भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 45-47: जानकारी और कार्टेल से संबंधित अपराधों के लिए दंड
भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम (Indian Competition Act) की दंड व्यवस्था (penalty system) केवल Competition-विरोधी व्यवहारों तक ही सीमित नहीं है। यह उन प्रक्रियाओं को भी लक्षित करती है जो जांच और प्रवर्तन (enforcement) की अखंडता को कमजोर कर सकती हैं।
धारा 45 बेईमानी और धोखे को दंडित करती है, जबकि धारा 46 एक अनूठा और शक्तिशाली तंत्र प्रदान करती है जिसे "कम दंड का प्रावधान" (Lesser Penalty Provision) कहा जाता है। अंत में, धारा 47 यह निर्धारित करती है कि जुर्माने का पैसा कहाँ जाता है, जिससे वित्तीय पारदर्शिता (financial transparency) सुनिश्चित होती है। ये धाराएँ मिलकर CCI की नियामक शक्तियों को मजबूत करती हैं।
धारा 45: जानकारी देने से संबंधित अपराधों के लिए दंड (Penalty for Offences related to Furnishing of Information)
यह धारा, धारा 44 के संयोजन (combination) से संबंधित विशिष्ट प्रावधानों के अलावा, जानकारी देने के संबंध में किसी भी व्यक्ति द्वारा की गई बेईमानी को दंडित करती है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि CCI को अपनी जांच के दौरान जो भी जानकारी मिलती है, वह सच्ची और पूर्ण हो।
• किस पर दंड लगाया जाता है?
यदि कोई व्यक्ति जो इस अधिनियम के तहत कोई विवरण, दस्तावेज या कोई जानकारी देता है या देने के लिए बाध्य है, वह निम्नलिखित में से कोई भी कार्य करता है:
o कोई ऐसा बयान देता है या कोई ऐसा दस्तावेज प्रस्तुत करता है जिसे वह जानता है या मानने का कारण है कि वह किसी महत्वपूर्ण विवरण (material particular) में झूठा है।
o किसी महत्वपूर्ण तथ्य (material fact) को जानबूझकर छिपाता है, जिसे वह जानता है कि वह महत्वपूर्ण है।
o किसी आवश्यक दस्तावेज को जानबूझकर बदलता है, दबाता है या नष्ट करता है।
• दंड:
ऐसे व्यक्ति को एक करोड़ रुपये (₹1 crore) तक के जुर्माने से दंडित किया जाएगा, जिसे CCI निर्धारित करेगा।
• उदाहरण:
o संदर्भ: CCI एक कंपनी के खिलाफ धारा 26 के तहत एक जांच शुरू करता है, यह संदेह करते हुए कि वह Competition-विरोधी व्यवहार में लिप्त है। जांच के दौरान, CCI कंपनी से अपने प्रतिस्पर्धियों के साथ हुई बातचीत के सभी रिकॉर्ड प्रस्तुत करने के लिए कहता है। कंपनी का एक अधिकारी जानबूझकर उन ईमेल को हटा देता है जिनमें Competition-विरोधी समझौते का उल्लेख है। यह धारा 45(1)(c) का स्पष्ट उल्लंघन है। इस अधिनियम के तहत, उस अधिकारी पर ₹1 करोड़ तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
o यह धारा धारा 43 को पूरक करती है, जो केवल निर्देशों का पालन न करने पर दंड लगाती है, जबकि धारा 45 जानबूझकर गलत जानकारी देने या सबूत छिपाने पर दंड लगाती है, भले ही निर्देशों का सतही तौर पर पालन किया गया हो।
धारा 46: कम दंड लगाने की शक्ति (Power to Impose Lesser Penalty)
यह धारा CCI को एक शक्तिशाली हथियार प्रदान करती है जिसे अक्सर क्षमता नीति (leniency policy) कहा जाता है। कार्टेल (cartels) गुप्त समझौते होते हैं, और उनके अपराधों को साबित करना बेहद मुश्किल होता है। यह धारा कार्टेल के सदस्यों को खुद आगे आकर पूरी जानकारी देने के लिए प्रोत्साहित करती है, जिससे उन्हें कम दंड मिले।
• किसे कम दंड मिल सकता है?
कोई भी उत्पादक, विक्रेता, वितरक, व्यापारी या सेवा प्रदाता जो किसी कार्टेल का हिस्सा है, यदि वह CCI को अपने उल्लंघन के बारे में पूरी और सच्ची जानकारी (full and true disclosure) देता है और यह जानकारी महत्वपूर्ण (vital) होती है।
• शर्तें और प्रक्रिया (Conditions and Procedure):
o जांच से पहले (Before Investigation): CCI कम दंड तभी लगा सकता है जब धारा 26 के तहत जांच रिपोर्ट प्राप्त होने से पहले ही खुलासा कर दिया गया हो। यह कार्टेल के सदस्यों के बीच सबसे पहले CCI के पास पहुंचने की होड़ पैदा करता है।
o सहयोग जारी रखना (Continued Cooperation): कम दंड केवल तभी दिया जाएगा जब वह व्यक्ति CCI के साथ कार्यवाही पूरी होने तक सहयोग करना जारी रखे।
o दंड को वापस लेना (Revocation of Lesser Penalty): यदि CCI संतुष्ट है कि कम दंड प्राप्त करने वाले व्यक्ति ने:
शर्त का पालन नहीं किया,
झूठे सबूत दिए, या
जो खुलासा किया वह महत्वपूर्ण नहीं था,
तो CCI कम दंड को रद्द कर सकता है। ऐसे में उस व्यक्ति पर फिर से मुकदमा चलाया जा सकता है और उसे उतना ही दंड भुगतना पड़ेगा जितना उसे कम दंड न मिलने पर भुगतना पड़ता।
• उदाहरण:
o संदर्भ: CCI को एक बाजार में प्राइस-फिक्सिंग (price-fixing) कार्टेल के बारे में गुमनाम सूचना मिलती है। CCI महानिदेशक को जांच का निर्देश देता है। कार्टेल के चार सदस्यों में से एक, कंपनी A, डर से CCI से संपर्क करती है और कार्टेल के सभी सदस्यों, बैठकों और समझौतों के बारे में पूरी जानकारी (ईमेल और रिकॉर्ड सहित) देती है। CCI को लगता है कि यह जानकारी निर्णायक (decisive) है। CCI, धारा 46 के तहत, कंपनी A को 100% की बजाय 20% दंड का प्रस्ताव देता है। वहीं, अन्य तीन कंपनियों को पूरे दंड का सामना करना पड़ेगा। इस तरह, CCI को कार्टेल को तोड़ने के लिए आवश्यक जानकारी मिल जाती है।
धारा 47: जुर्माने की रकम का भारत के समेकित कोष में जमा होना (Crediting Penalties to the Consolidated Fund of India)
यह एक सरल लेकिन महत्वपूर्ण धारा है जो वित्तीय पारदर्शिता सुनिश्चित करती है।
• प्रावधान:
इस अधिनियम के तहत दंड के रूप में वसूल की गई सभी राशि को भारत के समेकित कोष (Consolidated Fund of India) में जमा किया जाएगा।
• इसका महत्व:
यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि CCI द्वारा एकत्र किए गए दंड का उपयोग सरकारी खातों के माध्यम से ही हो और उसका दुरुपयोग न हो। यह CCI को एक निष्पक्ष और जवाबदेह नियामक निकाय के रूप में स्थापित करता है।
भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की ये तीनों धाराएँ मिलकर एक मजबूत और प्रभावी प्रवर्तन ढाँचा बनाती हैं। धारा 45 जांच की प्रक्रिया को मजबूत करती है, यह सुनिश्चित करते हुए कि जानकारी देने में कोई बेईमानी नहीं हो। धारा 46, अपनी क्षमा नीति (leniency policy) के माध्यम से, सबसे गुप्त प्रतिस्पर्धा-विरोधी अपराधों को भी उजागर करने का एक शक्तिशाली साधन प्रदान करती है।
अंत में, धारा 47 यह सुनिश्चित करती है कि सभी दंडों को सरकारी खजाने में जमा किया जाए, जिससे कानूनी और वित्तीय अखंडता बनी रहे। ये सभी प्रावधान CCI को एक शक्तिशाली और विश्वसनीय नियामक संस्था बनाते हैं जो भारतीय बाजार की Competition की रक्षा करने के अपने मिशन को प्रभावी ढंग से पूरा कर सकती है।