Sales of Goods Act, 1930 की धारा 53-54 : खरीदार और विक्रेता द्वारा अंतरण के अधिकार
माल विक्रय अधिनियम (Sales of Goods Act), 1930 का अध्याय V अदत्त विक्रेता (Unpaid Seller) के अधिकारों पर केंद्रित है, विशेष रूप से जब माल के साथ अतिरिक्त लेन-देन होते हैं। धारा 53 खरीदार द्वारा माल के आगे की बिक्री (Sub-sale) या गिरवी (Pledge) के प्रभावों को स्पष्ट करती है, जबकि धारा 54 बताती है कि कैसे ग्रहणाधिकार (Lien) या पारगमन में माल को रोकने का अधिकार (Stoppage in Transit) का प्रयोग बिक्री अनुबंध को रद्द करता है या नहीं, और पुनर्बिक्री (Re-sale) के अधिकार को विस्तृत करता है।
खरीदार द्वारा उप-बिक्री या गिरवी का प्रभाव (Effect of Sub-sale or Pledge by Buyer)
धारा 53 एक महत्वपूर्ण सिद्धांत से संबंधित है कि क्या खरीदार द्वारा माल की आगे की बिक्री या गिरवी रखने से अदत्त विक्रेता के अधिकार प्रभावित होते हैं:
1. सामान्य नियम: विक्रेता के अधिकार अप्रभावित रहते हैं - धारा 53(1):
इस अधिनियम के प्रावधानों के अधीन, अदत्त विक्रेता का ग्रहणाधिकार (Lien) या पारगमन में माल को रोकने का अधिकार (Stoppage in Transit) खरीदार द्वारा की गई माल की किसी भी बिक्री या अन्य निपटान (Other Disposition) से प्रभावित नहीं होता है (Is Not Affected), जब तक कि विक्रेता ने उस पर सहमति न दी हो (Unless the Seller Has Assented Thereto)।
यह सिद्धांत 'निमो डेट क्वाड नॉन हैबेट' (Nemo Dat Quod Non Habet - कोई भी व्यक्ति वह नहीं दे सकता जो उसके पास नहीं है) के विस्तार के रूप में कार्य करता है। यदि खरीदार ने माल के लिए भुगतान नहीं किया है, तो विक्रेता के पास अभी भी उस पर अधिकार हैं, और खरीदार उन अधिकारों को किसी तीसरे पक्ष को तब तक हस्तांतरित नहीं कर सकता जब तक कि विक्रेता सहमत न हो।
उदाहरण: रमेश ने सुरेश को 100 किलोग्राम चावल बेचे, लेकिन भुगतान नहीं हुआ और चावल अभी भी रमेश के गोदाम में हैं (ग्रहणाधिकार)। सुरेश उन चावलों को पवन को बेच देता है। रमेश का सुरेश पर ग्रहणाधिकार का अधिकार पवन को बिक्री से प्रभावित नहीं होगा, और रमेश अभी भी भुगतान मिलने तक चावल को रोके रख सकता है।
2. शीर्षक के दस्तावेज़ (Document of Title) के हस्तांतरण का अपवाद - धारा 53(1) का परंतुक (Proviso):
हालाँकि, एक महत्वपूर्ण परंतुक है: जहाँ माल के शीर्षक का एक दस्तावेज़ (Document of Title to Goods) (जैसे बिल ऑफ लेडिंग या वेयरहाउस रसीद) किसी व्यक्ति को खरीदार या माल के मालिक के रूप में जारी या वैध रूप से हस्तांतरित (Issued or Lawfully Transferred) किया गया है, और वह व्यक्ति उस दस्तावेज़ को किसी ऐसे व्यक्ति को हस्तांतरित करता है जो दस्तावेज़ को अच्छे विश्वास में (Good Faith) और प्रतिफल (Consideration) के लिए लेता है, तो:
• यदि ऐसा अंतिम उल्लिखित हस्तांतरण बिक्री के माध्यम से (By Way of a Sale) था, तो अदत्त विक्रेता का ग्रहणाधिकार या पारगमन में माल को रोकने का अधिकार निष्प्रभावी हो जाता है (Is Defeated)। (यानी, तीसरा पक्ष एक अच्छा शीर्षक प्राप्त कर लेता है और अदत्त विक्रेता अब माल का दावा नहीं कर सकता है)।
• और, यदि ऐसा अंतिम उल्लिखित हस्तांतरण गिरवी या मूल्य के लिए अन्य निपटान के माध्यम से (By Way of Pledge or Other Disposition for Value) था, तो अदत्त विक्रेता का ग्रहणाधिकार या पारगमन में माल को रोकने का अधिकार केवल हस्तांतरिती (Transferee) के अधिकारों के अधीन ही प्रयोग किया जा सकता है (Can Only Be Exercised Subject to the Rights of the Transferee)। (यानी, विक्रेता को गिरवी रखने वाले के अधिकारों का सम्मान करना होगा और केवल तभी माल को रोक सकता है जब गिरवी रखने वाले का दावा संतुष्ट हो जाए)।
यह परंतुक वाणिज्यिक दुनिया में शीर्षक के दस्तावेजों के महत्व को पहचानता है। वे माल के स्वामित्व के प्रमाण के रूप में कार्य करते हैं, और उन्हें अच्छे विश्वास में स्वीकार करने वाले तीसरे पक्ष को सुरक्षित रखना महत्वपूर्ण है।
उदाहरण: एक विक्रेता ने एक खरीदार को माल भेजा और उसे बिल ऑफ लेडिंग दिया। खरीदार ने अभी तक भुगतान नहीं किया है, लेकिन वह दिवालिया होने से पहले उस बिल ऑफ लेडिंग को किसी तीसरे पक्ष को बेच देता है जो अच्छे विश्वास में और मूल्य के लिए खरीदता है। विक्रेता अब पारगमन में माल को रोकने का अधिकार खो देगा क्योंकि तीसरा पक्ष अब वैध मालिक है। यदि खरीदार ने बिल ऑफ लेडिंग को गिरवी रखा होता, तो विक्रेता माल को रोक सकता था लेकिन उसे पहले गिरवी रखने वाले के दावे का सम्मान करना होता।
कुक बनाम विलियम्स (Cooke v. Williams) (1853) 13 CB 91 (एक प्रासंगिक अंग्रेजी मामला): यह मामला दर्शाता है कि कैसे शीर्षक के दस्तावेज़ का हस्तांतरण अदत्त विक्रेता के अधिकारों को हरा सकता है, खासकर जब तीसरा पक्ष अच्छे विश्वास में और मूल्य के लिए कार्य करता है।
2. गिरवी रखने वाले से मांग का अधिकार - धारा 53(2):
जहाँ हस्तांतरण गिरवी के माध्यम से (By Way of Pledge) होता है, तो अदत्त विक्रेता गिरवी रखने वाले से यह अपेक्षा कर सकता है कि वह गिरवी द्वारा सुरक्षित राशि को, पहले, खरीदार के पास गिरवी रखने वाले के हाथ में मौजूद किसी भी अन्य माल या प्रतिभूतियों (Securities) में से, जहाँ तक संभव हो, संतुष्ट करे।
यह प्रावधान अदत्त विक्रेता को राहत प्रदान करने की कोशिश करता है। यदि गिरवी रखने वाले के पास खरीदार की अन्य संपत्तियां हैं जो गिरवी के लिए सुरक्षा के रूप में कार्य कर सकती हैं, तो विक्रेता गिरवी रखने वाले से पहले उन अन्य संपत्तियों से खुद को संतुष्ट करने के लिए कह सकता है, ताकि विक्रेता के माल को मुक्त किया जा सके।
ग्रहणाधिकार या पारगमन में माल को रोकने से बिक्री आमतौर पर रद्द नहीं होती (Sale Not Generally Rescinded by Lien or Stoppage in Transit)
धारा 54 स्पष्ट करती है कि अदत्त विक्रेता द्वारा ग्रहणाधिकार या पारगमन में माल को रोकने के अधिकार का प्रयोग अनुबंध को स्वचालित रूप से रद्द नहीं करता है, और पुनर्बिक्री के अधिकार को नियंत्रित करता है:
1. अनुबंध रद्द नहीं होता - धारा 54(1):
इस धारा के प्रावधानों के अधीन, बिक्री का अनुबंध अदत्त विक्रेता द्वारा उसके ग्रहणाधिकार या पारगमन में माल को रोकने के अधिकार के मात्र प्रयोग से रद्द नहीं होता है (Is Not Rescinded by the Mere Exercise by an Unpaid Seller of His Right of Lien or Stoppage in Transit)।
यह महत्वपूर्ण है। ग्रहणाधिकार या रोकने का अधिकार केवल विक्रेता को माल को अपने पास रखने या पुनः प्राप्त करने की अनुमति देता है, लेकिन यह अनुबंध को समाप्त नहीं करता है। अनुबंध अभी भी वैध रहता है, और खरीदार अभी भी भुगतान करके माल का कब्ज़ा प्राप्त कर सकता है।
2. पुनर्बिक्री का अधिकार और परिणाम - धारा 54(2):
जहाँ माल खराब होने वाली प्रकृति (Perishable Nature) का है, या जहाँ अदत्त विक्रेता जिसने अपने ग्रहणाधिकार या पारगमन में माल को रोकने के अधिकार का प्रयोग किया है, खरीदार को पुनर्बिक्री के अपने इरादे की सूचना (Notice of His Intention to Re-sell) देता है, यदि खरीदार उचित समय के भीतर कीमत का भुगतान या निविदा नहीं करता है, तो अदत्त विक्रेता उचित समय के भीतर माल को पुनर्बेच सकता है (Re-sell the Goods) और उसके अनुबंध के उल्लंघन के कारण हुए किसी भी नुकसान के लिए मूल खरीदार से क्षतिपूर्ति वसूल कर सकता है (Recover from the Original Buyer Damages for Any Loss Occasioned by His Breach of Contract), लेकिन खरीदार को पुनर्बिक्री पर होने वाले किसी भी लाभ का हकदार नहीं होगा (Shall Not Be Entitled to Any Profit Which May Occur on the Re-sale)। यदि ऐसी सूचना नहीं दी जाती है, तो अदत्त विक्रेता ऐसी क्षतिपूर्ति वसूल करने का हकदार नहीं होगा और खरीदार पुनर्बिक्री पर होने वाले लाभ (यदि कोई हो) का हकदार होगा।
यह धारा पुनर्बिक्री के अधिकार को प्रदान करती है, लेकिन कुछ शर्तों के साथ:
• तत्काल पुनर्बिक्री: खराब होने वाले माल के मामले में, विक्रेता को तुरंत पुनर्बिक्री का अधिकार होता है।
• सूचना आवश्यक: अन्य मामलों में, विक्रेता को खरीदार को यह सूचित करना होगा कि वह पुनर्बिक्री का इरादा रखता है यदि भुगतान नहीं किया जाता है।
• नुकसान की वसूली: यदि नोटिस दिया जाता है और पुनर्बिक्री में नुकसान होता है, तो विक्रेता मूल खरीदार से उस नुकसान की वसूली कर सकता है।
• लाभ का कोई अधिकार नहीं: यदि पुनर्बिक्री पर लाभ होता है, तो वह लाभ विक्रेता का होता है, खरीदार का नहीं।
• नोटिस न देने का परिणाम: यदि विक्रेता नोटिस नहीं देता है और पुनर्बिक्री में नुकसान होता है, तो वह मूल खरीदार से नुकसान की वसूली नहीं कर सकता है, और यदि लाभ होता है, तो वह लाभ खरीदार का होगा।
उदाहरण: एक फल विक्रेता ने 100 किलोग्राम आम बेचे, लेकिन खरीदार ने भुगतान नहीं किया। आम खराब होने वाले हैं, इसलिए विक्रेता तुरंत उन्हें फिर से बेच सकता है। यदि उसने ₹500 का नुकसान उठाया, तो वह मूल खरीदार से ₹500 वसूल कर सकता है, लेकिन यदि उसे ₹200 का लाभ होता है, तो वह लाभ उसका होगा। यदि आम खराब होने वाले नहीं थे और विक्रेता ने पुनर्बिक्री से पहले खरीदार को सूचना नहीं दी और उसे नुकसान हुआ, तो वह नुकसान की वसूली नहीं कर सकता।
3. पुनर्बिक्री पर अच्छा शीर्षक - धारा 54(3):
जहाँ एक अदत्त विक्रेता जिसने अपने ग्रहणाधिकार या पारगमन में माल को रोकने के अधिकार का प्रयोग किया है, माल को पुनर्बेचता है, तो खरीदार मूल खरीदार के खिलाफ उस पर एक अच्छा शीर्षक (Good Title Thereto as Against the Original Buyer) प्राप्त करता है, इस तथ्य के बावजूद कि मूल खरीदार को पुनर्बिक्री की कोई सूचना नहीं दी गई है।
यह प्रावधान पुनर्बिक्री से खरीदने वाले नए खरीदार की सुरक्षा करता है। उसे एक वैध शीर्षक प्राप्त होता है, भले ही मूल खरीदार को यह सूचित न किया गया हो कि माल को फिर से बेचा जा रहा है। यह वाणिज्यिक सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
4. विशेष पुनर्बिक्री का अधिकार - धारा 54(4):
जहाँ विक्रेता स्पष्ट रूप से यह पुनर्बिक्री का अधिकार आरक्षित करता है (Expressly Reserves a Right of Re-sale) यदि खरीदार चूक (Default) करता है, और खरीदार के चूक करने पर, माल को पुनर्बेचता है, तो बिक्री का मूल अनुबंध इस प्रकार रद्द हो जाता है (Is Thereby Rescinded), लेकिन विक्रेता को हुए किसी भी नुकसान के दावे पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है।
यह एक विशेष प्रकार की पुनर्बिक्री है जो अनुबंध में ही आरक्षित होती है। इस मामले में, पुनर्बिक्री स्वयं मूल अनुबंध को रद्द कर देती है (ग्रहणाधिकार या रोकने के सामान्य अभ्यास के विपरीत, जो अनुबंध को रद्द नहीं करते हैं)। हालाँकि, विक्रेता अभी भी मूल खरीदार से किसी भी नुकसान के लिए दावा कर सकता है।
उदाहरण: एक अनुबंध में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यदि खरीदार एक निश्चित तारीख तक भुगतान नहीं करता है, तो विक्रेता को माल को फिर से बेचने का अधिकार होगा, और ऐसा करने पर मूल अनुबंध समाप्त हो जाएगा। यदि खरीदार चूक करता है और विक्रेता फिर से बेचता है, तो मूल अनुबंध रद्द हो जाता है, लेकिन यदि विक्रेता को नुकसान होता है, तो वह अभी भी खरीदार से उसकी वसूली कर सकता है।
ये धाराएँ अदत्त विक्रेता के लिए एक मजबूत कानूनी ढाँचा प्रदान करती हैं, जिससे उसे भुगतान न मिलने की स्थिति में अपनी सुरक्षा करने में मदद मिलती है, जबकि साथ ही वाणिज्यिक लेनदेन में तीसरे पक्ष के हितों की भी रक्षा होती है।