सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 4, 5 और 6– इलेक्ट्रॉनिक शासन और कानूनी मान्यता

Update: 2025-05-19 12:54 GMT

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (Information Technology Act, 2000) ने भारत में डिजिटल दस्तावेजों और इलेक्ट्रॉनिक सिग्नेचर (Electronic Signature) को कानूनी मान्यता देकर प्रशासन, व्यापार और न्यायिक कार्यप्रणाली में एक नया युग प्रारंभ किया। 

इस अधिनियम के अध्याय II में जहां इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की प्रमाणीकरण प्रक्रिया को समझाया गया है, वहीं अध्याय III इलेक्ट्रॉनिक शासन (Electronic Governance) के विकास की नींव रखता है। धारा 4, 5 और 6 इस बात को स्पष्ट करती हैं कि अब कागज़ी दस्तावेजों के स्थान पर इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड और इलेक्ट्रॉनिक सिग्नेचर को किस प्रकार मान्यता दी गई है।

यह अध्याय विशेष रूप से प्रशासनिक प्रक्रियाओं के डिजिटलीकरण की दिशा में महत्वपूर्ण है और अक्सर न्यायिक सेवा और अन्य विधिक परीक्षाओं में पूछा जाता है।

धारा 4 – इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को कानूनी मान्यता (Section 4 – Legal Recognition of Electronic Records)

धारा 4 में यह प्रावधान किया गया है कि यदि किसी विधि में यह आवश्यक हो कि कोई सूचना या दस्तावेज लिखित, टाइप किए गए या मुद्रित रूप में होना चाहिए, तो उस प्रावधान को पूरा मान लिया जाएगा यदि वही सूचना इलेक्ट्रॉनिक रूप (Electronic Form) में प्रस्तुत की गई हो।

इसका अर्थ यह है कि अब सरकारी या गैर-सरकारी प्रक्रिया में किसी सूचना को केवल कागज पर प्रस्तुत करना आवश्यक नहीं है। यदि वही सूचना डिजिटल रूप में उपलब्ध कराई जाती है और भविष्य में उपयोग के लिए सुलभ (Accessible) भी रहती है, तो वह विधिक रूप से मान्य (Legally Valid) मानी जाएगी।

उदाहरण के लिए, यदि कोई सरकारी कार्यालय यह कहता है कि जन्म प्रमाण पत्र की प्रति प्रस्तुत की जाए, तो अब उसे स्कैन कर के PDF रूप में ईमेल या पोर्टल पर अपलोड करना भी वैध माना जाएगा, बशर्ते वह स्पष्ट और उपयोग योग्य हो।

यह धारा सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 3 और 3A से संबंधित है, जो इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की प्रमाणीकरण प्रक्रिया और इलेक्ट्रॉनिक सिग्नेचर की वैधता को निर्धारित करती है। धारा 4 यह सुनिश्चित करती है कि एक बार रिकॉर्ड प्रमाणित हो जाए, तो उसका डिजिटल स्वरूप भी विधिक रूप से मान्य हो।

धारा 5 – इलेक्ट्रॉनिक सिग्नेचर को कानूनी मान्यता (Section 5 – Legal Recognition of Electronic Signatures)

धारा 5 के अनुसार, यदि किसी कानून में यह आवश्यक हो कि कोई दस्तावेज हस्ताक्षर (Signature) द्वारा प्रमाणित हो या किसी व्यक्ति का हस्ताक्षर उस पर अंकित हो, तो उस आवश्यकता को भी पूरा मान लिया जाएगा यदि वह दस्तावेज इलेक्ट्रॉनिक सिग्नेचर द्वारा प्रमाणित किया गया हो।

यह एक क्रांतिकारी प्रावधान है क्योंकि इससे यह स्पष्ट हो गया कि अब किसी दस्तावेज पर हस्ताक्षर की भौतिक उपस्थिति आवश्यक नहीं है। इलेक्ट्रॉनिक सिग्नेचर, जो डिजिटल तकनीक के माध्यम से लगाया जाता है, वैधानिक रूप से मान्य (Legally Valid) है।

इस धारा में 'साइन' (Signed) शब्द की व्याख्या भी की गई है। इसके अनुसार, 'साइन' का अर्थ है किसी व्यक्ति द्वारा दस्तावेज पर हस्तलिखित हस्ताक्षर या कोई चिह्न (Mark) लगाना। इस धारा में यह स्पष्ट किया गया है कि 'Signature' शब्द का भी इसी अर्थ में प्रयोग किया जाएगा।

सरकार द्वारा अधिसूचित (Prescribed) तरीके से लगाए गए इलेक्ट्रॉनिक सिग्नेचर को ही मान्यता दी जाएगी। यह प्रावधान धारा 3A से जुड़ा है, जहां इलेक्ट्रॉनिक सिग्नेचर की वैधता की शर्तें दी गई हैं, जैसे कि उसका विशिष्ट रूप से व्यक्ति से जुड़ा होना, उसे बदलना संभव न होना आदि।

धारा 6 – सरकार और उसकी एजेंसियों में इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड और इलेक्ट्रॉनिक सिग्नेचर का उपयोग (Section 6 – Use of Electronic Records and Electronic Signatures in Government and its Agencies)

धारा 6 यह सुनिश्चित करती है कि भारत सरकार या राज्य सरकारों के किसी भी विभाग या संस्था द्वारा किए जाने वाले कार्यों में इलेक्ट्रॉनिक माध्यम का उपयोग वैधानिक रूप से मान्य होगा। इसमें तीन प्रकार के प्रशासनिक कार्यों को सम्मिलित किया गया है:

पहला, यदि किसी कानून में यह प्रावधान हो कि कोई फॉर्म, आवेदन या अन्य दस्तावेज किसी सरकारी कार्यालय में विशेष विधि से प्रस्तुत किया जाए, तो वह कार्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से करने पर भी मान्य होगा।

दूसरा, यदि कोई अनुज्ञा पत्र (Licence), स्वीकृति (Approval), परमिट आदि देने की प्रक्रिया निर्धारित हो, तो उसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से देने पर भी वह प्रक्रिया विधिक रूप से पूरी मानी जाएगी।

तीसरा, यदि कोई राशि जमा करने या प्राप्त करने की विधि तय की गई हो, तो वह कार्य भी डिजिटल भुगतान प्रणाली (Digital Payment Method) द्वारा पूरा किया जा सकता है।

उदाहरण के तौर पर, पहले ड्राइविंग लाइसेंस के लिए आवेदन केवल ऑफलाइन होता था, लेकिन अब उसे ऑनलाइन पोर्टल पर भर कर, शुल्क का ऑनलाइन भुगतान कर और डिजिटल हस्ताक्षर लगाकर भी मान्य आवेदन माना जाएगा।

इस धारा का उपविभाग (Sub-section 2) सरकार को यह अधिकार देता है कि वह यह तय कर सके कि कौन से प्रारूप (Format) और तरीके से इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड भरे, बनाए या जारी किए जाएं। साथ ही वह यह भी निर्धारित कर सकती है कि ऐसे रिकॉर्ड के लिए शुल्क का भुगतान कैसे किया जाएगा।

इस धारा का कार्यान्वयन न केवल प्रशासनिक दक्षता (Administrative Efficiency) को बढ़ाता है, बल्कि भ्रष्टाचार में कमी, पारदर्शिता और नागरिकों के लिए प्रक्रिया को सरल बनाने का कार्य भी करता है।

महत्व और परीक्षा में उपयोगिता (Importance and Relevance in Exams)

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की ये तीनों धाराएं विशेष रूप से प्रशासनिक और विधिक प्रक्रियाओं में डिजिटल बदलाव को मान्यता देती हैं। यह भारत सरकार के 'डिजिटल इंडिया' (Digital India) अभियान के विधिक आधार को सुदृढ़ करती हैं। न्यायिक सेवा परीक्षाओं, APO, NET/JRF, और अन्य विधिक प्रतियोगी परीक्षाओं में इन धाराओं से संबंधित प्रश्न अक्सर पूछे जाते हैं, जैसे:

• क्या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को लिखित दस्तावेज के समकक्ष माना जा सकता है?

• इलेक्ट्रॉनिक सिग्नेचर की वैधानिक वैधता क्या है?

• क्या सरकार द्वारा ऑनलाइन आवेदन और भुगतान की प्रक्रिया विधिक रूप से मान्य है?

इन सभी प्रश्नों के उत्तर अध्याय III की धारा 4, 5 और 6 में निहित हैं।

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 4, 5 और 6 भारत में डिजिटल व्यवस्था को विधिक मान्यता प्रदान करने का आधार हैं। यह अधिनियम उस समय की आवश्यकता को दर्शाता है, जब समाज तेजी से डिजिटल दुनिया की ओर बढ़ रहा है।

इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज, इलेक्ट्रॉनिक सिग्नेचर और सरकारी प्रक्रियाओं के डिजिटलीकरण ने नागरिकों के लिए सरकारी सेवाओं तक पहुंच आसान की है। इस अधिनियम की यह विशेषता इसे न केवल प्रशासनिक बल्कि विधिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण बनाती है।

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