पंजीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 36, 37, 38, 39: निष्पादकों और गवाहों की उपस्थिति को लागू करना

Update: 2025-07-31 15:46 GMT

आइए पंजीकरण अधिनियम, 1908 (Registration Act, 1908) के भाग VII को समझते हैं, जो पंजीकरण प्रक्रिया के लिए निष्पादकों (executants) और गवाहों (witnesses) की उपस्थिति को कैसे सुनिश्चित किया जाता है, इस पर केंद्रित है। यह भाग यह सुनिश्चित करता है कि यदि आवश्यक हो तो पंजीकरण अधिकारी के पास दस्तावेज़ की वैधता की पुष्टि करने के लिए लोगों को बुलाने की शक्ति हो।

36. जहां निष्पादक या गवाह की उपस्थिति वांछित हो वहां प्रक्रिया (Procedure where appearance of executant or witness is desired)

यह धारा उस प्रक्रिया को निर्धारित करती है जब पंजीकरण के लिए दस्तावेज़ प्रस्तुत करने वाला कोई व्यक्ति, या किसी दस्तावेज़ के तहत दावा करने वाला कोई व्यक्ति, यह चाहता है कि किसी ऐसे व्यक्ति की उपस्थिति या गवाही (testimony) हो जो दस्तावेज़ के पंजीकरण के लिए आवश्यक है।

ऐसी स्थिति में, पंजीकरण अधिकारी (registering officer) अपने विवेक (discretion) से, उस अधिकारी या न्यायालय (Officer or Court) से, जिसे राज्य सरकार (State Government) इस संबंध में निर्देशित करती है, एक सम्मन (summons) जारी करने के लिए कह सकता है। यह सम्मन उस व्यक्ति को व्यक्तिगत रूप से या विधिवत अधिकृत एजेंट (duly authorised agent) के माध्यम से, जैसा कि सम्मन में उल्लेख किया गया हो, पंजीकरण कार्यालय में एक निर्धारित समय पर उपस्थित होने के लिए कहेगा।

उदाहरण: यदि किसी संपत्ति के बिक्री विलेख को पंजीकृत किया जा रहा है और खरीदार को संदेह है कि विक्रेता का हस्ताक्षर प्रामाणिक नहीं है, तो वह पंजीकरण अधिकारी से विक्रेता को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने के लिए सम्मन जारी करने का अनुरोध कर सकता है ताकि हस्ताक्षर की पुष्टि हो सके।

37. अधिकारी या न्यायालय द्वारा सम्मन जारी करना और तामील कराना (Officer or Court to issue and cause service of summons)

यह धारा बताती है कि धारा 36 के तहत सम्मन जारी करने की प्रक्रिया कैसे पूरी की जाएगी। सम्मन प्राप्त होने पर, अधिकारी या न्यायालय (officer or Court), ऐसे मामलों में देय चपरासी शुल्क (peon's fee) की प्राप्ति पर, तदनुसार सम्मन जारी करेगा और उसे उस व्यक्ति पर तामील (service) कराएगा जिसकी उपस्थिति की आवश्यकता है। यह सुनिश्चित करता है कि सम्मन कानूनी रूप से पहुंचाया जाए।

उदाहरण: यदि धारा 36 के तहत विक्रेता को सम्मन जारी किया जाता है, तो न्यायालय या नामित अधिकारी निर्धारित शुल्क लेने के बाद सम्मन जारी करेगा और उसे विक्रेता के पते पर पहुंचाएगा, आमतौर पर एक चपरासी या नामित व्यक्ति के माध्यम से।

38. पंजीकरण कार्यालय में उपस्थिति से छूट प्राप्त व्यक्ति (Persons exempt from appearance at registration-office)

यह धारा उन व्यक्तियों की सूची प्रदान करती है जिन्हें पंजीकरण कार्यालय में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने से छूट प्राप्त है, खासकर जब उनकी उपस्थिति सम्मन द्वारा मांगी गई हो।

उपधारा (1) में निम्नलिखित व्यक्तियों को छूट दी गई है:

• (a) वह व्यक्ति जो शारीरिक दुर्बलता (bodily infirmity) के कारण पंजीकरण कार्यालय में उपस्थित होने में जोखिम या गंभीर असुविधा के बिना असमर्थ है: इसमें वे लोग शामिल हैं जो गंभीर बीमारी, विकलांगता या उम्र के कारण यात्रा नहीं कर सकते।

• (b) वह व्यक्ति जो सिविल या आपराधिक प्रक्रिया के तहत जेल में है: कारावास में रहने वाले व्यक्ति।

• (c) वह व्यक्ति जिसे कानून द्वारा न्यायालय में व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट प्राप्त है: इसमें कुछ उच्च पदस्थ अधिकारी या ऐसे व्यक्ति शामिल हो सकते हैं जिन्हें विशेष कानूनों के तहत अदालत में उपस्थित होने से छूट प्राप्त है (जैसे कुछ महिलाएं 'पर्दानशीं' मानी जाती थीं)।

• जो लोग इन श्रेणियों में आते हैं, उन्हें व्यक्तिगत रूप से पंजीकरण कार्यालय में उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं होगी, भले ही अन्यथा उन्हें उपस्थित होना पड़े।

उदाहरण: यदि किसी दस्तावेज़ के निष्पादक को पैरालाइज्ड हो गया है और अस्पताल में भर्ती है, तो उसे पंजीकरण कार्यालय में उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं होगी।

उपधारा (2) कहती है कि ऐसे प्रत्येक व्यक्ति के मामले में (जिन्हें छूट प्राप्त है), पंजीकरण अधिकारी (registering officer) या तो स्वयं ऐसे व्यक्ति के घर जाएगा, या उस जेल में जाएगा जिसमें वह बंद है, और उसकी जांच (examine) करेगा या उसकी जांच के लिए एक कमीशन (commission) जारी करेगा। यह सुनिश्चित करता है कि दस्तावेज़ की प्रामाणिकता की पुष्टि हो सके, भले ही संबंधित व्यक्ति व्यक्तिगत रूप से कार्यालय में उपस्थित न हो सके।

उदाहरण: यदि एक निष्पादक जेल में है, तो पंजीकरण अधिकारी स्वयं जेल जाकर उसके हस्ताक्षर की पुष्टि कर सकता है या एक न्यायिक आयोग को उसकी गवाही लेने के लिए भेज सकता है।

39. सम्मन, कमीशन और गवाहों संबंधी कानून (Law as to summonses, commissions and witnesses)

यह धारा स्पष्ट करती है कि सम्मन, कमीशन और गवाहों की उपस्थिति को बाध्य करने के संबंध में कौन सा कानून लागू होगा। इसमें कहा गया है कि सिविल न्यायालयों (Civil Courts) के समक्ष मुकदमों (suits) में सम्मन, कमीशन और गवाहों की उपस्थिति को बाध्य करने और उनके पारिश्रमिक (remuneration) के लिए जो कानून वर्तमान में लागू है, वह, ऊपर उल्लिखित अपवादों (exceptions) को छोड़कर और आवश्यक परिवर्तनों (mutatis mutandis) के साथ, इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत जारी किए गए किसी भी सम्मन या कमीशन और उपस्थित होने के लिए बुलाए गए किसी भी व्यक्ति पर लागू होगा।

मुटाटिस मुटांडिस (mutatis mutandis) का अर्थ है "आवश्यक परिवर्तन करके"। इसका मतलब है कि सिविल प्रक्रिया संहिता (Code of Civil Procedure) के नियम जो सम्मन जारी करने, कमीशन भेजने और गवाहों को बुलाने पर लागू होते हैं, वे पंजीकरण अधिनियम के तहत भी लागू होंगे, बशर्ते संदर्भ के अनुसार मामूली बदलाव किए जाएं।

उदाहरण: यदि पंजीकरण अधिकारी को किसी गवाह की उपस्थिति की आवश्यकता है, तो वह सिविल कोर्ट की तरह ही सम्मन जारी करेगा, और यदि गवाह सम्मन की अवहेलना करता है, तो सिविल कोर्ट के नियमों के अनुसार कार्रवाई की जा सकती है। गवाह को उसके खर्चों के लिए पारिश्रमिक भी उसी तरह से दिया जाएगा जैसे सिविल मुकदमे में होता है।

ये धाराएँ पंजीकरण अधिनियम को न्यायिक प्रणाली के साथ जोड़ती हैं, जिससे पंजीकरण अधिकारी के पास दस्तावेज़ों की वैधता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक उपकरण और प्रक्रियाएँ हों, और साथ ही विशेष परिस्थितियों वाले व्यक्तियों के लिए भी उचित प्रावधान हों।

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