भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 36-38 : आयोग की प्रक्रिया और आदेशों का संशोधन

Update: 2025-08-14 13:32 GMT

भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) एक विशेष नियामक निकाय (regulatory body) है जिसे भारतीय बाजारों में प्रतिस्पर्धा (Competition) को बनाए रखने का महत्वपूर्ण कार्य सौंपा गया है।

इस कार्य को प्रभावी ढंग से करने के लिए, CCI को न केवल व्यापक शक्तियां दी गई हैं, बल्कि उसे अपनी कार्यवाही (proceedings) को संचालित करने के लिए भी पर्याप्त स्वतंत्रता दी गई है। भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 36 (Section 36) और धारा 38 (Section 38) इसी प्रशासनिक और प्रक्रियात्मक ढांचे का वर्णन करती हैं, जो CCI के कामकाज की नींव रखते हैं।

धारा 36: आयोग की अपनी प्रक्रिया को विनियमित करने की शक्ति (Power of Commission to Regulate its own Procedure)

धारा 36 CCI को अपनी प्रक्रियाओं (procedures) को संचालित करने के लिए आवश्यक अधिकार प्रदान करती है। यह धारा CCI को एक लचीला और शक्तिशाली निकाय बनाती है, जो मामलों की जटिलता के अनुसार अपनी कार्यवाही को अनुकूलित कर सकता है।

1. प्राकृतिक न्याय और प्रक्रिया (Natural Justice and Procedure)

धारा 36(1) के अनुसार, CCI अपने कार्यों के निर्वहन में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों (principles of natural justice) द्वारा निर्देशित होगा। प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का मतलब है कि सभी पक्षों को निष्पक्ष सुनवाई (fair hearing) का मौका मिलना चाहिए। इसमें शामिल है:

• सुनवाई का अधिकार (Right to be heard): किसी भी पक्ष के खिलाफ कोई प्रतिकूल निर्णय लेने से पहले, उसे अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाना चाहिए।

• पूर्वाग्रह के खिलाफ नियम (Rule against bias): निर्णय लेने वाला निकाय निष्पक्ष होना चाहिए और किसी भी पक्ष के प्रति पूर्वाग्रह नहीं रखना चाहिए।

इसके अलावा, CCI को इस अधिनियम और केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के अधीन रहते हुए, अपनी प्रक्रिया को विनियमित करने की शक्तियाँ (powers to regulate its own procedure) होंगी। यह CCI को पारंपरिक न्यायालयों (traditional courts) की तरह कठोर प्रक्रियाओं से बंधे बिना, मामलों की विशिष्टता के अनुसार अपनी जांच और सुनवाई को अनुकूलित करने की स्वतंत्रता देता है।

• उदाहरण: CCI किसी मामले की सुनवाई के लिए पारंपरिक अदालत की तरह गवाहों को बुलाने के बजाय, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई का विकल्प चुन सकता है, यदि उसे ऐसा करना अधिक कुशल लगता है। यह लचीलापन विशेष रूप से जटिल और तकनीकी मामलों में CCI की प्रभावशीलता को बढ़ाता है।

2. सिविल कोर्ट की शक्तियाँ (Powers of a Civil Court)

धारा 36(2) CCI को सिविल कोर्ट (Civil Court) के समान शक्तियाँ प्रदान करती है। इसका मतलब है कि CCI एक अदालत के समान कानूनी अधिकार रखता है, जो इसे जांच और पूछताछ को प्रभावी ढंग से करने में सक्षम बनाता है। ये शक्तियाँ सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (Code of Civil Procedure, 1908) के तहत एक सिविल कोर्ट में निहित होती हैं।

CCI इन मामलों में ऐसी शक्तियों का प्रयोग कर सकता है:

• किसी भी व्यक्ति को बुलाना और शपथ पर पूछताछ करना (Summoning and examining on oath): CCI किसी भी व्यक्ति को गवाही देने के लिए बुला सकता है और शपथ पर उसकी जांच कर सकता है। यह किसी भी कंपनी के अधिकारियों या प्रतिस्पर्धियों को जांच में सहयोग करने के लिए बाध्य कर सकता है।

• दस्तावेजों की मांग करना और प्रस्तुत करवाना (Requiring discovery and production of documents): CCI किसी भी पक्ष को प्रासंगिक दस्तावेज, जैसे आंतरिक ईमेल, वित्तीय रिकॉर्ड, या व्यावसायिक योजनाएं प्रस्तुत करने का निर्देश दे सकता है।

• शपथ पत्र पर साक्ष्य प्राप्त करना (Receiving evidence on affidavit): CCI पक्षों को शपथ पत्र (affidavits) के रूप में लिखित साक्ष्य जमा करने की अनुमति दे सकता है।

• गवाहों या दस्तावेजों की जांच के लिए कमीशन जारी करना (Issuing commissions for examination of witnesses or documents): CCI दूरस्थ स्थानों से गवाहों की जांच करने या दस्तावेजों की समीक्षा करने के लिए कमीशन (Commission) जारी कर सकता है।

• किसी भी सार्वजनिक अभिलेख की मांग करना (Requisitioning any public record): CCI किसी भी सरकारी कार्यालय से सार्वजनिक रिकॉर्ड या दस्तावेजों की मांग कर सकता है।

• उदाहरण: एक जांच के दौरान, CCI को संदेह है कि एक कंपनी ने अपने वित्तीय रिकॉर्ड में हेरफेर किया है। धारा 36(2) के तहत, CCI उस कंपनी के मुख्य वित्तीय अधिकारी (CFO) को शपथ पर पूछताछ के लिए बुला सकता है और कंपनी के सभी वित्तीय रिकॉर्ड और संबंधित आंतरिक संचार प्रस्तुत करने का आदेश दे सकता है। यदि कंपनी इनकार करती है, तो CCI कानूनी कार्रवाई कर सकता है।

3. विशेषज्ञों की सहायता (Assistance of Experts)

धारा 36(3) CCI को अपनी जांच में सहायता के लिए विशेषज्ञों (experts) को बुलाने की अनुमति देती है। प्रतिस्पर्धा के मामले अक्सर जटिल आर्थिक और तकनीकी पहलुओं से संबंधित होते हैं, जिनके लिए विशेष ज्ञान की आवश्यकता होती है। CCI अर्थशास्त्र, वाणिज्य, लेखा, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार या किसी अन्य प्रासंगिक क्षेत्र से विशेषज्ञों को बुला सकता है।

• उदाहरण: एक विलय (merger) की जांच के दौरान, CCI को यह समझने की आवश्यकता होती है कि क्या इससे बाजार में नवाचार (innovation) पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। CCI तब एक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री या तकनीकी विशेषज्ञ को बुला सकता है जो इस प्रभाव का मूल्यांकन करने में मदद कर सके। यह CCI के निर्णयों की विश्वसनीयता और सटीकता को बढ़ाता है।

4. दस्तावेज़ और जानकारी का निर्देश (Direction for Documents and Information)

धारा 36(4) CCI को यह शक्ति देती है कि वह किसी भी व्यक्ति को सीधे महानिदेशक (Director General), सचिव (Secretary), या किसी अधिकृत अधिकारी के समक्ष प्रासंगिक दस्तावेज (documents) या जानकारी (information) प्रस्तुत करने का निर्देश दे सकता है। यह शक्ति CCI की जांच टीम को तेजी से और सीधे जानकारी एकत्र करने में मदद करती है।

• उदाहरण: CCI को एक कंपनी के खिलाफ शिकायत मिलती है कि वह ग्राहकों को अनुचित शर्तें लगा रही है। CCI सीधे उस कंपनी के ग्राहक सेवा विभाग के प्रमुख को ग्राहक अनुबंधों और शिकायतों से संबंधित सभी दस्तावेज और डेटा प्रस्तुत करने का निर्देश दे सकता है।

धारा 38: आदेशों का संशोधन (Rectification of Orders)

धारा 38 CCI को अपने द्वारा पारित किए गए आदेशों में गलतियों को ठीक करने का अधिकार देती है। यह एक महत्वपूर्ण प्रक्रियात्मक शक्ति है जो यह सुनिश्चित करती है कि CCI के आदेश सटीक और दोषरहित हों।

1. स्पष्ट त्रुटियों का संशोधन (Rectification of Apparent Mistakes)

धारा 38(1) और 38(2) में बताया गया है कि CCI अपने किसी भी आदेश को रिकॉर्ड से स्पष्ट किसी भी गलती (mistake apparent from the record) को सुधारने के लिए संशोधित कर सकता है।

CCI यह संशोधन:

• अपनी पहल पर (of its own motion) कर सकता है, यानी जब उसे खुद कोई गलती मिलती है।

• जब किसी भी पक्ष द्वारा उसे ऐसी गलती के बारे में सूचित किया जाता है।

• उदाहरण: CCI ने एक कंपनी पर ₹50 करोड़ का जुर्माना लगाया, लेकिन आदेश की प्रति में गलती से जुर्माने की राशि ₹5 करोड़ छप गई। यह एक स्पष्ट गलती है जो रिकॉर्ड से ही दिख रही है। CCI धारा 38 के तहत इस गलती को ठीक कर सकता है और जुर्माने की राशि को सही कर सकता है। इसी तरह, यदि आदेश में किसी कंपनी का नाम गलत लिखा गया है, तो उसे भी ठीक किया जा सकता है।

2. संशोधन की सीमाएँ (Limitations on Rectification)

धारा 38 की व्याख्या (Explanation) इस शक्ति की सबसे महत्वपूर्ण सीमा को स्पष्ट करती है। यह बताती है कि किसी भी गलती को ठीक करते समय, CCI अपने आदेश के मूल भाग (substantive part) को संशोधित नहीं कर सकता है।

• इसका क्या मतलब है? इसका मतलब यह है कि CCI किसी आदेश में केवल clerical (लिपिकीय) या अंकगणितीय (arithmetical) गलतियों को ठीक कर सकता है। यह अपने मूल निर्णय को नहीं बदल सकता। उदाहरण के लिए, यदि CCI ने किसी कंपनी को दोषी पाया है, तो वह बाद में यह कहकर आदेश में संशोधन नहीं कर सकता कि कंपनी दोषी नहीं थी। इसी तरह, वह किसी जुर्माने की राशि को पूरी तरह से नहीं बदल सकता, जब तक कि वह एक स्पष्ट गणना की गलती न हो। यह सीमा सुनिश्चित करती है कि धारा 38 का उपयोग फैसले की समीक्षा करने या उसे बदलने के लिए नहीं किया जा सकता।

भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 36 और 38 मिलकर CCI को एक शक्तिशाली, स्वायत्त और जवाबदेह संस्था बनाती हैं। धारा 36 CCI को आवश्यक कानूनी और प्रक्रियात्मक उपकरण प्रदान करती है जो इसे एक सिविल कोर्ट और एक विशेषज्ञ नियामक दोनों के रूप में कार्य करने में सक्षम बनाते हैं। यह CCI को प्रभावी ढंग से जांच करने, साक्ष्य एकत्र करने और अपनी कार्यवाही को कुशलतापूर्वक संचालित करने की अनुमति देता है।

वहीं, धारा 38 यह सुनिश्चित करती है कि CCI के आदेश सटीक हों, जिससे न्यायिक अखंडता बनी रहे। यह CCI को छोटी-मोटी गलतियों को ठीक करने का अधिकार देता है, लेकिन इस शक्ति का दुरुपयोग न हो, इसके लिए यह उस पर उचित सीमाएँ भी लगाता है। ये दोनों धाराएँ CCI के सुचारू और निष्पक्ष कामकाज के लिए आवश्यक हैं।

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