पंजीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 42 - 46: वसीयत के जमा करने पर प्रक्रिया

Update: 2025-08-02 12:17 GMT

आइए पंजीकरण अधिनियम, 1908 (Registration Act, 1908) के भाग IX को समझते हैं, जो वसीयतों को जमा करने (Deposit of Wills) से संबंधित है। पंजीकरण के अलावा, यह भाग एक अतिरिक्त सुविधा प्रदान करता है जहाँ कोई व्यक्ति अपनी वसीयत को गोपनीय तरीके से रजिस्ट्रार के पास जमा कर सकता है, जिससे उसकी सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।

42. वसीयतों का जमा (Deposit of wills)

यह धारा वसीयत को जमा करने की प्रक्रिया को परिभाषित करती है। कोई भी वसीयतकर्ता (testator), या तो व्यक्तिगत रूप से (personally) या विधिवत अधिकृत एजेंट (duly authorised agent) के माध्यम से, अपनी वसीयत को एक मोहरबंद लिफाफे (sealed cover) में किसी भी रजिस्ट्रार (Registrar) के पास जमा कर सकता है। इस लिफाफे पर वसीयतकर्ता का नाम, उसके एजेंट का नाम (यदि कोई हो), और दस्तावेज़ की प्रकृति (nature of the document) का विवरण लिखा होना चाहिए।

• उदाहरण: रमेश अपनी वसीयत एक लिफाफे में रखता है और उसे मोहरबंद कर देता है। लिफाफे के ऊपर वह लिखता है, "रमेश की वसीयत - जमा करने के लिए। एजेंट का नाम: सुरेश।" वह यह लिफाफा किसी भी रजिस्ट्रार के पास जमा कर सकता है।

43. वसीयत के जमा करने पर प्रक्रिया (Procedure on deposit of wills)

यह धारा बताती है कि जब रजिस्ट्रार को मोहरबंद लिफाफा मिलता है तो उसे क्या करना होता है।

उपधारा (1) के अनुसार, ऐसे लिफाफे को प्राप्त करने पर, रजिस्ट्रार, यदि इस बात से संतुष्ट है कि उसे जमा करने वाला व्यक्ति वसीयतकर्ता या उसका एजेंट है, तो वह अपने रजिस्टर-बुक नंबर 5 (Register-book No. 5) में लिफाफे पर लिखी जानकारी (superscription) को प्रतिलेखित (transcribe) करेगा। वह उसी किताब में और लिफाफे पर प्रस्तुति और प्राप्ति का वर्ष, महीना, दिन और समय भी दर्ज करेगा। इसके अलावा, वह किसी भी ऐसे व्यक्ति का नाम नोट करेगा जो वसीयतकर्ता या उसके एजेंट की पहचान की गवाही दे सकता है, और लिफाफे की मोहर पर कोई भी सुपाठ्य (legible) मुहर हो तो उसे भी नोट करेगा।

• उदाहरण: जब रमेश का एजेंट सुरेश रजिस्ट्रार के पास लिफाफा जमा करता है, तो रजिस्ट्रार अपनी किताब में लिफाफे पर लिखे "रमेश की वसीयत" जैसे विवरण दर्ज करेगा। वह उस दिन की तारीख और समय (जैसे 10 जून, 2024, सुबह 11:30 बजे) नोट करेगा, और सुरेश की पहचान की पुष्टि करने वाले किसी गवाह का नाम भी दर्ज कर सकता है।

उपधारा (2) में कहा गया है कि रजिस्ट्रार तब उस मोहरबंद लिफाफे को अपने अग्निरोधी बक्से (fire-proof box) में रखेगा और उसे वहीं सुरक्षित रखेगा। यह सुनिश्चित करता है कि वसीयत सुरक्षित और गोपनीय रहे।

44. धारा 42 के तहत जमा किए गए मोहरबंद लिफाफे की वापसी (Withdrawal of sealed cover deposited under section 42)

यह धारा वसीयत को वापस लेने की प्रक्रिया को बताती है। यदि वह वसीयतकर्ता (testator) जिसने लिफाफा जमा किया है, उसे वापस लेना चाहता है, तो वह या तो व्यक्तिगत रूप से या विधिवत अधिकृत एजेंट के माध्यम से उस रजिस्ट्रार के पास आवेदन कर सकता है जिसके पास वह जमा है। यदि रजिस्ट्रार इस बात से संतुष्ट है कि आवेदक वास्तव में वसीयतकर्ता या उसका एजेंट है, तो वह तदनुसार लिफाफा वापस कर देगा।

• उदाहरण: रमेश ने कुछ साल पहले वसीयत जमा की थी, लेकिन अब वह उसमें बदलाव करना चाहता है। वह रजिस्ट्रार से संपर्क करता है, अपनी पहचान साबित करता है, और रजिस्ट्रार उसे उसका मोहरबंद लिफाफा वापस दे देता है।

45. जमाकर्ता की मृत्यु पर कार्यवाही (Proceedings on death of depositor)

यह धारा बताती है कि वसीयतकर्ता की मृत्यु के बाद क्या प्रक्रिया अपनाई जाती है।

उपधारा (1) के अनुसार, यदि धारा 42 के तहत मोहरबंद लिफाफा जमा करने वाले वसीयतकर्ता की मृत्यु हो जाती है, और जिस रजिस्ट्रार के पास वह जमा है, उसे उसे खोलने के लिए आवेदन किया जाता है, और यदि रजिस्ट्रार इस बात से संतुष्ट है कि वसीयतकर्ता मर चुका है, तो वह आवेदक की उपस्थिति में लिफाफे को खोलेगा। इसके बाद, आवेदक के खर्च पर, वह उसकी सामग्री को अपनी बुक नंबर 3 (Book No. 3) में कॉपी करवाएगा।

• उदाहरण: रमेश की मृत्यु हो जाती है। उसका बेटा सुरेश रजिस्ट्रार के पास मृत्यु प्रमाण पत्र के साथ आवेदन करता है। रजिस्ट्रार रमेश की मृत्यु की पुष्टि करने के बाद सुरेश की उपस्थिति में लिफाफा खोलता है और वसीयत की एक प्रति अपनी बुक नंबर 3 में रिकॉर्ड कर लेता है।

उपधारा (2) में कहा गया है कि जब ऐसी प्रतिलिपि बना ली जाती है, तो रजिस्ट्रार मूल वसीयत को फिर से जमा कर देगा। यह सुनिश्चित करता है कि मूल वसीयत सुरक्षित रहे, भले ही उसकी प्रतिलिपि बना ली गई हो।

46. कुछ अधिनियमों और न्यायालयों की शक्तियों की बचत (Saving of certain enactments and powers of Courts)

यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि वसीयत से संबंधित अन्य कानूनों और अदालतों की शक्तियों पर इस अधिनियम का कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।

उपधारा (1) के अनुसार, यहाँ दी गई कोई भी बात भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1865 (Indian Succession Act, 1865) की धारा 259, या प्रोबेट और प्रशासन अधिनियम, 1881 (Probate and Administration Act, 1881) की धारा 81 के प्रावधानों को प्रभावित नहीं करेगी, और न ही किसी भी न्यायालय की किसी भी वसीयत को पेश करने के लिए आदेश देने की शक्ति को प्रभावित करेगी।

• उदाहरण: यदि किसी वसीयत के संबंध में अदालत में कोई विवाद चल रहा है, तो अदालत रजिस्ट्रार को आदेश दे सकती है कि वह वसीयत पेश करे। रजिस्ट्रार को इस आदेश का पालन करना होगा, भले ही वसीयत उसके पास गोपनीय रूप से जमा हो।

उपधारा (2) कहती है कि जब ऐसा कोई आदेश दिया जाता है, तो रजिस्ट्रार (Registrar), जब तक कि वसीयत की प्रतिलिपि पहले ही धारा 45 के तहत नहीं बनाई गई हो, लिफाफे को खोलेगा और वसीयत को अपनी बुक नंबर 3 (Book No. 3) में कॉपी करवाएगा। वह ऐसी प्रतिलिपि पर एक नोट भी बनाएगा कि मूल वसीयत को उक्त आदेश के अनुसरण में न्यायालय में ले जाया गया है। यह कानूनी रिकॉर्ड को अद्यतन (update) रखता है।

ये धाराएँ मिलकर वसीयत की सुरक्षा और गोपनीयता सुनिश्चित करती हैं, जबकि यह भी सुनिश्चित करती हैं कि वे कानूनी प्रक्रियाओं और अदालती आदेशों के अधीन रहें।

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