राजस्थान न्यायालय शुल्क अधिनियम, 1961 की धारा 66 से 68 : Stamp के निरस्तीकरण की प्रक्रिया
राजस्थान न्यायालय शुल्क और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 (Rajasthan Court Fees and Suits Valuation Act, 1961) एक महत्वपूर्ण कानून है जो विभिन्न वादों और अपीलों में लगने वाले न्यायालय शुल्क को नियंत्रित करता है। इस अधिनियम के अध्याय आठ (Chapter VIII – Miscellaneous) में कुछ विविध लेकिन अत्यंत उपयोगी नियमों को शामिल किया गया है, जो न्यायालय शुल्क की वसूली की प्रक्रिया, दस्तावेजों में त्रुटि सुधार, और मुद्रांक (Stamp) के निरस्तीकरण से संबंधित हैं।
यह अध्याय धारा 66, 67 और 68 में विभाजित है और इनका पालन करना प्रत्येक वादी, वकील और न्यायालय से जुड़े अधिकारी के लिए आवश्यक है। इस लेख में इन तीनों धाराओं का सरल और विस्तारपूर्ण विश्लेषण किया गया है, जिसमें पूर्व की धाराओं का भी संदर्भ दिया गया है।
धारा 66 - न्यायालय शुल्क की वसूली केवल मुद्रांक द्वारा (Collection of Fees by Stamps)
धारा 66 के अनुसार, इस अधिनियम के अंतर्गत जितने भी शुल्क देय हैं, वे सभी केवल मुद्रांक (Stamp) द्वारा ही वसूले जाएंगे। इसका तात्पर्य यह है कि जब कोई व्यक्ति न्यायालय में वाद दाखिल करता है, अपील करता है या अन्य कोई आवेदन प्रस्तुत करता है, तो जो भी शुल्क लागू होता है, उसे नकद या अन्य किसी माध्यम से नहीं, बल्कि केवल मुद्रांक लगाकर ही चुकाया जा सकता है। यह प्रक्रिया राज्य सरकार द्वारा समय-समय पर अधिसूचना के माध्यम से निर्धारित की जाती है।
इसमें यह भी स्पष्ट किया गया है कि यह मुद्रांक केवल एक प्रकार का नहीं होगा। राज्य सरकार यह तय कर सकती है कि यह मुद्रांक किस प्रकार का होगा – केवल मुद्रांकित (Impressed), केवल चिपकाने योग्य (Adhesive) या दोनों का मिश्रण। यह प्रावधान इसलिए बनाया गया है ताकि शुल्क की वसूली पारदर्शिता और नियंत्रण के साथ की जा सके।
उदाहरण के रूप में मान लीजिए कि किसी व्यक्ति को एक दीवानी वाद दर्ज करवाना है और उस पर ₹500 का न्यायालय शुल्क लागू होता है। उस व्यक्ति को ₹500 का न्यायालय शुल्क केवल न्यायालय शुल्क मुद्रांक (Court Fee Stamp) के रूप में लगाकर ही भुगतान करना होगा। वह यह राशि नकद देकर या डिमांड ड्राफ्ट से नहीं चुका सकता।
धारा 67 - दस्तावेज में त्रुटि सुधार करने पर पुनः मुद्रांक लगाने की आवश्यकता नहीं (Amended Document)
धारा 67 एक अत्यंत व्यावहारिक और सहूलियत देने वाला प्रावधान है। इसके अनुसार, यदि कोई दस्तावेज, जिस पर इस अधिनियम के अंतर्गत मुद्रांक लगाना अनिवार्य है, उसमें कोई त्रुटि रह जाती है और बाद में उस दस्तावेज में केवल उस त्रुटि को सुधारने के लिए संशोधन (Amendment) किया जाता है, तो ऐसे संशोधन पर पुनः नया मुद्रांक लगाने की आवश्यकता नहीं होती।
यह छूट केवल तभी मिलती है जब संशोधन केवल गलती सुधारने (Mistake Correction) के लिए किया गया हो और उस दस्तावेज को उस रूप में लाया गया हो जैसा मूल रूप से पक्षकारों का इरादा था।
उदाहरण के लिए मान लीजिए कि एक अपील का मेमो तैयार किया गया और उसमें याचिकाकर्ता का नाम टाइपिंग की गलती के कारण गलत दर्ज हो गया। अब यदि वही मेमो संशोधित कर के सही नाम लिखा जाता है, तो इस संशोधन के लिए नए सिरे से मुद्रांक लगाने की आवश्यकता नहीं होगी क्योंकि यह केवल त्रुटि सुधार है, न कि दस्तावेज को मूल रूप से बदलना।
यह प्रावधान धारा 61 और 62 से इस मायने में भिन्न है कि वहां शुल्क की वापसी की बात की गई है, जबकि धारा 67 में शुल्क फिर से लगाने की आवश्यकता से छूट दी गई है।
धारा 68 - मुद्रांक के निरस्तीकरण की प्रक्रिया (Cancellation of Stamp)
धारा 68 न्यायालय शुल्क के रूप में लगाए गए मुद्रांकों के निरस्तीकरण (Cancellation) से संबंधित है। इस धारा में यह निर्देश दिया गया है कि जब कोई ऐसा दस्तावेज न्यायालय या किसी कार्यालय में प्रस्तुत किया जाता है, जिस पर न्यायालय शुल्क के अनुसार मुद्रांक अनिवार्य है, तो उस दस्तावेज पर तब तक कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी जब तक कि उस पर लगे मुद्रांक को विधिवत रद्द (Cancel) न कर दिया गया हो।
यह निरस्तीकरण केवल अधिकृत अधिकारी द्वारा किया जाएगा। न्यायालय या कार्यालय के प्रमुख द्वारा किसी अधिकारी को इस कार्य के लिए नियुक्त किया जा सकता है। वह अधिकारी जब ऐसा दस्तावेज प्राप्त करता है, तो उसे तत्काल उस मुद्रांक को निरस्त करना होगा।
यह निरस्तीकरण इस प्रकार किया जाएगा कि मुद्रांक पर बने आकृति-चिह्न को पंच (Punch) करके हटा दिया जाएगा, परंतु राशि की जानकारी यथावत रहेगी। पंच करके निकाले गए भाग को जलाना या अन्य किसी विधि से नष्ट करना अनिवार्य है।
उदाहरण के रूप में अगर कोई ₹100 का मुद्रांक लगा हुआ वादपत्र न्यायालय में दाखिल किया गया है, तो नियुक्त अधिकारी पंच द्वारा उसमें से आकृति-चिह्न को हटा देगा जिससे यह स्पष्ट हो जाए कि वह मुद्रांक प्रयोग में आ चुका है, लेकिन उस पर छपी ₹100 की राशि दिखाई देती रहेगी।
यह प्रावधान इसलिए आवश्यक है ताकि कोई भी व्यक्ति एक ही मुद्रांक को पुनः प्रयोग न कर सके और सरकारी राजस्व को क्षति न हो।
पूर्व धाराओं से संबंध
इन धाराओं को अधिनियम की पूर्व की धाराओं से जोड़ना भी आवश्यक है। उदाहरण स्वरूप, धारा 61, 62 और 63 न्यायालय शुल्क की वापसी (Refund) से संबंधित हैं, और यदि कोई दस्तावेज न्यायालय द्वारा अस्वीकृत किया जाता है, तो शुल्क की आंशिक या पूर्ण वापसी संभव है। वहीं, धारा 66, 67 और 68 उस स्थिति से संबंधित हैं जब दस्तावेज को विधिवत स्वीकार किया गया हो और उस पर कार्रवाई हो रही हो। इन धाराओं का उद्देश्य न्यायालय शुल्क की वसूली, त्रुटि-संशोधन और प्रमाणिकता बनाए रखना है।
धारा 66 से 68 तक के प्रावधान न्यायालय शुल्क की प्रक्रिया को व्यवस्थित, पारदर्शी और व्यावहारिक बनाते हैं। मुद्रांक द्वारा शुल्क की वसूली से लेकर, दस्तावेजों के त्रुटि सुधार पर अतिरिक्त शुल्क से राहत, और प्रयोग में आए मुद्रांक को विधिवत रद्द करने तक की प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि न्यायालयीन कार्यवाही न केवल कानून सम्मत हो, बल्कि प्रत्येक पक्षकार को न्यायिक प्रक्रिया में अनावश्यक कठिनाई का सामना न करना पड़े।
इस अध्याय में किए गए प्रावधान सामान्य जनता, वकीलों, और न्यायिक अधिकारियों के लिए अत्यंत उपयोगी हैं और इनका पालन करना न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता और प्रभावशीलता बनाए रखने के लिए आवश्यक है।