पंजीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 40 और 41: वसीयत और दत्तक ग्रहण प्राधिकार को प्रस्तुत करना

Update: 2025-08-01 16:00 GMT

आइए, पंजीकरण अधिनियम, 1908 (Registration Act, 1908) के भाग VIII को समझते हैं, जो वसीयत (Wills) और दत्तक ग्रहण के प्राधिकार (Authorities to Adopt) जैसे दस्तावेजों को पंजीकृत करने की प्रक्रिया पर केंद्रित है। यह भाग इन संवेदनशील दस्तावेजों के लिए एक विशिष्ट प्रक्रिया प्रदान करता है।

धारा 40. वसीयत और दत्तक ग्रहण प्राधिकार प्रस्तुत करने के हकदार व्यक्ति (Persons entitled to present wills and authorities to adopt)

यह धारा उन व्यक्तियों को परिभाषित करती है जिन्हें वसीयत और दत्तक ग्रहण प्राधिकार को पंजीकरण के लिए प्रस्तुत करने का अधिकार है। यह एक महत्वपूर्ण कदम है क्योंकि इन दस्तावेजों का पंजीकरण अक्सर उनके निष्पादक की मृत्यु के बाद होता है।

उपधारा (1) के अनुसार, वसीयतकर्ता (testator), या उसकी मृत्यु के बाद, वसीयत के तहत निष्पादक (executor) या किसी अन्य रूप में दावा करने वाला कोई भी व्यक्ति, इसे पंजीकरण के लिए किसी भी रजिस्ट्रार (Registrar) या उप-रजिस्ट्रार (Sub-Registrar) के पास प्रस्तुत कर सकता है। वसीयतकर्ता स्वयं अपनी वसीयत को अपने जीवनकाल में कभी भी पंजीकृत करा सकता है, जैसा कि पहले बताया गया था।

• उदाहरण 1 (वसीयतकर्ता द्वारा): रमेश 65 वर्ष का है और अपनी संपत्ति अपने बच्चों में बाँटने के लिए एक वसीयत लिखता है। वह अपने जीवनकाल में ही इस वसीयत को अपनी इच्छा से पंजीकृत करा सकता है।

• उदाहरण 2 (वसीयतकर्ता की मृत्यु के बाद): रमेश की मृत्यु हो जाती है। उसके बेटे सुरेश को वसीयत में निष्पादक (executor) के रूप में नामित किया गया है। सुरेश वसीयत को पंजीकरण के लिए रजिस्ट्रार के पास प्रस्तुत कर सकता है ताकि यह कानूनी रूप से मान्य हो सके।

उपधारा (2) दत्तक ग्रहण के प्राधिकार (authority to adopt) से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि दाता (donor) (वह व्यक्ति जो दत्तक ग्रहण का अधिकार देता है), या उसकी मृत्यु के बाद, प्राप्तकर्ता (donee) (वह व्यक्ति जिसे अधिकार दिया गया है), या दत्तक पुत्र (adoptive son), इसे पंजीकरण के लिए किसी भी रजिस्ट्रार (Registrar) या उप-रजिस्ट्रार (Sub-Registrar) के पास प्रस्तुत कर सकता है।

• उदाहरण 1 (दाता द्वारा): एक महिला अपने पति की मृत्यु के बाद किसी पुरुष को अपने लिए पुत्र गोद लेने का अधिकार देती है। वह अपने जीवनकाल में इस प्राधिकार को पंजीकृत करा सकती है।

• उदाहरण 2 (दाता की मृत्यु के बाद): महिला की मृत्यु हो जाती है। जिस पुरुष को पुत्र गोद लेने का अधिकार दिया गया था, वह उस दस्तावेज़ को पंजीकरण के लिए प्रस्तुत कर सकता है ताकि दत्तक ग्रहण प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जा सके। इसी तरह, यदि दत्तक पुत्र बड़ा हो जाता है, तो वह भी भविष्य के रिकॉर्ड के लिए इसे पंजीकृत करा सकता है।

धारा 41. वसीयत और दत्तक ग्रहण प्राधिकार का पंजीकरण (Registration of wills and authorities to adopt)

यह धारा बताती है कि वसीयत और दत्तक ग्रहण प्राधिकार का पंजीकरण कैसे किया जाएगा, खासकर जब वे उनके निष्पादक की मृत्यु के बाद प्रस्तुत किए जाते हैं।

उपधारा (1) कहती है कि जब वसीयतकर्ता (testator) या दाता (donor) द्वारा वसीयत या दत्तक ग्रहण प्राधिकार को पंजीकरण के लिए प्रस्तुत किया जाता है, तो उसे किसी भी अन्य दस्तावेज़ की तरह ही पंजीकृत किया जा सकता है। इसका मतलब है कि पंजीकरण अधिकारी द्वारा व्यक्ति की पहचान और निष्पादन की पुष्टि के बाद, दस्तावेज़ को सामान्य प्रक्रिया के तहत पंजीकृत कर दिया जाएगा।

• उदाहरण: जैसा कि ऊपर बताया गया है, जब रमेश अपनी जीवित अवस्था में अपनी वसीयत पंजीकृत कराता है, तो पंजीकरण अधिकारी उसकी पहचान और हस्ताक्षर की पुष्टि करता है, और इसे अन्य दस्तावेजों की तरह ही रिकॉर्ड में दर्ज कर लेता है।

उपधारा (2) उन स्थितियों से संबंधित है जहाँ वसीयत या दत्तक ग्रहण प्राधिकार को किसी अन्य व्यक्ति द्वारा प्रस्तुत किया जाता है (यानी वसीयतकर्ता या दाता के अलावा)। ऐसे मामलों में, दस्तावेज़ तभी पंजीकृत होगा जब पंजीकरण अधिकारी (registering officer) इन तीन शर्तों से संतुष्ट हो:

• (a) कि वसीयत या प्राधिकार क्रमशः वसीयतकर्ता या दाता द्वारा निष्पादित किया गया था: अधिकारी को इस बात का यकीन होना चाहिए कि दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर सही व्यक्ति द्वारा किए गए थे।

o उदाहरण: वसीयतकर्ता की मृत्यु के बाद, जब उसका बेटा वसीयत प्रस्तुत करता है, तो रजिस्ट्रार दस्तावेजों में वसीयतकर्ता के हस्ताक्षर की तुलना उसके अन्य आधिकारिक हस्ताक्षरों से कर सकता है, या गवाहों को बुलाकर पुष्टि कर सकता है।

• (b) कि वसीयतकर्ता या दाता की मृत्यु हो चुकी है: चूंकि ये दस्तावेज़ अक्सर मृत्यु के बाद ही कानूनी रूप से प्रभावी होते हैं, इसलिए उनकी मृत्यु की पुष्टि करना अनिवार्य है।

o उदाहरण: रजिस्ट्रार को वसीयतकर्ता की मृत्यु प्रमाण पत्र (death certificate) की मांग करनी होगी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वह वास्तव में मर चुका है।

• (c) कि वसीयत या प्राधिकार प्रस्तुत करने वाला व्यक्ति, धारा 40 के तहत, इसे प्रस्तुत करने का हकदार है: अधिकारी को यह सत्यापित करना होगा कि प्रस्तुतकर्ता कानूनी रूप से दस्तावेज़ को प्रस्तुत करने का अधिकार रखता है।

o उदाहरण: यदि वसीयत प्रस्तुत करने वाला व्यक्ति खुद को निष्पादक बताता है, तो उसे वसीयत की कॉपी दिखानी होगी जिसमें उसका नाम निष्पादक के रूप में लिखा गया हो।

ये धाराएँ मिलकर वसीयत और दत्तक ग्रहण प्राधिकार जैसे दस्तावेजों के लिए एक सुरक्षित और सत्यापन योग्य पंजीकरण प्रक्रिया बनाती हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि किसी की मृत्यु के बाद भी उसकी इच्छाओं का सम्मान हो और कानूनी रूप से मान्य रिकॉर्ड बने रहें।

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