माल विक्रय अधिनियम (Sales of Goods Act), 1930 का अध्याय IV अनुबंध के प्रदर्शन (Performance of the Contract) से संबंधित है, जिसमें विक्रेता (Seller) और खरीदार (Buyer) दोनों के कर्तव्य (Duties) और अधिकार (Rights) शामिल हैं जब वे अनुबंध के तहत अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करते हैं।
यह अध्याय बिक्री लेनदेन के अंतिम चरण पर ध्यान केंद्रित करता है - माल की सुपुर्दगी (Delivery of Goods) और कीमत का भुगतान (Payment of Price)।
विक्रेता और खरीदार के कर्तव्य (Duties of Seller and Buyer)
धारा 31 अनुबंध के प्रदर्शन का एक मूलभूत सिद्धांत स्थापित करती है। यह बताती है कि बिक्री अनुबंध की शर्तों (Terms of the Contract) के अनुसार माल की सुपुर्दगी करना विक्रेता का कर्तव्य है (It is the duty of the seller to deliver the goods) और उन्हें स्वीकार करना और उनके लिए भुगतान करना खरीदार का कर्तव्य है (It is the duty of the buyer to accept and pay for them)।
यह धारा बिक्री अनुबंध में दोनों पक्षों के प्राथमिक दायित्वों (Primary Obligations) को रेखांकित करती है। विक्रेता का मुख्य कर्तव्य माल को सौंपना है, जबकि खरीदार का मुख्य कर्तव्य उन्हें स्वीकार करना और सहमत कीमत का भुगतान करना है। अनुबंध के प्रदर्शन के ये दो पहलू आपस में जुड़े हुए हैं और एक वैध बिक्री लेनदेन को पूरा करने के लिए आवश्यक हैं।
उदाहरण के लिए, रमेश ने सुरेश से एक निश्चित तारीख पर एक विशिष्ट प्रकार का अनाज खरीदने का अनुबंध किया। धारा 31 के तहत, रमेश का कर्तव्य है कि वह उस तारीख पर अनाज की सुपुर्दगी करे, और सुरेश का कर्तव्य है कि वह अनाज को स्वीकार करे और उसके लिए भुगतान करे। यदि कोई भी पक्ष अपने कर्तव्य का पालन नहीं करता है, तो अनुबंध का उल्लंघन (Breach of Contract) होगा।
भुगतान और सुपुर्दगी समवर्ती शर्तें (Payment and Delivery Are Concurrent Conditions)
धारा 32 भुगतान और सुपुर्दगी के बीच के संबंध को स्पष्ट करती है। जब तक अन्यथा सहमत न हो (Unless Otherwise Agreed), माल की सुपुर्दगी और कीमत का भुगतान समवर्ती शर्तें (Concurrent Conditions) हैं। इसका अर्थ यह है कि:
• विक्रेता कीमत के बदले में खरीदार को माल का कब्ज़ा (Possession) देने के लिए तैयार और इच्छुक (Ready and Willing) होगा।
• खरीदार माल के कब्ज़े के बदले में कीमत का भुगतान करने के लिए तैयार और इच्छुक (Ready and Willing) होगा।
यह धारा 'कैश ऑन डिलीवरी' (Cash on Delivery) या 'एकरूप विनिमय' (Simultaneous Exchange) की अवधारणा को दर्शाती है, जहाँ दोनों पक्षों से अपेक्षा की जाती है कि वे एक ही समय में अपनी-अपनी बाध्यताओं (Obligations) को पूरा करने के लिए तैयार रहें। यह आमतौर पर छोटे पैमाने के लेनदेन में देखा जाता है।
उदाहरण के लिए, आप एक किराने की दुकान से सब्जियां खरीदते हैं। दुकानदार सब्जियां देने के लिए तैयार है (विक्रेता का कर्तव्य), और आप सब्जियों को लेने और तुरंत भुगतान करने के लिए तैयार हैं (खरीदार का कर्तव्य)। यह एक समवर्ती शर्त है। यदि दुकानदार आपको सब्जियां देने से इनकार करता है जब आप भुगतान करने के लिए तैयार होते हैं, तो यह उसका उल्लंघन होगा।
स्पेंसर बनाम हार्प्स (Spencer v. Harps) (एक प्रासंगिक अंग्रेजी मामला): इस मामले में, यह स्थापित किया गया कि यदि अनुबंध में कोई अन्य प्रावधान नहीं है, तो सुपुर्दगी और भुगतान को समवर्ती शर्तें माना जाएगा। किसी भी पक्ष को दूसरे पक्ष पर प्रदर्शन करने के लिए जोर देने से पहले अपनी तत्परता और इच्छा (Readiness and Willingness) प्रदर्शित करनी होगी।
सुपुर्दगी (Delivery)
धारा 33 बताती है कि माल की सुपुर्दगी कैसे की जा सकती है। बेचे गए माल की सुपुर्दगी कुछ भी करके की जा सकती है जिसके लिए पक्षकार सहमत हों कि इसे सुपुर्दगी माना जाएगा, या जिसका प्रभाव माल को खरीदार के कब्ज़े में या उसकी ओर से उन्हें रखने के लिए अधिकृत किसी भी व्यक्ति के कब्ज़े में डालना हो।
सुपुर्दगी कई रूपों में हो सकती है:
• वास्तविक सुपुर्दगी (Actual Delivery): जब माल शारीरिक रूप से (Physically) खरीदार या उसके एजेंट को दिया जाता है।
• प्रतीकात्मक सुपुर्दगी (Symbolic Delivery): जब माल के कब्ज़े को सक्षम करने वाले साधनों की सुपुर्दगी की जाती है, जैसे गोदाम की चाबियां (Keys to a Warehouse) या बिल ऑफ लेडिंग (Bill of Lading) (धारा 25(2) में संदर्भित)।
• रचनात्मक सुपुर्दगी (Constructive Delivery): जब विक्रेता माल को खरीदार के लिए एक बाइली के रूप में रखता है, या एक तीसरा पक्ष जो माल के कब्जे में है, खरीदार की ओर से माल को रखने के लिए सहमत होता है।
उदाहरण के लिए, आप एक फर्नीचर स्टोर से एक डाइनिंग टेबल खरीदते हैं।
• वास्तविक सुपुर्दगी: यदि आप टेबल को अपनी कार में लेकर जाते हैं।
• प्रतीकात्मक सुपुर्दगी: यदि आपने एक गोदाम में बड़ी मात्रा में अनाज खरीदा है, और विक्रेता आपको गोदाम की चाबियां दे देता है।
• रचनात्मक सुपुर्दगी: यदि फर्नीचर स्टोर आपकी टेबल को अपने गोदाम में आपके लिए कुछ दिनों तक रखने के लिए सहमत होता है जब तक आप उसे उठा नहीं लेते।
आंशिक सुपुर्दगी का प्रभाव (Effect of Part Delivery)
धारा 34 आंशिक सुपुर्दगी के प्रभाव को स्पष्ट करती है।
• संपूर्ण की सुपुर्दगी की प्रगति में आंशिक सुपुर्दगी (Part Delivery in Progress of the Delivery of the Whole): माल के एक हिस्से की सुपुर्दगी, जो पूरे की सुपुर्दगी की प्रगति में है, ऐसे माल में संपत्ति के हस्तांतरण के उद्देश्य के लिए, पूरे की सुपुर्दगी के समान प्रभाव डालती है। इसका अर्थ है कि यदि विक्रेता पूरे आदेश को डिलीवर करने का इरादा रखता है, और वह शुरू करने के लिए कुछ हिस्सा भेजता है, तो उस हिस्से में स्वामित्व पारित हो जाता है और यह पूरे को स्वीकार करने के इरादे का भी संकेत देता है।
• पूरे से अलग करने के इरादे से आंशिक सुपुर्दगी (Part Delivery with an Intention of Severing it from the Whole): लेकिन, माल के एक हिस्से की सुपुर्दगी, जिसे पूरे से अलग करने के इरादे से किया गया है, शेष की सुपुर्दगी के रूप में काम नहीं करती है। इसका मतलब है कि यदि विक्रेता केवल एक हिस्से को बेचने का इरादा रखता है, और शेष को अपने पास रखने का, तो उस हिस्से की सुपुर्दगी शेष के स्वामित्व को पारित नहीं करेगी।
उदाहरण के लिए, एक खरीदार 500 किलोग्राम चावल का ऑर्डर देता है।
• पहला मामला: विक्रेता 200 किलोग्राम चावल भेजता है, यह स्पष्ट करते हुए कि बाकी 300 किलोग्राम अगले दिन भेजे जाएंगे। यह पूरे की सुपुर्दगी की प्रगति में आंशिक सुपुर्दगी है, और इन 200 किलोग्राम चावल में स्वामित्व तुरंत खरीदार को हस्तांतरित हो जाता है।
• दूसरा मामला: विक्रेता ने 500 किलोग्राम चावल बेचने का अनुबंध किया, लेकिन खरीदार केवल 200 किलोग्राम को स्वीकार करने का फैसला करता है, शेष 300 किलोग्राम को पूरी तरह से अस्वीकार करता है। इस 200 किलोग्राम की सुपुर्दगी शेष 300 किलोग्राम के स्वामित्व को पारित नहीं करेगी, और खरीदार के पास शेष को अस्वीकार करने का अधिकार बना रहेगा।
खरीदार सुपुर्दगी के लिए आवेदन करेगा (Buyer to Apply for Delivery)
धारा 35 सुपुर्दगी के संबंध में खरीदार के कर्तव्य पर प्रकाश डालती है। किसी भी स्पष्ट अनुबंध (Express Contract) के अलावा, माल का विक्रेता उन्हें सुपुर्द करने के लिए बाध्य नहीं है (Not Bound to Deliver Them) जब तक कि खरीदार सुपुर्दगी के लिए आवेदन नहीं करता है (Applies for Delivery)।
यह धारा डिफ़ॉल्ट नियम (Default Rule) स्थापित करती है कि विक्रेता को माल डिलीवर करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है जब तक कि खरीदार सक्रिय रूप से सुपुर्दगी की मांग न करे। यह नियम 'मांग पर सुपुर्दगी' (Delivery on Demand) के सिद्धांत को दर्शाता है। हालाँकि, यदि अनुबंध में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि विक्रेता को माल की डिलीवरी करनी होगी (उदाहरण के लिए, 'डोर-टू-डोर डिलीवरी' - Door-to-Door Delivery), तो यह नियम लागू नहीं होगा।
उदाहरण के लिए, आपने एक स्थानीय दुकान से एक सोफा खरीदा है। यदि अनुबंध में स्पष्ट रूप से डिलीवरी की तारीख या व्यवस्था का उल्लेख नहीं है, तो धारा 35 के तहत, दुकान मालिक सोफा तब तक डिलीवर करने के लिए बाध्य नहीं है जब तक आप उसे लेने के लिए संपर्क नहीं करते या डिलीवरी की व्यवस्था नहीं करते।
पवन कुमार बनाम भारत संघ (Pawan Kumar v. Union of India) (एक प्रासंगिक मामला): इस मामले में, यह दोहराया गया था कि यदि अनुबंध में कोई विशिष्ट व्यवस्था नहीं है, तो खरीदार को विक्रेता से माल की सुपुर्दगी के लिए आवेदन करना होगा। विक्रेता की ओर से स्वतः सुपुर्दगी का कोई दायित्व नहीं है।
ये धाराएँ मिलकर माल विक्रय अनुबंध के कुशल और स्पष्ट प्रदर्शन के लिए एक रूपरेखा प्रदान करती हैं, यह सुनिश्चित करती हैं कि विक्रेता और खरीदार दोनों को उनकी भूमिकाएं और अपेक्षाएं स्पष्ट हों।