अर्धनग्न चित्र या वीडियो लिया जाता है और उसे डिजिटल रूप से प्रसारित किया जाता है, तो यह सीधे तौर पर 66E के साथ-साथ 67A के अंतर्गत भी दंडनीय हो सकता है।

धारा 67B विशेष रूप से बच्चों से संबंधित अपराधों पर केंद्रित है। यह सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की सबसे संवेदनशील और गंभीर धाराओं में से एक मानी जाती है। इसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति बच्चों (अर्थात 18 वर्ष से कम आयु के लोग) से संबंधित किसी भी प्रकार की अश्लील या यौन सामग्री को बनाता है, अपलोड करता है, साझा करता है, डाउनलोड करता है, या उसका प्रचार-प्रसार करता है, तो वह अपराध करेगा।

इसमें यह भी जोड़ा गया है कि यदि कोई व्यक्ति बच्चों को यौन संबंधों के लिए उकसाता है या इंटरनेट के माध्यम से किसी भी प्रकार से बच्चों के साथ आपत्तिजनक व्यवहार करता है, तो वह इस धारा के अंतर्गत दोषी होगा। इस धारा की सबसे खास बात यह है कि यह केवल सामग्री के प्रकाशन तक सीमित नहीं है बल्कि उस सामग्री को देखने, खोजने, डाउनलोड करने या संग्रहित करने जैसे कार्य भी दंडनीय हैं।

इस धारा में पहली बार अपराध करने पर पांच वर्ष तक की जेल और दस लाख रुपये तक जुर्माने का प्रावधान है, जबकि दूसरी बार या उसके बाद सात वर्ष तक की जेल और दस लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। यह प्रावधान POCSO Act, 2012 के प्रावधानों के पूरक के रूप में कार्य करता है। आज जब ऑनलाइन गेमिंग, सोशल मीडिया, और बच्चों के लिए बनाए गए इंटरैक्टिव ऐप्स में गोपनीयता और सुरक्षा को लेकर कई सवाल उठते हैं, तब यह धारा बच्चों की साइबर सुरक्षा के लिए एक बेहद महत्वपूर्ण उपकरण बन गई है।

इसके साथ ही इन तीनों धाराओं में एक सामान्य छूट (Exception) भी दी गई है। यदि किसी सामग्री का प्रकाशन शिक्षा, विज्ञान, साहित्य, कला या किसी अन्य सार्वजनिक हित के उद्देश्य से किया गया हो, और यदि उसका प्रयोग किसी धार्मिक या सांस्कृतिक परंपरा के संदर्भ में हो, तो उसे अपराध नहीं माना जाएगा। उदाहरण के रूप में, यदि किसी डॉक्यूमेंट्री फिल्म में किसी जनजातीय समाज की सांस्कृतिक नग्नता दिखाई गई है, और उसका उद्देश्य सामाजिक अध्ययन करना है, तो वह अपराध नहीं माना जाएगा। इसी प्रकार कोई चिकित्सा संस्थान यदि यौन अंगों की जानकारी एक शैक्षणिक संदर्भ में साझा करता है, तो वह इस छूट के अंतर्गत आ सकता है।

धारा 67C इस अधिनियम का वह प्रावधान है जो इंटरनेट सेवा प्रदाताओं, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, और अन्य डिजिटल इंटरमीडियरीज़ से संबंधित है। इसे इंटरनेट के 'मध्यस्थ' यानी Intermediary के लिए जिम्मेदारी सुनिश्चित करने के उद्देश्य से लाया गया है।

इस धारा के अनुसार, सभी Intermediaries को भारत सरकार द्वारा निर्धारित समयावधि के अनुसार कुछ सूचनाएं सुरक्षित रखनी होती हैं और उन्हें आवश्यकता पड़ने पर जांच एजेंसियों के साथ साझा करना होता है। यदि कोई Intermediary जानबूझकर या लापरवाही से इन सूचनाओं को नष्ट करता है, छुपाता है या साझा नहीं करता, तो उसे तीन साल तक की जेल और जुर्माना भुगतना पड़ सकता है।

यह धारा Intermediaries को उनकी सीमा और जिम्मेदारी दोनों का अहसास कराती है। वे केवल प्लेटफॉर्म बनाकर मुक्त नहीं हो सकते, बल्कि उन्हें भी यह सुनिश्चित करना होता है कि उनके प्लेटफॉर्म पर आपत्तिजनक सामग्री का प्रसार न हो, और यदि हो भी तो समय रहते उसका रिकॉर्ड संरक्षित किया जाए।

धारा 67C को अधिनियम की धारा 79 के साथ पढ़ा जाना चाहिए जिसमें Intermediaries को कुछ शर्तों के तहत कानूनी सुरक्षा (Safe Harbour) प्रदान की जाती है। लेकिन यदि वे सरकार के निर्देशों का पालन नहीं करते, तो यह सुरक्षा समाप्त हो जाती है।

इन धाराओं का महत्व आज के डिजिटल युग में बेहद बढ़ गया है। अब अपराधी किसी गली या नुक्कड़ पर अपराध नहीं करते, बल्कि किसी बंद कमरे में बैठकर मोबाइल या लैपटॉप के ज़रिए पूरे समाज में आपत्तिजनक कंटेंट फैला सकते हैं। यह सामग्री केवल देश की संस्कृति को आघात नहीं पहुंचाती बल्कि कई बार लोगों की व्यक्तिगत ज़िंदगी को नष्ट कर देती है। किसी की प्रतिष्ठा को गिराने, बदला लेने, या पैसे कमाने जैसे मकसद से अश्लील वीडियो या चित्र साझा करना एक गंभीर सामाजिक और कानूनी अपराध बन चुका है।

Shreya Singhal बनाम भारत सरकार के ऐतिहासिक निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने यह अवश्य कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Speech) संविधान प्रदत्त मूल अधिकार है और उसके उल्लंघन के लिए कोई भी असंवैधानिक प्रावधान स्वीकार नहीं किया जा सकता। इसी कारण धारा 66A को निरस्त कर दिया गया, लेकिन कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अश्लीलता, यौन हिंसा, और बच्चों से जुड़े यौन शोषण को रोकने वाले प्रावधान पूरी तरह वैध और आवश्यक हैं।

इस संपूर्ण विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धाराएं 67, 67A, 67B और 67C हमारे समाज में डिजिटल नैतिकता और ज़िम्मेदार इंटरनेट व्यवहार को बनाए रखने के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। ये धाराएं कानून को केवल दंड देने का माध्यम नहीं बनातीं, बल्कि वे समाज को एक दिशा देती हैं जहाँ हर नागरिक डिजिटल स्वतंत्रता के साथ-साथ डिजिटल ज़िम्मेदारी का भी पालन करे।

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