जल अधिनियम 1974 की धारा 32 से 33A : आपातकालीन उपाय, न्यायालय से संरक्षण की मांग और दिशा-निर्देश जारी करने का अधिकार

Update: 2025-09-02 12:25 GMT

धारा 32 : प्रदूषण की स्थिति में आपातकालीन उपाय (Emergency Measures in Case of Pollution)

धारा 32 राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को आपातकालीन परिस्थितियों में त्वरित कार्रवाई करने का विशेष अधिकार देती है।

यदि बोर्ड को यह प्रतीत होता है कि किसी धारा (Stream), कुएँ (Well) या भूमि (Land) में किसी जहरीले (Poisonous), हानिकारक (Noxious) या प्रदूषणकारी (Polluting) पदार्थ का निकास (Discharge) हो चुका है या दुर्घटना अथवा अप्रत्याशित घटना (Accident or Unforeseen Event) के कारण ऐसा पदार्थ उसमें प्रवेश कर चुका है, और तत्काल कार्रवाई आवश्यक है, तो बोर्ड लिखित रूप से कारण दर्ज कर अपनी ओर से कार्यवाही कर सकता है।

इस आपातकालीन कार्रवाई का उद्देश्य मुख्य रूप से तीन प्रकार का हो सकता है। पहला, बोर्ड उस हानिकारक पदार्थ को धारा, कुएँ या भूमि से हटाकर उपयुक्त तरीके से निपटा सकता है। दूसरा, प्रदूषण को कम करने या उसके दुष्प्रभाव को नियंत्रित करने के लिए आवश्यक कदम उठा सकता है।

तीसरा, वह संबंधित व्यक्ति को तुरंत आदेश जारी कर यह रोक सकता है कि आगे कोई जहरीला, हानिकारक या प्रदूषणकारी पदार्थ जलस्रोत या भूमि में न छोड़ा जाए। यहाँ तक कि यदि कोई धारा या कुआँ अस्वच्छ तरीके से प्रयोग किया जा रहा हो, तो भी बोर्ड तत्काल प्रतिबंध लगाने का आदेश दे सकता है।

हालाँकि, इस धारा के अंतर्गत बोर्ड को स्थायी प्रकार के कार्य करने का अधिकार नहीं है। अर्थात्, केवल अस्थायी उपाय (Temporary Works) किए जा सकते हैं जिन्हें कार्य समाप्ति के बाद हटा लिया जाएगा। इसका तात्पर्य यह है कि बोर्ड को स्थायी निर्माण या संरचना स्थापित करने की अनुमति इस धारा के तहत नहीं दी गई है।

धारा 33 : न्यायालय से प्रदूषण रोकने हेतु आवेदन (Power of Board to Make Application to Courts)

धारा 33 इस बात से संबंधित है कि जब बोर्ड को आशंका होती है कि किसी धारा या कुएँ में प्रदूषण फैलने की संभावना है, चाहे वह प्रदूषण किसी पदार्थ के सीधे निकास से हो, सीवर या भूमि में निपटान से हो, अथवा किसी अन्य कारण से हो, तो बोर्ड अदालत का दरवाज़ा खटखटा सकता है।

बोर्ड किसी महानगरीय मजिस्ट्रेट (Metropolitan Magistrate) या प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट (Judicial Magistrate of First Class) से प्रार्थना कर सकता है कि संबंधित व्यक्ति को प्रदूषणकारी गतिविधि से रोका जाए।

न्यायालय, आवेदन प्राप्त होने के बाद, परिस्थितियों को देखते हुए उपयुक्त आदेश पारित कर सकता है। यदि न्यायालय यह आदेश पारित करता है कि किसी व्यक्ति को जल प्रदूषण रोकने के लिए तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए, तो न्यायालय उस व्यक्ति को निर्देश दे सकता है कि वह प्रदूषणकारी कार्य बंद करे या पहले से छोड़े गए पदार्थ को धारा अथवा कुएँ से हटा ले। यदि वह व्यक्ति न्यायालय के आदेश का पालन नहीं करता, तो न्यायालय बोर्ड को अधिकार दे सकता है कि वह स्वयं उस पदार्थ को हटाकर उसका निपटान करे।

बोर्ड द्वारा इस कार्य में किए गए खर्च को पहले तो उस पदार्थ के निपटान से प्राप्त धन से समायोजित किया जाएगा। लेकिन यदि कोई शेष राशि बचती है, तो उसे संबंधित व्यक्ति से भूमि राजस्व (Land Revenue) या लोक मांग (Public Demand) की तरह वसूला जाएगा।

धारा 33A : दिशा-निर्देश जारी करने का अधिकार (Power to Give Directions)

धारा 33A बोर्ड को व्यापक शक्तियाँ प्रदान करती है। इसमें कहा गया है कि इस अधिनियम के अंतर्गत अपने अधिकारों और दायित्वों का पालन करते हुए बोर्ड किसी भी व्यक्ति, अधिकारी या प्राधिकरण को लिखित आदेश (Directions in Writing) जारी कर सकता है, और यह अनिवार्य होगा कि वह व्यक्ति, अधिकारी या प्राधिकरण उन आदेशों का पालन करे।

इस धारा की व्याख्या में स्पष्ट किया गया है कि इन दिशा-निर्देशों में उद्योगों, प्रक्रियाओं या संचालन (Operations or Processes) को बंद करने, प्रतिबंधित करने या नियंत्रित करने का आदेश शामिल हो सकता है। इसके अलावा बोर्ड को यह भी अधिकार है कि वह बिजली (Electricity), पानी (Water) या अन्य आवश्यक सेवाओं (Other Services) की आपूर्ति रोकने या नियंत्रित करने का निर्देश दे सके।

इस प्रावधान की महत्ता इस तथ्य में है कि यह बोर्ड को न केवल प्रदूषण रोकने के लिए कानूनी प्रक्रिया अपनाने का अधिकार देता है, बल्कि उसे प्रशासनिक रूप से भी त्वरित निर्णय लेकर अमल करने की शक्ति देता है। इससे बोर्ड की भूमिका केवल सलाहकार (Advisory) न रहकर प्रवर्तनकारी (Enforcement-Oriented) बन जाती है।

धारा 32, 33 और 33A मिलकर प्रदूषण नियंत्रण कानून की मजबूती को और बढ़ाते हैं।

• धारा 32 आपातकालीन परिस्थितियों में बोर्ड को त्वरित कार्रवाई का अधिकार देती है, ताकि प्रदूषण को तुरंत नियंत्रित किया जा सके।

• धारा 33 बोर्ड को यह अधिकार देती है कि यदि प्रदूषण की आशंका है तो वह न्यायालय से आदेश प्राप्त कर व्यक्ति को प्रदूषणकारी गतिविधि से रोक सके और यदि आवश्यक हो तो स्वयं प्रदूषणकारी पदार्थ को हटा सके।

• धारा 33A बोर्ड को प्रशासनिक रूप से और अधिक सशक्त बनाती है, जिससे वह किसी उद्योग या सेवा को बंद करने, नियंत्रित करने या रोकने के आदेश दे सके।

ये तीनों धाराएँ मिलकर प्रदूषण रोकथाम और नियंत्रण के लिए एक सशक्त ढाँचा प्रदान करती हैं और यह सुनिश्चित करती हैं कि बोर्ड न केवल भविष्य के खतरे का अनुमान लगाकर कदम उठा सके, बल्कि वास्तविक और आकस्मिक परिस्थितियों में भी प्रभावी कार्रवाई कर सके।

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