भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 57-61: जानकारी का खुलासा, लोक सेवक और कानूनी अधिकार
भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के अंतिम अध्याय, अध्याय IX (Miscellaneous) में कई महत्वपूर्ण धाराएँ शामिल हैं जो नियामक प्रक्रिया की अखंडता और कानूनी स्थिति को परिभाषित करती हैं। ये धाराएँ आयोग (Commission) और अपीलीय न्यायाधिकरण (Appellate Tribunal) की कार्यवाही में गोपनीयता, अधिकारियों की कानूनी स्थिति, उनके द्वारा किए गए कार्यों को कानूनी सुरक्षा, अधिनियम की सर्वोच्चता और दीवानी न्यायालयों (civil courts) के अधिकार क्षेत्र के बहिष्कार जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं को संबोधित करती हैं।
धारा 57: जानकारी के खुलासे पर प्रतिबंध (Restriction on Disclosure of Information)
यह धारा उन जानकारी की गोपनीयता सुनिश्चित करती है जो आयोग या अपीलीय न्यायाधिकरण को किसी भी उद्यम (enterprise) से अधिनियम के उद्देश्यों के लिए प्राप्त होती है।
• मुख्य प्रावधान:
धारा 57 के अनुसार, किसी भी उद्यम से संबंधित कोई भी जानकारी, जो आयोग या अपीलीय न्यायाधिकरण द्वारा प्राप्त की गई है, को उस उद्यम की लिखित अनुमति (previous permission in writing) के बिना प्रकट नहीं किया जाएगा। यह प्रतिबंध तब तक लागू रहता है जब तक कि जानकारी का खुलासा अधिनियम या किसी अन्य लागू कानून के अनुपालन में या उसके उद्देश्यों के लिए न किया जाए।
• इसका महत्व:
यह प्रावधान CCI की जांच प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। CCI को अक्सर संवेदनशील व्यावसायिक जानकारी, जैसे व्यापार रहस्य (trade secrets), मूल्य निर्धारण रणनीति (pricing strategies) और ग्राहक डेटा, तक पहुंच की आवश्यकता होती है। धारा 57 यह सुनिश्चित करती है कि CCI द्वारा प्राप्त की गई ऐसी जानकारी का दुरुपयोग न हो या उसे Competition के लिए संवेदनशील जानकारी के रूप में प्रकट न किया जाए, जिससे व्यवसायों के गोपनीय हितों (confidential interests) की रक्षा होती है। यह CCI की प्रक्रिया में विश्वास और गोपनीयता बनाए रखने में मदद करता है।
• उदाहरण:
एक जांच के दौरान, एक कंपनी CCI को अपने आंतरिक मूल्य निर्धारण एल्गोरिदम (pricing algorithms) का खुलासा करती है। धारा 57 के तहत, CCI इस एल्गोरिदम का उपयोग केवल जांच के उद्देश्यों के लिए कर सकता है और इसे किसी भी अन्य पक्ष या सार्वजनिक रूप से प्रकट नहीं कर सकता है, जब तक कि कंपनी लिखित अनुमति न दे।
धारा 58: लोक सेवक (Public Servants)
यह धारा CCI और अपीलीय न्यायाधिकरण के अधिकारियों को कानूनी सुरक्षा प्रदान करती है।
• मुख्य प्रावधान:
धारा 58 के अनुसार, अध्यक्ष, सदस्य, महानिदेशक, सचिव और आयोग और अपीलीय न्यायाधिकरण के अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों को इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसरण में कार्य करते समय भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की धारा 21 के अर्थ में लोक सेवक (public servants) माना जाएगा।
• इसका महत्व:
लोक सेवक के रूप में माने जाने से इन अधिकारियों को उनके कर्तव्यों का पालन करने में सुरक्षा और अधिकार प्राप्त होते हैं। यह उन्हें उनके कार्यों के लिए सरकारी संरक्षण प्रदान करता है और यह सुनिश्चित करता है कि उनके निर्देशों को कानूनी मान्यता मिले। यह CCI और अपीलीय न्यायाधिकरण के पदाधिकारियों को अपने कार्यों को बिना किसी डर या पक्षपात के करने के लिए सशक्त बनाता है।
• उदाहरण:
यदि कोई व्यक्ति CCI के महानिदेशक को अपने कर्तव्यों का पालन करने से रोकने की कोशिश करता है, तो उसे लोक सेवक के कर्तव्य के निर्वहन में बाधा डालने के लिए कानूनी रूप से दंडित किया जा सकता है।
धारा 59: सद्भाव में किए गए कार्य की सुरक्षा (Protection of Action Taken in Good Faith)
यह धारा CCI के अधिकारियों और कर्मचारियों को उनके कार्यों के लिए कानूनी मुकदमों से बचाती है।
• मुख्य प्रावधान:
धारा 59 के अनुसार, केंद्र सरकार, CCI या उसके किसी अधिकारी या कर्मचारी के खिलाफ कोई भी मुकदमा, अभियोजन या अन्य कानूनी कार्यवाही नहीं चलाई जाएगी, यदि उन्होंने इस अधिनियम या उसके नियमों या विनियमों के तहत सद्भाव में (in good faith) कोई कार्य किया है या करने का इरादा रखते हैं।
• इसका महत्व:
यह प्रावधान CCI और इसके अधिकारियों को बिना किसी व्यक्तिगत कानूनी जोखिम के अपने कर्तव्यों का पालन करने की स्वतंत्रता देता है। यह सुनिश्चित करता है कि अधिकारी अपने विवेक से स्वतंत्र और निष्पक्ष निर्णय ले सकें, भले ही वे निर्णय किसी पक्ष के खिलाफ हों।
• उदाहरण:
एक कंपनी, जिस पर CCI ने जुर्माना लगाया है, CCI के अध्यक्ष के खिलाफ दुर्भावनापूर्ण (malicious) मुकदमा दायर करती है। यदि अध्यक्ष यह साबित कर देते हैं कि उन्होंने सद्भाव में और अधिनियम के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए निर्णय लिया था, तो उन्हें धारा 59 के तहत कानूनी कार्यवाही से सुरक्षा मिलेगी।
धारा 60: अधिनियम का अधिभावी प्रभाव (Act to Have Overriding Effect)
यह धारा भारतीय Competition कानून को सर्वोच्चता प्रदान करती है।
• मुख्य प्रावधान:
धारा 60 यह स्पष्ट करती है कि इस अधिनियम के प्रावधान, किसी भी अन्य कानून में किसी भी असंगत प्रावधान के बावजूद, प्रभावी होंगे (shall have effect)।
• इसका महत्व:
यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि यदि कोई अन्य कानून Competition अधिनियम के किसी प्रावधान का खंडन करता है, तो Competition अधिनियम के प्रावधान ही प्रभावी होंगे। यह Competition अधिनियम को भारत में एक विशेष कानून (special law) के रूप में स्थापित करता है।
• उदाहरण:
यदि किसी पुराने कानून में कोई ऐसा प्रावधान है जो Competition-विरोधी व्यवहार की अनुमति देता है, तो धारा 60 यह सुनिश्चित करती है कि Competition अधिनियम के प्रावधान, जो ऐसे व्यवहार को प्रतिबंधित करते हैं, उस पुराने कानून पर प्रभावी होंगे।
धारा 61: दीवानी न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र का बहिष्कार (Exclusion of Jurisdiction of Civil Courts)
यह धारा CCI और अपीलीय न्यायाधिकरण के अधिकार क्षेत्र को दीवानी न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र से अलग करती है।
• मुख्य प्रावधान:
धारा 61 के अनुसार, किसी भी दीवानी न्यायालय को उन मामलों से संबंधित किसी भी मुकदमे या कार्यवाही पर विचार करने का अधिकार क्षेत्र नहीं होगा जिन्हें CCI या अपीलीय न्यायाधिकरण इस अधिनियम के तहत निर्धारित करने के लिए सशक्त हैं। इसके अलावा, कोई भी न्यायालय इस अधिनियम के तहत की गई या की जाने वाली किसी भी कार्रवाई के संबंध में कोई निषेधाज्ञा (injunction) जारी नहीं करेगा।
• इसका महत्व:
यह प्रावधान CCI को एक विशेष निकाय के रूप में स्थापित करता है। यह सुनिश्चित करता है कि CCI के निर्णयों और प्रक्रियाओं को दीवानी न्यायालयों में चुनौती नहीं दी जा सकती। इसके बजाय, अधिनियम के तहत स्थापित अपीलीय तंत्र (NCLAT) ही अपील का एकमात्र मार्ग है।
• उदाहरण:
एक कंपनी CCI की जांच को रोकने के लिए एक दीवानी अदालत में याचिका दायर करती है। धारा 61 के तहत, दीवानी अदालत को इस मामले पर विचार करने का अधिकार क्षेत्र नहीं होगा और उसे CCI की कार्यवाही के संबंध में कोई निषेधाज्ञा जारी करने से प्रतिबंधित किया जाएगा।
भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की ये अंतिम धाराएं CCI के कानूनी और संस्थागत ढांचे को पूरा करती हैं। धारा 57 गोपनीय जानकारी की सुरक्षा सुनिश्चित करती है, धारा 58 और 59 अधिकारियों को उनके कर्तव्यों के निर्वहन में कानूनी सुरक्षा प्रदान करती हैं, और धारा 60 और 61 अधिनियम को सर्वोच्चता और एक विशेष अधिकार क्षेत्र प्रदान करती हैं। ये प्रावधान सामूहिक रूप से CCI को एक विश्वसनीय, स्वतंत्र और शक्तिशाली नियामक निकाय बनाते हैं, जो भारतीय बाजार में Competition को प्रभावी ढंग से लागू कर सकता है।