धारा 434 और 435, BNSS, 2023 : अपीलीय न्यायालय के अंतिम निर्णय और अपील करने वाले की मृत्यु पर अपील का अंत

आपराधिक न्याय व्यवस्था (Criminal Justice System) में अपील (Appeal) का अधिकार एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। जब किसी पक्ष को लगता है कि ट्रायल कोर्ट (Trial Court) में कोई गलती हुई है, तो वह उच्च न्यायालय (Higher Court) से फैसले की समीक्षा (Review) की मांग कर सकता है। लेकिन यह अधिकार भी अनंत नहीं होता। एक समय आता है जब अपीलीय न्यायालय (Appellate Court) का निर्णय अंतिम और बाध्यकारी (Final and Binding) माना जाता है। धारा 434 इसी "Finality" से जुड़ा हुआ है।
वहीं दूसरी ओर, धारा 435 एक विशेष परिस्थिति से संबंधित है, जब अपील करने वाला या आरोपी (Accused) व्यक्ति अपील के लंबित (Pending) होने के दौरान मृत्यु को प्राप्त हो जाए। ऐसे मामलों में अपील की स्थिति क्या होती है, यही धारा 435 में बताया गया है।
धारा 434 – अपीलीय न्यायालय के निर्णय अंतिम होंगे (Judgments of Appellate Court shall be Final)
धारा 434 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जब अपीलीय न्यायालय किसी अपील पर फैसला सुना देता है, तो वह निर्णय अंतिम (Final) होता है। इसका अर्थ है कि उस निर्णय के खिलाफ और कोई अपील नहीं की जा सकती। लेकिन कुछ अपवाद (Exceptions) हैं जहाँ यह अंतिमता लागू नहीं होती।
इस सेक्शन में चार विशेष अपवादों का उल्लेख किया गया है:
पहला, धारा 418 को अपवाद बनाया गया है। यह धारा राज्य या शिकायतकर्ता (Complainant) को सज़ा बढ़ाने (Enhancement of Sentence) के लिए अपील करने की अनुमति देती है।
दूसरा, धारा 419, जिसमें आरोपी के बरी होने (Acquittal) के खिलाफ अपील की जाती है, उसे भी अंतिमता से बाहर रखा गया है।
तीसरा, धारा 425 के Sub-धारा (4) का उल्लेख किया गया है, जिसमें अपीलीय न्यायालय के विशेष अधिकारों की बात की गई है। यदि इस सेक्शन के अंतर्गत कोई निर्णय लिया गया है, तो उसपर अंतिमता लागू नहीं होती।
चौथा, Chapter XXXII का उल्लेख है, जिसमें Supreme Court को विशेष अनुमति याचिका (Special Leave Petition – SLP) के माध्यम से अपील सुनने का अधिकार है। यदि Supreme Court अपील सुनना चाहे, तो वह अपीलीय न्यायालय के अंतिम निर्णय को भी पलट सकती है।
धारा 434 का Proviso – एक ही केस से जुड़ी अन्य अपीलें (Appeals Arising Out of the Same Case)
धारा 434 में जो प्रावधान (Proviso) जोड़ा गया है, वह यह कहता है कि भले ही किसी केस में दोष सिद्ध (Conviction) के खिलाफ अपील का अंतिम निपटारा हो गया हो, फिर भी न्यायालय दो प्रकार की अन्य अपीलों को सुन सकता है:
(a) धारा 419 के अंतर्गत यदि किसी अन्य आरोपी को बरी किया गया है, तो उसके खिलाफ अपील की जा सकती है, भले ही दोषसिद्धि की अपील पहले ही निपटा दी गई हो।
(b) धारा 418 के अंतर्गत अगर दोष सिद्ध व्यक्ति को मिली सज़ा बहुत हल्की हो, तो राज्य उस सज़ा को बढ़ाने के लिए अलग अपील कर सकता है।
उदाहरण (Illustration)
मान लीजिए कि A, B और C पर हत्या का मुकदमा चलता है। A और B को दोषी ठहराया जाता है जबकि C को बरी कर दिया जाता है। A और B दोष सिद्धि के खिलाफ अपील करते हैं, और वह अपील निपट जाती है। लेकिन राज्य सरकार धारा 419 के अंतर्गत C की बरी होने के खिलाफ अलग अपील कर सकती है।
इसी तरह, अगर A और B की सज़ा बहुत हल्की है, तो राज्य सरकार धारा 418 के अंतर्गत उनकी सज़ा बढ़ाने के लिए एक अलग अपील कर सकती है, और इसे धारा 434 के Proviso के तहत स्वीकार किया जाएगा।
धारा 435 – अपील करने वाले की मृत्यु पर अपील का अंत (Abatement of Appeal on Death of Accused or Appellant)
धारा 435 इस विषय को संबोधित करता है कि यदि अपील के दौरान अपीलकर्ता (Appellant) या आरोपी (Accused) की मृत्यु हो जाए, तो उस अपील की क्या स्थिति होगी।
Sub-धारा (1) – दोषमुक्ति और सज़ा बढ़ाने की अपीलों का अंत (Abatement of Appeals under धारा 418 and 419)
यदि धारा 418 (सज़ा बढ़ाने के लिए अपील) या धारा 419 (दोषमुक्ति के खिलाफ अपील) के अंतर्गत अपील लंबित हो और आरोपी की मृत्यु हो जाए, तो ऐसी अपील अंतिम रूप से समाप्त (Finally Abate) मानी जाएगी। इसका अर्थ है कि अब वह अपील आगे नहीं चलाई जा सकती।
उदाहरण (Illustration)
राज्य सरकार ने Mr. X के बरी होने के खिलाफ धारा 419 के अंतर्गत अपील दायर की है। लेकिन अपील के लंबित होने के दौरान Mr. X की मृत्यु हो जाती है। ऐसी स्थिति में यह अपील धारा 435(1) के अनुसार समाप्त हो जाएगी।
Sub-धारा (2) – अन्य अपीलों में अपीलकर्ता की मृत्यु पर स्थिति (Abatement of Other Appeals on Death of Appellant)
धारा 435(2) के अनुसार, Chapter XXX के अंतर्गत आने वाली अन्य सभी अपीलें (सिर्फ जुर्माने (Fine) से जुड़ी अपीलों को छोड़कर) अपीलकर्ता की मृत्यु होने पर समाप्त हो जाती हैं।
लेकिन इस उपधारा में एक Proviso जोड़ा गया है, जो एक महत्वपूर्ण अपवाद देता है:
यदि अपील सज़ा-ए-मौत (Death Sentence) या कैद (Imprisonment) से जुड़ी हो, और अपीलकर्ता की मृत्यु हो जाए, तो उसके करीबी रिश्तेदार (Near Relative) अदालत में आवेदन करके उस अपील को आगे बढ़ाने की अनुमति मांग सकते हैं। यह आवेदन अपीलकर्ता की मृत्यु के 30 दिनों के भीतर करना होगा।
यदि न्यायालय इस अनुमति (Leave) को स्वीकार कर लेता है, तो अपील समाप्त नहीं मानी जाएगी और रिश्तेदार उसे आगे बढ़ा सकते हैं।
“करीबी रिश्तेदार (Near Relative)” की परिभाषा (Definition)
धारा 435 के अंत में यह भी स्पष्ट किया गया है कि "Near Relative" कौन होता है:
• माता या पिता (Parent)
• पति या पत्नी (Spouse)
• संतान या उनके वंशज (Lineal Descendant – Children, Grandchildren)
• भाई या बहन (Brother or Sister)
इस परिभाषा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि यदि कोई व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त हो जाता है, तो उसके लिए न्याय की लड़ाई उसके परिवार वाले जारी रख सकें।
उदाहरण (Illustration)
मान लीजिए कि Mr. Y को कोर्ट ने आजीवन कारावास (Life Imprisonment) की सज़ा दी है। वह High Court में अपील करता है, लेकिन अपील लंबित रहते हुए उसकी मृत्यु हो जाती है। ऐसी स्थिति में उसका बेटा धारा 435(2) के तहत 30 दिन के भीतर आवेदन करता है कि वह अपील को आगे बढ़ाना चाहता है। यदि न्यायालय उसे अनुमति देता है, तो अपील समाप्त नहीं होगी और न्यायालय उसका निर्णय देगा।
धारा 434 और 435 का आपसी संबंध (Link Between धारा 434 and 435)
धारा 434 हमें बताता है कि अपीलीय न्यायालय के निर्णय अंतिम होंगे, जबकि धारा 435 बताता है कि अपील की प्रक्रिया कैसे समाप्त होती है यदि अपीलकर्ता या आरोपी की मृत्यु हो जाए। दोनों धाराएं मिलकर अपील प्रक्रिया के आरंभ से लेकर अंत तक का ढांचा तैयार करती हैं और यह सुनिश्चित करती हैं कि न्यायिक प्रक्रिया उचित और स्पष्ट हो।
धारा 434 और धारा 435, दोनों धाराएं आपराधिक अपील प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। धारा 434 यह सुनिश्चित करता है कि अपीलीय न्यायालय का निर्णय अंतिम और बाध्यकारी हो, जबकि धारा 435 यह बताता है कि मृत्यु की स्थिति में अपील कैसे समाप्त होती है या कैसे उसे आगे बढ़ाया जा सकता है। ये प्रावधान न केवल न्याय व्यवस्था को स्पष्ट और पारदर्शी बनाते हैं, बल्कि न्याय की निरंतरता और परिवार के अधिकारों की रक्षा भी करते हैं।