जल अधिनियम 1974 की धारा 5 से 8 में बोर्ड सदस्यों की नियुक्ति, अयोग्यता, पदत्याग और बैठकों की प्रक्रिया
भारत में प्रदूषण नियंत्रण के लिए बनाए गए सबसे महत्वपूर्ण कानूनों में से एक है जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 (Water (Prevention and Control of Pollution) Act, 1974)। इस कानून का मुख्य उद्देश्य है कि हमारे देश की नदियाँ, तालाब, झीलें और भूमिगत जल (Ground Water) प्रदूषण से सुरक्षित रहें और लोगों को शुद्ध व सुरक्षित जल (Clean Water) उपलब्ध हो सके।
इस अधिनियम का अध्याय II (Chapter II) "केंद्रीय एवं राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों (Central and State Pollution Control Boards)" की स्थापना और उनके कार्यों से संबंधित है। पहले की धाराएँ 3 और 4 में इन बोर्डों की स्थापना और संरचना का उल्लेख है। लेकिन उसके बाद की धाराएँ 5 से 8 बोर्डों के कामकाज, सदस्यों की योग्यता-अयोग्यता और बैठकों से संबंधित बारीकियों पर प्रकाश डालती हैं।
इन धाराओं की समझ बहुत ज़रूरी है क्योंकि ये सुनिश्चित करती हैं कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड केवल नाम के लिए ही नहीं बल्कि वास्तविक रूप से प्रभावी ढंग से काम करें। अब हम एक-एक धारा को विस्तार से देखेंगे।
धारा 5 – सेवा की शर्तें और वेतनमान (Terms of Service and Conditions of Members)
धारा 5 का संबंध बोर्ड के अध्यक्ष (Chairman), सदस्यों (Members) और अन्य पदाधिकारियों की सेवा शर्तों (Service Conditions) से है। जब किसी व्यक्ति को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board – CPCB) या राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (State Pollution Control Board – SPCB) में नियुक्त किया जाता है, तो यह ज़रूरी है कि उसकी सेवा का तरीका, वेतनमान (Salary Structure), भत्ते (Allowances) और सुविधाएँ (Facilities) स्पष्ट रूप से तय हों।
यह धारा कहती है कि केंद्र सरकार (Central Government) और राज्य सरकार (State Government) अपने-अपने बोर्डों के सदस्यों के वेतन और सेवा शर्तें तय करने के लिए अधिकृत (Authorized) हैं। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति विशेषज्ञ (Expert) है और उसे बोर्ड का सदस्य बनाया गया है, तो उसके काम का सम्मान करते हुए उसे उचित वेतन और सुविधाएँ दी जानी चाहिए ताकि वह बिना किसी दबाव और स्वार्थ के अपनी भूमिका निभा सके।
इस धारा का व्यावहारिक महत्व यह है कि यदि सेवा शर्तें और सुविधाएँ स्पष्ट न हों तो सदस्य अपने काम के प्रति गंभीर नहीं रहेंगे, या वे अपने निजी हितों (Personal Interests) को प्राथमिकता दे सकते हैं। इसलिए पारदर्शिता (Transparency) और निष्पक्षता (Impartiality) सुनिश्चित करने के लिए सरकारें इन शर्तों को अधिसूचना (Notification) के ज़रिए स्पष्ट करती हैं।
उदाहरण के लिए, दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (DPCC) या राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (RSPCB) के सदस्यों को जो मानदेय (Honorarium) या भत्ते दिए जाते हैं, वे इसी धारा के आधार पर तय किए जाते हैं। इस प्रकार धारा 5 बोर्ड की प्रशासनिक नींव (Administrative Foundation) को मज़बूत बनाती है।
धारा 6 – पदमुक्ति के कारण (Disqualifications of Members)
धारा 6 यह बताती है कि किन परिस्थितियों में कोई व्यक्ति बोर्ड का सदस्य बनने के योग्य नहीं है, या यदि पहले से सदस्य है तो उसका पद रिक्त (Vacant) माना जाएगा।
यहाँ कुछ महत्वपूर्ण आधार दिए गए हैं। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति दिवालिया (Insolvent) हो गया है और उसकी वित्तीय स्थिति कमजोर है, तो वह बोर्ड का सदस्य नहीं हो सकता। इसका कारण यह है कि दिवालिया व्यक्ति पर आर्थिक दबाव रहता है और उससे निष्पक्ष (Impartial) और स्वतंत्र (Independent) निर्णय लेने की उम्मीद नहीं की जा सकती।
इसी तरह, यदि किसी व्यक्ति को नैतिक अधमता (Moral Turpitude) से जुड़े अपराध (Offence) में दोषी (Convicted) पाया गया है, तो वह बोर्ड का सदस्य नहीं हो सकता। यह इसलिए ज़रूरी है क्योंकि प्रदूषण नियंत्रण एक ऐसा काम है जिसमें ईमानदारी और विश्वसनीयता (Integrity and Trustworthiness) बहुत मायने रखते हैं। यदि सदस्य पर ही आपराधिक आरोप हैं, तो उसकी साख (Credibility) गिर जाएगी और जनता को बोर्ड की कार्यवाही पर भरोसा नहीं होगा।
धारा 6 का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यदि कोई सदस्य मानसिक या शारीरिक दृष्टि से अक्षम (Incapacitated) हो जाता है, तो भी वह पद पर नहीं रह सकता। बोर्ड के कामों के लिए नियमित बैठकें, निरीक्षण और निर्णय लेने की आवश्यकता होती है, और ऐसे में किसी अक्षम व्यक्ति की उपस्थिति बोर्ड के कामकाज को प्रभावित कर सकती है।
यह धारा हमें यह सिखाती है कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड केवल तकनीकी या प्रशासनिक संस्था नहीं है, बल्कि नैतिक और कानूनी दृष्टि से भी बहुत संवेदनशील संस्था है। इसलिए यहाँ काम करने वाले लोगों का चरित्र और योग्यता बिल्कुल साफ-सुथरी होनी चाहिए।
धारा 7 – पद रिक्त होना (Vacation of Seats)
धारा 7 यह स्पष्ट करती है कि किन परिस्थितियों में किसी सदस्य का पद रिक्त (Vacant) हो जाएगा। यह स्थिति तब उत्पन्न हो सकती है जब सदस्य स्वयं इस्तीफ़ा (Resignation) दे देता है, या सरकार उसे उसके पद से हटा देती है।
उदाहरण के लिए, यदि कोई सदस्य लगातार तीन बैठकों में बिना उचित कारण अनुपस्थित रहता है, तो उसका पद रिक्त घोषित किया जा सकता है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि केवल सक्रिय (Active) और जिम्मेदार (Responsible) लोग ही बोर्ड का हिस्सा बने रहें।
इसके अलावा, यदि कोई सदस्य धारा 6 में दी गई अयोग्यताओं (Disqualifications) में आता है, तो भी उसका पद खाली हो जाएगा। जैसे मान लीजिए, कोई सदस्य बोर्ड का हिस्सा है और उसके खिलाफ बाद में कोई आपराधिक मामला साबित हो जाता है। ऐसे में उसे अपने पद से हटना पड़ेगा।
धारा 7 का महत्व इस तथ्य में है कि यह बोर्ड की कार्यक्षमता (Functioning) और अनुशासन (Discipline) को बनाए रखती है। यदि कोई व्यक्ति सक्रिय रूप से योगदान नहीं कर पा रहा, तो उसकी जगह नए योग्य व्यक्ति को मौका मिलना चाहिए।
भारत में कई बार यह देखा गया है कि बोर्डों और समितियों (Committees) में नाम तो बहुत से लोग होते हैं लेकिन बैठकों में भाग लेने वाले लोग बहुत कम होते हैं। धारा 7 इस प्रकार की निष्क्रियता (Inactivity) को रोकने का एक साधन है।
धारा 8 – बैठकों का आयोजन और प्रक्रिया (Meetings of the Board)
धारा 8 बोर्ड की बैठकों (Meetings) से संबंधित है। यह धारा बताती है कि बोर्ड अपनी बैठकें कब, कहाँ और किस प्रक्रिया से आयोजित करेगा।
आमतौर पर, बोर्ड की बैठकें नियमित अंतराल (Regular Intervals) पर आयोजित होती हैं ताकि जल प्रदूषण नियंत्रण से संबंधित निर्णय समय पर लिए जा सकें। इस धारा के अंतर्गत अध्यक्ष (Chairman) को यह अधिकार है कि वह बैठक बुलाए और उसकी अध्यक्षता करे।
धारा 8 का एक और पहलू यह है कि निर्णय लेने की प्रक्रिया (Decision-making Process) कैसे होगी। सामान्यतः निर्णय बहुमत (Majority) से लिए जाते हैं और यदि बराबरी की स्थिति (Tie) हो जाए तो अध्यक्ष का मत (Casting Vote) निर्णायक होता है।
यह धारा यह भी सुनिश्चित करती है कि बैठक की कार्यवाही (Proceedings) लिखित रूप में रखी जाए ताकि भविष्य में पारदर्शिता (Transparency) बनी रहे। उदाहरण के लिए, यदि किसी उद्योग (Industry) को प्रदूषण फैलाने के कारण नोटिस भेजना है, तो यह निर्णय बोर्ड की बैठक में लिया जाएगा और उसका रिकॉर्ड तैयार किया जाएगा।
व्यावहारिक रूप से देखें तो राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों की बैठकों में उद्योगों से जुड़े बड़े फैसले लिए जाते हैं। जैसे किसी कारखाने को नदी में अपशिष्ट (Waste) डालने की अनुमति दी जाए या न दी जाए, या किसी शहर के सीवेज (Sewage) ट्रीटमेंट प्लांट की निगरानी कैसे की जाए। इसलिए बैठकों की प्रक्रिया का साफ और कानूनी होना बहुत ज़रूरी है।
धाराएँ 5 से 8 हमें यह समझाती हैं कि जल अधिनियम केवल एक तकनीकी या पर्यावरणीय कानून नहीं है, बल्कि यह एक प्रशासनिक ढांचा (Administrative Framework) भी है। इसमें यह सुनिश्चित किया गया है कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्यों की सेवा शर्तें स्पष्ट हों, उनका चरित्र निष्कलंक (Unblemished Character) हो, वे सक्रिय रूप से काम करें और बैठकों की प्रक्रिया पारदर्शी और प्रभावी रहे।
इन धाराओं के बिना बोर्डों का अस्तित्व तो रहेगा, लेकिन उनका कामकाज प्रभावी नहीं होगा। इसलिए इन्हें जल अधिनियम का मेरुदंड (Backbone) कहा जा सकता है।
आज जब भारत जलवायु परिवर्तन (Climate Change) और जल प्रदूषण की गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है, तो यह और भी आवश्यक हो जाता है कि हमारे प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सक्षम (Capable), ईमानदार (Honest) और सक्रिय (Active) बने रहें। धारा 5 से 8 इसी लक्ष्य की पूर्ति करती हैं और अधिनियम की प्रासंगिकता (Relevance) को और मज़बूत बनाती हैं।