पंजीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 32, 32A, 33: पंजीकरण के लिए दस्तावेज़ कौन प्रस्तुत करेगा और मुख्तारनामे के नियम
आइए, पंजीकरण अधिनियम, 1908 (Registration Act, 1908) के भाग V के तहत दस्तावेज़ों को पंजीकरण के लिए प्रस्तुत करने (Presenting Documents for Registration) से संबंधित महत्वपूर्ण धाराओं को समझते हैं। यह भाग बताता है कि कौन दस्तावेज़ प्रस्तुत कर सकता है और इसके लिए क्या विशेष आवश्यकताएँ हैं।
32. पंजीकरण के लिए दस्तावेज़ प्रस्तुत करने वाले व्यक्ति (Persons to present documents for registration)
यह धारा उन व्यक्तियों को परिभाषित करती है जो किसी दस्तावेज़ को पंजीकरण के लिए उचित पंजीकरण कार्यालय में प्रस्तुत कर सकते हैं। धारा 31, 88 और 89 (sections 31, 88 and 89) में उल्लिखित विशेष मामलों को छोड़कर, इस अधिनियम के तहत पंजीकृत होने वाला हर दस्तावेज़, चाहे उसका पंजीकरण अनिवार्य (compulsory) हो या वैकल्पिक (optional), निम्नलिखित व्यक्तियों में से किसी एक द्वारा प्रस्तुत किया जाएगा:
• (a) दस्तावेज़ निष्पादित (executing) करने वाला या उसके तहत दावा करने वाला व्यक्ति: वह व्यक्ति जिसने दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किए हैं या जो उस दस्तावेज़ के माध्यम से किसी अधिकार का दावा कर रहा है। यदि यह किसी डिक्री (decree) या आदेश (order) की प्रतिलिपि है, तो वह व्यक्ति जो उस डिक्री या आदेश के तहत दावा कर रहा है।
o उदाहरण: एक बिक्री विलेख के मामले में, विक्रेता या खरीदार (या दोनों) इसे पंजीकरण के लिए प्रस्तुत कर सकते हैं। यदि यह अदालत के किसी आदेश की कॉपी है, तो वह व्यक्ति जिसे उस आदेश से लाभ हो रहा है, उसे प्रस्तुत कर सकता है।
• (b) ऐसे व्यक्ति का प्रतिनिधि (representative) या असाइनी (assign): यदि मूल व्यक्ति स्वयं उपस्थित नहीं हो सकता, तो उसका कानूनी प्रतिनिधि (जैसे कानूनी उत्तराधिकारी) या असाइनी (जिसे अधिकार हस्तांतरित किए गए हैं) दस्तावेज़ प्रस्तुत कर सकता है।
o उदाहरण: यदि विक्रेता की मृत्यु हो जाती है, तो उसका कानूनी उत्तराधिकारी बिक्री विलेख को पंजीकरण के लिए प्रस्तुत कर सकता है।
• (c) ऐसे व्यक्ति, प्रतिनिधि या असाइनी का एजेंट (agent), जिसे बाद में वर्णित तरीके से निष्पादित और प्रमाणित मुख्तारनामे (power-of-attorney) द्वारा विधिवत अधिकृत (duly authorised) किया गया हो: यह सबसे सामान्य तरीका है जब मूल व्यक्ति स्वयं उपस्थित नहीं हो सकता। वह एक एजेंट को अधिकृत कर सकता है, लेकिन यह अधिकार एक वैध और विधिवत निष्पादित मुख्तारनामे के माध्यम से दिया जाना चाहिए।
o उदाहरण: यदि विक्रेता विदेश में रहता है, तो वह अपने माता-पिता को एक वैध मुख्तारनामा दे सकता है, और उसके माता-पिता उसके एजेंट के रूप में बिक्री विलेख को पंजीकृत कर सकते हैं।
32A. फोटोग्राफ आदि का अनिवार्य लगाना (Compulsory affixing of photograph, etc.)
यह धारा 2001 में जोड़ी गई एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है जिसका उद्देश्य पंजीकरण प्रक्रिया में पारदर्शिता और सुरक्षा बढ़ाना है, खासकर संपत्ति लेनदेन में धोखाधड़ी को रोकने के लिए।
उपधारा (1) कहती है कि धारा 32 (section 32) के तहत उचित पंजीकरण कार्यालय में कोई भी दस्तावेज़ प्रस्तुत करने वाला प्रत्येक व्यक्ति दस्तावेज़ पर अपनी पासपोर्ट आकार की तस्वीर (passport size photograph) और फिंगरप्रिंट (fingerprints) लगाएगा।
परंतु (Provided that): यदि ऐसा दस्तावेज़ अचल संपत्ति (immovable property) के स्वामित्व (ownership) के हस्तांतरण (transfer) से संबंधित है, तो दस्तावेज़ में उल्लिखित ऐसी संपत्ति के प्रत्येक खरीदार (buyer) और विक्रेता (seller) की पासपोर्ट आकार की तस्वीर और फिंगरप्रिंट भी दस्तावेज़ पर लगाए जाएंगे। यह विशेष रूप से संपत्ति लेनदेन के लिए एक अतिरिक्त सत्यापन परत जोड़ता है, जिससे पहचान की पुष्टि हो सके।
उदाहरण: यदि आप एक ज़मीन बेच रहे हैं, तो न केवल आपको (प्रस्तुतकर्ता के रूप में) अपनी तस्वीर और फिंगरप्रिंट लगाने होंगे, बल्कि दस्तावेज़ में उल्लिखित विक्रेता (आप स्वयं) और खरीदार दोनों की तस्वीरें और फिंगरप्रिंट भी दस्तावेज़ पर लगाने होंगे।
33. धारा 32 के प्रयोजनों के लिए पहचानने योग्य मुख्तारनामा (Power-of-attorney recognisable for purposes of section 32)
यह धारा विस्तार से बताती है कि धारा 32 के तहत एजेंटों को अधिकृत करने के लिए किस प्रकार के मुख्तारनामे (power-of-attorney) को वैध माना जाएगा।
उपधारा (1) कहती है कि धारा 32 के प्रयोजनों के लिए केवल निम्नलिखित मुख्तारनामे ही वैध माने जाएँगे:
• (a) यदि मुख्तारनामा निष्पादित (executing) करते समय मूल व्यक्ति (principal) भारत (India) के किसी ऐसे हिस्से में रहता है जहाँ यह अधिनियम लागू है: इस स्थिति में, मुख्तारनामे को उस रजिस्ट्रार (Registrar) या उप-रजिस्ट्रार (Sub-Registrar) के सामने निष्पादित और प्रमाणित (authenticated) किया जाना चाहिए जिसके जिले या उप-जिले में मूल व्यक्ति रहता है।
o उदाहरण: यदि रमेश, जो जयपुर में रहता है (और जहाँ यह अधिनियम लागू है), अपनी बहन को अपनी ओर से काम करने के लिए मुख्तारनामा देना चाहता है, तो उसे यह मुख्तारनामा जयपुर के रजिस्ट्रार या उप-रजिस्ट्रार के सामने निष्पादित और प्रमाणित करवाना होगा।
• (b) यदि मुख्तारनामे निष्पादित करते समय मूल व्यक्ति भारत के किसी ऐसे हिस्से में रहता है जहाँ यह अधिनियम लागू नहीं है: इस स्थिति में, मुख्तारनामे को किसी भी मैजिस्ट्रेट (Magistrate) के सामने निष्पादित और प्रमाणित किया जाना चाहिए।
o उदाहरण: यदि कोई व्यक्ति भारत के किसी ऐसे जनजातीय क्षेत्र में रहता है जहाँ यह अधिनियम लागू नहीं है, तो वह वहाँ के मैजिस्ट्रेट के सामने मुख्तारनामा निष्पादित करा सकता है।
• (c) यदि मुख्तारनामे निष्पादित करते समय मूल व्यक्ति भारत में नहीं रहता: इस स्थिति में, मुख्तारनामे को एक नोटरी पब्लिक (Notary Public), या किसी न्यायालय (Court), न्यायाधीश (Judge), मैजिस्ट्रेट (Magistrate), भारतीय वाणिज्य दूतावास या उप-वाणिज्य दूतावास (Indian Consul or Vice-Consul), या केंद्र सरकार के प्रतिनिधि (representative of the Central Government) के सामने निष्पादित और प्रमाणित किया जाना चाहिए।
o उदाहरण: यदि सुरेश अमेरिका में रहता है और भारत में अपनी संपत्ति बेचना चाहता है, तो उसे अमेरिका में एक नोटरी पब्लिक या भारतीय दूतावास के सामने मुख्तारनामा निष्पादित और प्रमाणित करवाना होगा।
परंतु (Provided that): इस धारा के खंड (a) और (b) में उल्लिखित ऐसे किसी भी मुख्तारनामे को निष्पादित करने के उद्देश्य से निम्नलिखित व्यक्तियों को किसी भी पंजीकरण कार्यालय या न्यायालय में उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं होगी:
* (i) वे व्यक्ति जो शारीरिक दुर्बलता (bodily infirmity) के कारण बिना जोखिम या गंभीर असुविधा के उपस्थित होने में असमर्थ हैं: गंभीर बीमारी या विकलांगता वाले लोग।
* (ii) वे व्यक्ति जो सिविल या आपराधिक प्रक्रिया के तहत जेल में हैं: कैदी।
* (iii) वे व्यक्ति जिन्हें कानून द्वारा न्यायालय में व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट दी गई है: कुछ उच्च पदस्थ अधिकारी या विशिष्ट महिलाएँ (ऐतिहासिक रूप से 'पर्दानशीं' महिलाएँ)।
स्पष्टीकरण (Explanation): इस उपधारा में "भारत" का अर्थ जनरल क्लॉज एक्ट, 1897 (General Clauses Act, 1897) की धारा 3 के खंड (28) में परिभाषित भारत से है।
उपधारा (2) कहती है कि ऐसे प्रत्येक व्यक्ति के मामले में (जिन्हें व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट है), रजिस्ट्रार (Registrar) या उप-रजिस्ट्रार (Sub-Registrar) या मैजिस्ट्रेट (Magistrate), जैसा भी मामला हो, यदि संतुष्ट हो कि मुख्तारनामा मूल व्यक्ति द्वारा स्वेच्छा से (voluntarily) निष्पादित किया गया है, तो वह aforesaid कार्यालय या न्यायालय में उसकी व्यक्तिगत उपस्थिति की आवश्यकता के बिना उसे प्रमाणित कर सकता है।
उदाहरण: यदि एक व्यक्ति बहुत बीमार है और अस्पताल में है, तो रजिस्ट्रार अस्पताल जाकर यह सुनिश्चित कर सकता है कि मुख्तारनामा स्वेच्छा से दिया गया है, और फिर उसे कार्यालय में व्यक्ति की उपस्थिति के बिना प्रमाणित कर सकता है।
उपधारा (3) बताती है कि निष्पादन की स्वैच्छिक प्रकृति के बारे में सबूत प्राप्त करने के लिए, रजिस्ट्रार (Registrar) या उप-रजिस्ट्रार (Sub-Registrar) या मैजिस्ट्रेट (Magistrate) स्वयं मूल व्यक्ति होने का दावा करने वाले व्यक्ति के घर जा सकता है, या उस जेल में जा सकता है जहाँ वह बंद है, और उसकी जाँच कर सकता है, या उसकी जाँच के लिए एक कमीशन जारी कर सकता है। यह सुनिश्चित करता है कि मुख्तारनामा किसी दबाव में न दिया गया हो।
उपधारा (4) कहती है कि इस धारा में उल्लिखित कोई भी मुख्तारनामा, इसे प्रस्तुत करने मात्र से ही साबित माना जा सकता है, जब यह उसके मुख पर ही ऐसा प्रतीत होता हो कि इसे यहाँ पहले उल्लिखित व्यक्ति या न्यायालय के सामने निष्पादित और प्रमाणित किया गया है। इसका मतलब है कि यदि मुख्तारनामा विधिवत प्रमाणित प्रतीत होता है, तो उसकी वैधता को साबित करने के लिए अतिरिक्त सबूत की आवश्यकता नहीं होती।
ये धाराएँ पंजीकरण प्रक्रिया में एजेंटों के माध्यम से प्रतिनिधित्व की कानूनी नींव को मजबूत करती हैं, जबकि धोखाधड़ी और जबरदस्ती को रोकने के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपाय भी प्रदान करती हैं।